
बिहार की राजनीति में इस समय राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के युवा नेता तेजस्वी यादव (35 वर्ष) का नाम सबसे ऊपर है। हालांकि, इस बार उनकी राह आसान नहीं है। तेजस्वी यादव को सबसे बड़ी टक्कर जन सुधार पार्टी के संस्थापक प्रशांत किशोर से मिलने वाली है। पीके ने राघोपुर से ही प्रचार अभियान शुरू कर दिया है, हालांकि उन्होंने अभी तक औपचारिक रूप से अपनी उम्मीदवारी की घोषणा नहीं की है।
राघोपुर: सिर्फ एक निर्वाचन क्षेत्र नहीं, बल्कि पारिवारिक गढ़
तेजस्वी यादव के लिए राघोपुर महज एक निर्वाचन क्षेत्र नहीं बल्कि उनकी राजनीतिक और पारिवारिक विरासत का प्रतीक है। यह वही क्षेत्र है जहाँ उनके पिता लालू प्रसाद यादव और मां राबड़ी देवी ने जीत दर्ज की थी। तेजस्वी यादव यहां से 2015 और 2020 में जीत चुके हैं, इसलिए इस सीट से उनकी पकड़ मजबूत मानी जाती है।
सतीश कुमार यादव: पिछली हार का बदला लेने का मौका
बीजेपी के सतीश कुमार यादव, जो पहले राबड़ी देवी को हराने में सफल रहे थे, तेजस्वी यादव के लिए बड़ी चुनौती बने हुए हैं। 2020 में सतीश कुमार से उनकी जीत का अंतर केवल 38,174 वोट का था। यह आंकड़ा इस बार मुकाबले की गंभीरता को दिखाता है।
असदुद्दीन ओवैसी की AIMIM भी चुनौती
ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी भी बिहार में इस बार कई उम्मीदवार उतारने की तैयारी में हैं। 2020 में AIMIM ने सीमांचल में 5 मुस्लिम बहुल सीटें जीती थीं। उनका यह प्रभाव महागठबंधन के लिए चिंता का कारण बन सकता है, खासकर मुस्लिम वोटों को लेकर।
परिवारिक कलह: अंदरूनी असंतोष का खतरा
तेजस्वी यादव के परिवार में भी कलह एक बड़ा फैक्टर है। बड़े भाई तेज प्रताप यादव और बहन रोहिणी आचार्य अंदरूनी असंतोष और महत्वाकांक्षाओं के चलते संभावित चुनौती के रूप में उभर रहे हैं। यादव परिवार के भीतर फैल रहे असंतोष के संकेत तेजस्वी के नेतृत्व पर संदेह पैदा कर सकते हैं और उनकी साख को प्रभावित कर सकते हैं।
कांग्रेस का हिचकिचाना
महागठबंधन के सहयोगी कांग्रेस पार्टी का रुख भी तेजस्वी यादव के लिए चिंता का विषय है। कांग्रेस अभी तक तेजस्वी को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करने में हिचकिचा रही है। इस असमंजस के चलते गठबंधन समर्थकों में अनिश्चितता का माहौल बन गया है। कोई स्पष्ट सीएम फेस न होना गठबंधन को एकजुट करने की क्षमता को कमजोर कर सकता है।
सीट बंटवारे में पेच
सीटों के बंटवारे को लेकर भी कई पेचीदगियां हैं। वामपंथी दल जैसे कि सीपीआई-एमएल (दीपंकर भट्टाचार्य नेतृत्व में), जेएमएम और वीआईपी पार्टी के नेता मुकेश सैनी भी इस प्रक्रिया में शामिल हैं। सीटों का तालमेल और सौदेबाजी तेजस्वी यादव के मुख्यमंत्री बनने के सपने के लिए बड़ी चुनौती साबित हो सकती है।














