
बिहार विधानसभा का मानसून सत्र गुरुवार को अपने चौथे दिन में प्रवेश कर गया। जैसे ही सदन की कार्यवाही शुरू हुई, विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव ने स्पीकर नंद किशोर यादव से गुजारिश की कि ‘एसआईआर’ पर अधूरी चर्चा को दोबारा शुरू किया जाए।
तेजस्वी ने कहा कि बुधवार को जो घटनाएं सदन में घटीं, वे लोकतांत्रिक परंपराओं के अनुकूल नहीं थीं। "हम सभी सदन में इसलिए आते हैं ताकि बिहार का भविष्य बेहतर हो। यदि हमसे कोई भूल हुई हो तो हम खेद प्रकट करते हैं," उन्होंने कहा।
'मुख्यमंत्री एसआईआर पर चुप क्यों हैं?'
आरजेडी नेता ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की चुप्पी पर सवाल उठाते हुए कहा कि उन्हें स्पष्ट आश्वासन देना चाहिए कि किसी भी बिहारी नागरिक का नाम मतदाता सूची से नहीं हटेगा। तेजस्वी ने यह भी याद दिलाया कि खुद जेडीयू सांसद गिरधारी यादव और आंध्र प्रदेश की टीडीपी जैसी सहयोगी पार्टियों ने एसआईआर प्रक्रिया पर आपत्ति जताई है।
'बाबा साहेब का संविधान खतरे में है'
चर्चा के दौरान तेजस्वी ने गंभीर चिंता जताते हुए कहा, “एसआईआर में आधार और पैन कार्ड की अनिवार्यता क्यों नहीं है? ऐसे दस्तावेज मांगे जा रहे हैं जो समाज के कमजोर वर्गों के पास उपलब्ध नहीं होते।” उन्होंने यह भी बताया कि प्रवासी मजदूरों की संख्या करोड़ों में है, और ऐसे लोग आवेदन की प्रक्रिया को लेकर असहज महसूस कर रहे हैं, क्योंकि ऑनलाइन विकल्प सुचारु नहीं है।
उन्होंने आरोप लगाया कि यह प्रक्रिया गरीबों को उनके वोटिंग अधिकारों से वंचित करने का षड्यंत्र है। “वोट देने का अधिकार सबसे बड़ा लोकतांत्रिक अधिकार है। यदि मतदाता सूची से नाम हटाए जा रहे हैं, तो यह संविधान के साथ अन्याय है,” उन्होंने कहा।
चुनाव आयोग और बीजेपी के दावों में विरोधाभास
तेजस्वी ने चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर सवाल नहीं उठाया, लेकिन कहा कि एसआईआर प्रक्रिया में कई खामियां हैं। उन्होंने यह भी कहा कि चुनाव आयोग ने कहीं नहीं कहा कि वेरिफिकेशन के दौरान किसी भी घुसपैठिए की पहचान हुई है, फिर भी भाजपा और एनडीए के नेता यह दावा क्यों कर रहे हैं?
काले कपड़ों में विरोध, विधानसभा पोर्टिको बना मंच
सदन की कार्यवाही शुरू होने से पहले महागठबंधन के विधायकों ने विधानसभा परिसर में काले कुर्ते पहनकर प्रदर्शन किया। उन्होंने हाथों में बैनर और पोस्टर लेकर नारेबाजी की और केंद्र व राज्य सरकार पर निशाना साधा। उनकी मांग थी कि एसआईआर की प्रक्रिया को पूरी तरह रद्द किया जाए और इसके विरोध में विधानसभा में प्रस्ताव पारित किया जाए।
नारे गूंजे: "एसआईआर वापस लो", "एनडीए सरकार हटाओ", "वोटबंदी नहीं चलेगी" – जैसे नारों के साथ विरोध और चेतावनी दोनों का संदेश दिया गया।














