
राजस्थान की मिट्टी ने एक बार फिर भारत का नाम रोशन किया है। अजमेर जिले की ब्यावर की बेटी आर्ची पाखरोठ ने कजाकिस्तान में आयोजित कजाक कुरेसी एशियन चैंपियनशिप 2025 में शानदार प्रदर्शन करते हुए कांस्य पदक (ब्रॉन्ज मेडल) अपने नाम किया। यह उपलब्धि न केवल ब्यावर बल्कि पूरे प्रदेश और देश के लिए गर्व का क्षण है।
पहली बार विदेश में और पहली ही बार मेडल
27 से 30 अक्टूबर तक आयोजित इस प्रतियोगिता में आर्ची ने पहली बार अंतरराष्ट्रीय मंच पर कदम रखा और अपने प्रदर्शन से सभी को प्रभावित किया। उदयपुर के एक निजी कॉलेज में स्नातक की पढ़ाई कर रही प्रथम वर्ष की छात्रा आर्ची ने इस खेल में भारत की ओर से प्रतिनिधित्व किया। कजाकिस्तान का पारंपरिक खेल ‘कजाक कुरेसी’ कुश्ती और जूडो के मिश्रण जैसा होता है, जिसमें ताकत और तकनीक दोनों की भूमिका अहम होती है। इस कठिन प्रतिस्पर्धा में ब्रॉन्ज मेडल जीतना आर्ची के लिए ऐतिहासिक उपलब्धि है।
आर्ची ने अपनी जीत को देश को समर्पित करते हुए कहा — “यह तो बस शुरुआत है, मेरा लक्ष्य है कि आने वाले वर्षों में भारत के लिए और भी मेडल जीत सकूं।”
संघर्षों से भरी रही आर्ची की यात्रा
आर्ची की सफलता के पीछे एक लंबा संघर्ष छिपा है। साल 2008 में उनके पिता भारत पाखरोठ का निधन हो गया था, जिससे परिवार की आर्थिक स्थिति डगमगा गई थी। उनके पिता कुरियर और फोटो स्टेट का काम करते थे। पिता के जाने के बाद परिवार की जिम्मेदारी उनके दादा मदनलाल पाखरोठ ने संभाली, जो एक सेवानिवृत्त शिक्षक हैं।
मां ममता शर्मा बताती हैं कि “हमारे लिए यह आसान सफर नहीं था। लेकिन दादा-दादी ने हमेशा आर्ची को प्रोत्साहित किया। बेटा कनक ने भी अपनी बहन के सपनों को पूरा करने के लिए खेल छोड़कर नौकरी की और आर्थिक रूप से मदद की।”
आर्ची ने 6 साल की उम्र में जूडो खेलना शुरू किया था। शुरुआती प्रशिक्षण ब्यावर में मिला, इसके बाद उन्होंने भीलवाड़ा और फिर हरियाणा के हिसार में अभ्यास जारी रखा। कठिन परिश्रम और दृढ़ संकल्प के बल पर वह राष्ट्रीय स्तर पर कई पदक जीत चुकी हैं।
मां और परिवार में खुशी का माहौल
आर्ची की मां ममता शर्मा ने बताया कि “आर्ची आज देश के लिए खेल रही है, यह हमारे परिवार के लिए गर्व की बात है। जब हमें पता चला कि उसने कजाकिस्तान में मेडल जीता है, तो हमारी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। वह देर शाम जयपुर लौटेगी, और पूरा ब्यावर उसकी उपलब्धि पर गर्व महसूस कर रहा है।”
कोच बोले – बचपन से ही थी असाधारण प्रतिभा
आर्ची के पहले कोच गौतम चौहान ने बताया कि “वह बचपन से ही बेहद प्रतिभाशाली खिलाड़ी रही है। उसमें आगे बढ़ने की गजब की ललक है और मेहनत करने का जज़्बा भी। स्कूल टूर्नामेंट में तीन बार लगातार राष्ट्रीय स्तर पर पदक जीतने के बाद उसने अंतरराष्ट्रीय मंच तक पहुंचने का सपना देखा था, जिसे अब पूरा कर रही है।”
उन्होंने आगे कहा, “हालांकि आर्ची का मुख्य खेल जूडो है, लेकिन वह कुश्ती में भी बेहतरीन है। कजाक कुरेसी जूडो की तरह ही है, इसलिए उसे इस खेल में तेजी से सफलता मिली। यह उसकी मेहनत और समर्पण का नतीजा है कि उसने भारत के लिए मेडल जीता।”
राजस्थान की बेटियों की नई पहचान
हाल ही में राजस्थान की ही एक और बेटी कियाना ने वर्ल्ड कैडेट शतरंज चैंपियनशिप 2025 में ब्रॉन्ज मेडल जीतकर प्रदेश का नाम रोशन किया था। अब आर्ची पाखरोठ ने भी अपने प्रदर्शन से यह साबित कर दिया कि अगर हौसले बुलंद हों तो सीमाएं मायने नहीं रखतीं।
आर्ची की जीत से यह स्पष्ट है कि राजस्थान की बेटियां अब केवल देश में ही नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय मंच पर भी अपनी पहचान मजबूती से दर्ज करा रही हैं।














