BJP ने लिया झारखंड की 'रोटी, बेटी और माटी' बचाने का संकल्प! हेमंत सरकार में आदिवासियों पर क्यों मंडरा रहा है खतरा?

By: Sandeep Gupta Thu, 17 Oct 2024 5:30:43

BJP ने लिया झारखंड की 'रोटी, बेटी और माटी' बचाने का संकल्प! हेमंत सरकार में आदिवासियों पर क्यों मंडरा रहा है खतरा?

झारखंड में साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले सत्तारूढ़ हेमंत सोरेन सरकार भारतीय जनता पार्टी (BJP) के चुनावी संकल्प 'रोटी, बेटी और माटी' पर घिर गई है। झारखंड में बांग्लादेशी घुसपैठियों के बढ़ते खतरे को देखते हुए भाजपा ने रोजगार, महिला-सम्मान और जमीन' बचाने का मंत्र परिवर्तन यात्रा में दिया। भाजपा ने साफ कर दिया है कि आगामी झारखंड विधानसभा चुनाव "रोटी, बेटी और माटी" बचाने का चुनाव है!

भाजपा के इस चुनावी संकल्प को राज्य के लोगों खासकर महिलाओं का काफी समर्थन मिल रहा है। झारखंड की महिलाएं पोटली में मिट्टी लेकर भाजपा की परिवर्तन यात्रा में आ रही हैं और कह रही हैं कि यहां माटी, बेटी और रोटी सुरक्षित नहीं है।भाजपा "रोटी, बेटी और माटी" के चुनावी संकल्प से बांग्लादेशी और रोहिंग्या घुसपैठियों के खतरे से झारखंड वासियों को सुरक्षित करना चाहती है।

बांग्लादेशी झारखंड आते हैं और आदिवासी लड़कियों से शादी करते हैं और जमीन हड़पकर लैंड जिहाद करते हैं। इनकी बढ़ती संख्या की वजह से आदिवासियों के रोजगार और इलाकों के छोटे व्यवसाय पर भी खतरा मंडरा रहा है। ऐसे में भाजपा अपने एक प्रण से राज्य की गंभीर समस्याओं का समाधान करना चाहती है। भाजपा का संकल्प है कि हम रोजगार, सुरक्षा और अधिकार भी देंगे और विदेशी घुसपैठ नहीं होने देंगे।

यहां माटी से मतलब, बांग्लादेशी और रोहिंग्या घुसपैठियों के कब्जाएं जमीन को सुरक्षित करना, बेटी से मतलब, बेटियों और महिलाओं की सुरक्षा और रोटी का मतलब रोजगार से है। आइए ये समझने की कोशिश करते हैं आखिर भाजपा का ये चुनावी अभियान क्यों जरूरी है और हेमंत सरकार ने कैसे राज्य की 'बेटी, रोटी और माटी' और आदिवासी समुदाय को हाशिए पर डाल दिया है?

Roti, Beti, Mati : भाजपा के 'रोटी, बेटी और माटी' चुनावी अभियान के मायने

भाजपा ने बेरोजगारी, लव जिहाद, महिलाओं के खिलाफ अत्याचार और अवैध घुसपैठियों के मुद्दों से निपटने का संकल्प लिया है। भाजपा जिसे राज्य की खाद्य सुरक्षा, महिलाओं की सुरक्षा और भूमि अखंडता के लिए खतरा मानती है। भाजपा के 'बेटी, रोटी और माटी' चुनावी अभियान का मकसद राज्य और उसके निवासियों को एक सुरक्षित माहौल देना है, जिसमें उनको उनके अधिकार मिल सके।

झारखंड चुनाव प्रभारी शिवराज सिंह चौहान ने परिवर्तन यात्रा में कहा है कि आगामी झारखंड विधानसभा चुनाव "बेटी, रोटी और माटी" बचाने का चुनाव है ! झारखंड की बहनें अलग-अलग पोटली में मिट्टी लेकर आई हैं और कह रही हैं कि यहां माटी, बेटी और रोटी सुरक्षित नहीं है। मैं भारतीय जनता पार्टी की ओर से वचन देता हूं कि झारखंड में माटी, बेटी और रोटी की सुरक्षा हम करेंगे।

शिवराज सिंह चौहान बोले, "झारखंड की माताएं, बहनें, बेटियां अपील कर रही हैं कि झारखंड की माटी, रोटी, बेटी संकट में है। माटी मतलब विदेशी घुसपैठियां आ रहे हैं, बेटी मतलब बेटियां सुरक्षित नहीं है और रोटी मतलब रोजगार नहीं है और इसलिए वो अपील कर रही हैं कि माटी, रोटी, बेटी बचा लीजिए। मैं अपनी बहनों को भाजपा की ओर से कहना चाहता हूं कि हम माटी, रोटी, बेटी को सुरक्षित करेंगे। भाजपा का संकल्प है कि हम रोजगार भी देंगे और विदेशी घुसपैठ नहीं होने देंगे।''

कैसे हेमंत सरकार में झारखंड की 'रोटी, बेटी और माटी' संकट में है?

