Gama Pehlwan Birthday: 5 फीट 7 इंच का ये पहलवान खाता था 6 देसी मुर्गे, आधा लीटर घी, 1.5 लीटर मक्खन, उठा लिया था 1200 किलो का पत्थर

By: Priyanka Maheshwari Sun, 22 May 2022 08:58:55

Gama Pehlwan Birthday: 5 फीट 7 इंच का ये पहलवान खाता था 6 देसी मुर्गे, आधा लीटर घी, 1.5 लीटर मक्खन, उठा लिया था 1200 किलो का पत्थर

भारत के पहलवानों ने दुनिया में देश का नाम रोशन किया और खूब नाम भी कमाया। दारा सिंह, उदय चांडो जैसे कई ऐसे पहलवान हुए, जिन्होंने देश का नाम दुनिया भर में रोशन किया। ऐसे ही एक भारतीय पहलवान का नाम था 'गामा पहलवान'। इन्हें 'द ग्रेट गामा' और रुस्तम-ए-हिंद नाम से भी जाना जाता था। आज 22 मई 2022 को उनका 144वां जन्मदिन है और गूगल ने डूडल बनाकर उनके जन्मदिन को और भी खास बनाया है। गामा पहलवान की लंबाई 5 फीट 7 इंच और वजन लगभग 113 किलो था। उनके पिता का नाम मुहम्मद अजीज बक्श था और पहलवानी के शुरुआती गुर गामा पहलवान को उनके पिताजी ने ही सिखाए थे। बताया जाता है कि उनका जीवन का अंतिम समय काफी तंगी में गुजरा। तो आइए गामा पहलवान के जन्मदिन मौके पर उनके जीवन से जुड़ी कुछ खास बातों में बारे में जानते हैं...

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गामा पहलवान का मूल नाम गुलाम मोहम्मद बख्श बट था। बताया जाता है कि उनका जन्म 22 मई 1878 को अमृतसर के जब्बोवाल गांव में हुआ था। इनके जन्म को लेकर विवाद है क्योंकि कुछ रिपोर्ट बताती हैं कि उनका जन्म मध्यप्रदेश के दतिया में हुआ था। जब गामा पहलवान 6 साल के थे, तो पिता का इंतकाल हो गया था। लेकिन तबतक उनके पहलवान बनने की शुरुआत हो चुकी थी। पिता के जाने के बाद गामा पहलवान के नाना नून पहलवान ने उन्हें और उनके भाई को कुश्ती के दांव-पेंच सिखाने की जिम्मेदारी उठाई। इसके बाद मामा ईदा पहलवान ने भी गामा और उनके भाई को तराशा। गामा पहलवान पहली बार दुनिया की नजर में आए, तब उनकी उम्र केवल 10 बरस थी। यह साल था 1888 का। तब जोधपुर में सबसे ताकतवर शख्स की खोज के लिए एक प्रतियोगिता हुई थी। इसमें 400 से अधिक पहलवानों ने हिस्सा लिया था और गामा अंतिम 15 में शामिल थे।

जोधपुर के महाराज इतनी कम उम्र में गामा की ताकत देखकर हैरान रह गए थे। इसी वजह से उन्होंने गामा को विजेता घोषित कर दिया था। इसके बाद पिता की तरह गामा भी दतिया महाराज के दरबार में पहलवानी करने लगे। भारत में सभी पहलवानों को धूल चटाने के बाद उन्होंने 1910 में लंदन का रुख किया।

