महाकुंभ 2025: 108 डुबकियां और पिंडदान के साथ, जूना अखाड़े में 1500+ नागा संन्यासियों का दीक्षा संस्कार संपन्न

By: Sandeep Gupta Sun, 19 Jan 2025 11:02:21

महाकुंभ 2025: 108 डुबकियां और पिंडदान के साथ, जूना अखाड़े में 1500+ नागा संन्यासियों का दीक्षा संस्कार संपन्न

गंगा के तट पर श्री पंच दशनाम जूना अखाड़े के अवधूतों को नागा संन्यासी बनाने की प्रक्रिया प्रारंभ हो चुकी है। जूना अखाड़ा, जो सबसे अधिक नागा संन्यासियों वाला अखाड़ा है, में नागाओं की संख्या तेजी से बढ़ रही है। इस विस्तार प्रक्रिया का शुभारंभ शनिवार से किया गया।

जूना अखाड़े के 1500 अवधूत बने नागा संन्यासी

भगवान शिव के दिगंबर भक्त नागा संन्यासी महाकुंभ में श्रद्धालुओं का मुख्य आकर्षण होते हैं। महाकुंभ में लाखों भक्तों की आस्था का केंद्र जूना अखाड़े का शिविर बनता है। सेक्टर 20 में स्थित जूना अखाड़े की छावनी और गंगा का तट नागा संन्यासियों की पवित्र परंपरा का साक्षी बना। अंतरराष्ट्रीय मंत्री श्री महंत चैतन्य पुरी ने बताया कि नागा दीक्षा प्रक्रिया की शुरुआत शनिवार से हुई। पहले चरण में 1500 से अधिक अवधूतों को नागा संन्यासी की दीक्षा दी गई। जूना अखाड़े में वर्तमान में 5.3 लाख से अधिक नागा संन्यासी हैं, जो इसे सबसे बड़ा अखाड़ा बनाता है।

महाकुंभ और नागा दीक्षा का विशेष संबंध

नागा संन्यासी बनने की प्रक्रिया केवल कुंभ के दौरान ही पूरी की जाती है। दीक्षा के लिए साधक को पहले ब्रह्मचारी बनकर तीन वर्षों तक गुरु की सेवा और अखाड़े के नियमों का पालन करना होता है। इस अवधि के दौरान उनकी कठोर परीक्षा ली जाती है। गुरु और अखाड़ा यह सुनिश्चित करते हैं कि साधक दीक्षा के योग्य है। इसके बाद, महाकुंभ में उसे ब्रह्मचारी से महापुरुष और अंततः अवधूत के रूप में दीक्षित किया जाता है।

108 डुबकियां और अंतिम प्रक्रिया

नागा दीक्षा प्रक्रिया में साधक का मुंडन किया जाता है और उसे गंगा में 108 बार डुबकी लगवाई जाती है। अंतिम चरण में पिंडदान, दंडी संस्कार और अन्य आध्यात्मिक अनुष्ठान शामिल होते हैं। दीक्षा के बाद अखाड़े की धर्म ध्वजा के नीचे आचार्य महामंडलेश्वर नागा संन्यासी को दीक्षा प्रदान करते हैं।

प्रयागराज से हरिद्वार तक नागा संन्यासियों की पहचान


नागा संन्यासियों को उनके दीक्षा स्थान के आधार पर अलग-अलग नामों से जाना जाता है:

प्रयागराज (महाकुंभ): राज राजेश्वरी नागा
उज्जैन: खूनी नागा
हरिद्वार: बर्फानी नागा
नासिक: खिचड़िया नागा

इन नामों से यह पहचान होती है कि नागा संन्यासी ने किस स्थान पर दीक्षा प्राप्त की है।

जूना अखाड़े की परंपरा और महत्ता

भगवान शिव के अनन्य भक्त नागा संन्यासी अपनी दिगंबर अवस्था और तपस्वी जीवनशैली के लिए जाने जाते हैं। हर 12 वर्षों में आयोजित होने वाले महाकुंभ में यह दीक्षा परंपरा अखाड़े के आध्यात्मिक और सामाजिक विस्तार का प्रतीक बनती है।

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