नई दिल्ली। भारत के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने शुक्रवार को भारत मंडपम, नई दिल्ली में आयोजित एक समारोह को संबोधित करते हुए राष्ट्रहित, राष्ट्रीय सुरक्षा और शिक्षा जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर अपना दृष्टिकोण साझा किया। उन्होंने स्पष्ट कहा कि अब वह समय नहीं रहा जब भारत उन देशों को आर्थिक रूप से मज़बूत करता रहे, जो संकट के समय उसके खिलाफ खड़े हो जाते हैं।
जयपुरिया इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट के वार्षिक दीक्षांत समारोह में बोलते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा, "अब समय है कि हम आर्थिक राष्ट्रवाद के बारे में गहराई से सोचें। हम उन देशों की अर्थव्यवस्थाओं को यात्रा या आयात के माध्यम से समर्थन नहीं दे सकते जो हमारे राष्ट्र के हितों के विरुद्ध खड़े होते हैं।"
उन्होंने आगे कहा कि प्रत्येक नागरिक राष्ट्र की सुरक्षा में अपनी भूमिका निभा सकता है और व्यापार, वाणिज्य तथा तकनीक के क्षेत्र में रणनीतिक निर्णय लेकर देश को सशक्त बना सकता है।
ऑपरेशन सिंदूर पर खुलकर प्रशंसा
उपराष्ट्रपति ने हाल ही में भारतीय सेना द्वारा किए गए ऑपरेशन सिंदूर की खुलकर सराहना की। उन्होंने इसे पाहलगाम आतंकी हमले के खिलाफ भारत का "सटीक और प्रभावी जवाब" करार दिया। उन्होंने कहा, "मैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दूरदर्शी नेतृत्व और सभी सशस्त्र बलों को सलाम करता हूं। यह भारत की सैन्य और राजनीतिक शक्ति का संतुलित प्रदर्शन है। अब दुनिया को भारत से प्रमाण नहीं चाहिए — उन्होंने देख लिया है, और स्वीकार भी कर लिया है।"
धनखड़ ने इस स्ट्राइक की तुलना 2011 में अमेरिका द्वारा ओसामा बिन लादेन के खिलाफ की गई कार्रवाई से की, और कहा कि भारत ने भी अब वैश्विक समुदाय को अपना रुख स्पष्ट कर दिया है।
हमारी शिक्षा प्रणाली कोई बाज़ार नहीं
शिक्षा के क्षेत्र में भी उपराष्ट्रपति ने व्यावसायीकरण और विदेशी प्रभाव पर चिंता जताई। उन्होंने कहा, "भारत जैसी सभ्यता शिक्षा और स्वास्थ्य को धन कमाने का साधन नहीं मानती। ये सेवा के क्षेत्र हैं। हमें शिक्षा के वस्तुकरण को रोकना होगा और शैक्षणिक शोध में कॉरपोरेट और CSR फंडिंग को प्राथमिकता देनी चाहिए।"
धनखड़ ने विदेशी विश्वविद्यालयों की भारत में उपस्थिति की भी समीक्षा की मांग की और कहा कि हमें राष्ट्र-विरोधी आख्यानों के प्रति सजग रहना चाहिए।
भारत की सांस्कृतिक शक्ति और वैश्विक भूमिका
उपराष्ट्रपति ने भारत की 5000 साल पुरानी सांस्कृतिक विरासत को विश्व में अद्वितीय बताते हुए कहा कि देश को पूर्व और पश्चिम के बीच की दूरी को पाटने का काम करना चाहिए, उसे और गहरा करने का नहीं। "कोई अन्य राष्ट्र इतनी समृद्ध परंपरा और इतिहास का दावा नहीं कर सकता। हमें अपने गौरवशाली अतीत से सीख लेकर वर्तमान और भविष्य की दिशा तय करनी है।"
उपराष्ट्रपति धनखड़ का यह भाषण न केवल भारत की सुरक्षा नीति और विदेश नीति पर स्पष्ट संदेश देता है, बल्कि शिक्षा जैसे मूलभूत क्षेत्र में भी नैतिक और व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाने की वकालत करता है। 'राष्ट्र प्रथम' की भावना उनके पूरे संबोधन का केन्द्रीय संदेश रही।