1910 में वे अपने भाई इमाम बख्श के साथ इंटरनेशन कुश्ती चैंपियनशिप में भाग लेने इंग्लैंड गए। उनकी हाइट केवल 5 फीट और 7 इंच थी जिसके वजह से उन्हें इंटरनेशनल चैंपियनशिप में शामिल नहीं किया। इसके बाद उन्होंने वहां के पहलवानों को खुली चुनौती दी थी कि वे किसी भी पहलवान को 30 मिनिट में हरा सकते हैं लेकिन उनकी चुनौती किसी ने स्वीकार नहीं की थी। गामा की चुनौती लेने वाले पहले पहलवान अमेपिका के बेंजामिन रोलर थे। गामा ने पहली बार में रोलर को 1 मिनट 40 सेकेंड में चित कर दिया और दूसरे को 9 मिनट 10 सेकेंड में। दूसरे दिन उन्होंने 12 और पहलवानों को हराया।

अपने करियर में उन्होंने कई खिताब जीते, जिसमें वर्ल्ड हैवीवेट चैम्पियनशिप (1910) और वर्ल्ड कुश्ती चैम्पियनशिप (1927) भी जीता, जहां उन्हें 'टाइगर' की उपाधि से सम्मानित किया गया। बताया जाता है कि उन्होंने मार्शल आर्ट आर्टिस्ट ब्रूस ली को भी चैलेंज किया था। जब ब्रूस ली गामा पहलवान से मिले तो उन्होंने उनसे 'द कैट स्ट्रेच' सीखा, जो योग पर आधारित पुश-अप्स का वैरिएंट है। 20 वीं शताब्दी की शुरुआत में गामा पहलवान रुस्तम-ए-हिंद बने।

गामा पहलवान की एक्सरसाइज

रिपोर्ट बताती हैं कि गामा पहलवान रोजाना 10 घंटे से ज्यादा प्रैक्टिस करते थे और दमखम बढ़ाने के लिए अखाड़े में अपने 40 साथियों के साथ कुश्ती किया करते थे। यह बात जानकर आपको हैरानी होगी कि उनकी एक्सरसाइज में 5 हजार हिंदू स्क्व़ॉट्स या बैठक, 3 हजार हिंदू पुश-अप या डंड हुआ करते थे। सयाजीबाग में बड़ौदा संग्रहालय में एक 2.5 फीट क्यूबिकल पत्थर रखा हुआ है, जिसका वजन लगभग 1200 किलो है। बताया जाता है कि 23 दिसंबर 1902 को गामा ने 1200 किलो के इस पत्थर को गामा पहलवान ने उठा लिया था। गामा पहलवान के गांव के रहने वाले थे और उनका खान-पान भी देसी हुआ करता था। रिपोर्ट दावा करती हैं कि उनकी डाइट काफी हैवी हुआ करती थी। वे रोजाना 10 लीटर दूध पिया करते थे। इसके साथ ही 6 देसी मुर्गे, आधा लीटर घी, डेढ़ लीटर मक्खन भी उनकी डाइट में शामिल थे। साथ ही वे एक ड्रिंक बनाते थे जिसमें लगभग 200 ग्राम बादाम डालकर पिया करते थे और 100 रोटी खाया करते थे। इससे उन्हें ताकत मिलती थी और बड़े-बड़े पहलवानों को मात देने में मदद मिलती थी।

गामा पहलवान का अंतिम समय

विभाजन से पहले गामा पहलवान अमृतसर में ही रहा करते थे लेकिन सांप्रदायिक तनाव बढ़ने के कारण वे लाहौर रहने चले गए। गामा पहलवान ने अपने जीवन की आखिरी कुश्ती 1927 में स्वीडन के पहलवान जेस पीटरसन से लड़ी थी। उन्होंने अपनी जीवन में 50 से अधिक कुश्ती लड़ी थीं और एक को भी नहीं हारा।

बेचने पड़े थे मेडल

कुश्ती छोड़ने के बाद उन्हें अस्थमा और हृदय रोग की शिकायत हुई और उनकी हालत खराब होती गई। बताया जाता है कि उनके पास इतनी आर्थिक तंगी आ गई थी कि आखिरी समय में उन्हें अपनी मेडल तक बेचना पड़े थे। लंबी बीमारी के बाद आखिरकार 1960 में 82 वर्ष की उम्र में उनका निधन हो गया।

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