माटी से मतलब झारखंड की घरती से है, जहां बांग्लादेशी घुसपैठियों की संख्या बढ़ती जा रही है। जिसने आदिवासी समुदायों के लिए गंभीर चिंताएं पैदा कर दी हैं। स्थानीय नागरिकों का मानना है कि ये घुसपैठिये न केवल उनकी जमीनों और संसाधनों पर कब्जा कर रहे हैं, बल्कि सांस्कृतिक और सामाजिक ताने-बाने को भी प्रभावित कर रहे हैं।

बांग्लादेशी घुसपैठियों ने कई क्षेत्रों में अवैध रूप से बसेरा बना लिया है। अवैध बांग्लादेशी घुसपैठ का खतरा सबसे ज्यादा संथाल परगना में है। जिमसें दुमका, गोड्डा से लेकर पाकुड़ जिले शामिल हैं। झारखंड में फिलहाल सबसे ज्यादा बांग्लादेशी घुसपैठिए पाकुड़ में आए हैं। 2011 की जनगणना के मुताबिक पाकुड़ में जनसंख्या वृद्धि दर आधिकारिक तौर 28 फीसदी थी। हाल ही में एक सत्यापन प्रक्रिया से पता चला है कि पाकुड़ के मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में मतदाता बढ़ोतरी दर 65 प्रतिशत है।

यह स्थिति आदिवासी समुदायों के लिए खतरा बन गई है क्योंकि उनकी जमीनों पर कब्जा किया जा रहा है। वो आदिवासी महिलाओं से शादी कर रहे हैं और उनकी जमीन हड़प रहे हैं। इतना ही नहीं वो इलाके में नौकरियों और बाकी रोजगारों पर भी अपना कब्जा कर रहे हैं। स्थानीय लोगों का आरोप है कि हेमंत सरकार इस मुद्दे पर निष्क्रिय है और न तो पर्याप्त कार्रवाई कर रही है, न ही सुरक्षा प्रदान कर रही है।

कुछ महीने पहले ही एक आदिवासी परिवार की दुर्दशा सामने आई थी। पाकुड़ के गांव में एक आदिवासी परिवार पर 150 बांग्लादेशी घुसपैठयों ने हमला किया था। ये विवाद कोर्ट भी पहुंचा था फिर भी मामला नहीं सुलझा। इस आदिवासी परिवार के 5 लोग अगस्त में अस्पताल में जिंदगी और मौत से जूझ रहे थे। ये तो बस एक घटना है लेकिन ऐसी घटनाएं आए दिन आपको सुनने को मिल जाएगी।
लैंड जिहाद को लेकर हेमंत सोरेन पर उठ रहे हैं सवाल!

भाजपा लैंड जिहाद को लेकर हेमंत सोरेन की सरकार को काफी वक्त से घेर रही है। झारखंड देश भर में हो रहे लैंड जिहाद का केंद्र बन गया है। झारखंड हाई कोर्ट ने भी बांग्लादेशी घुसपैठ मामले में झारखंड सरकार पर सवाल उठाए हैं। कोर्ट ने कहा है कि बांग्लादेशी घुसपैठ पर सरकार ना-ना करती है लेकिन इलाकों में जनजातीय जनसंख्या कैसे घट रही है....इसपर चुप्पी साध लेती है। हेमंत सोरेन अपनी नाकामियों को छिपाने के लिए बार-बार केंद्र सरकार पर दोष मढ़ते हैं। वो कहते हैं कि अगर विदेशी लोग हमारे यहां आ रहे हैं तो इसपर केंद्र सरकार को कार्रवाई करना चाहिए। कभी कहते हैं कि ये बिहार और झारखंड के लोग हैं।

कुल मिलाकर आप इतना कह सकते हैं कि वोटबैंक की राजनीति के लिए हेमंत सोरेन ने इन बांग्लादेशी घुसपैठियों पर खामोश है। भले ही वो आदिवासियों के नाम पर अपनी राजनीति चमकाए लेकिन उनके हक-अधिकारों के लिए वह कोई काम नहीं करना चाहते हैं।

हेमंत सोरेन सरकार की कार्रवाई पर कई सवाल उठाए जा रहे हैं। आलोचकों का कहना है कि सरकार ने इस गंभीर मुद्दे की अनदेखी की है और प्रभावी उपाय नहीं किए हैं। जिससे आदिवासी समुदायों की समस्याएं बढ़ रही हैं। लेकिन भाजपा ने वादा किया है कि झारखंड में सत्ता में आते ही वह सबसे पहले इन अवैध प्रवासियों को बाहर करेगी। सत्ता में आने से पहले ही केंद्र की मोदी सरकार ने ईडी को घुसपैठियों की जांच में लगा दिया है। इनको हटना केंद्र की प्राथमिकताओं में शामिल है।

झारखंड में बांग्लादेशी घुसपैठियों की समस्या केवल एक राजनीतिक मुद्दा नहीं है, बल्कि यह आदिवासी समुदायों के अस्तित्व और पहचान का संकट है।

महिला सुरक्षा को कैसे हेमंत सोरेन ने ताक पर रखा है?

माटी के बाद बात बेटी की... भाजपा ने प्रण लिया है कि वह झारखंड में महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करेगी। झारखंड में महिला सुरक्षा एक अहम मुद्दा बन चुका है, लेकिन हेमंत सोरेन सरकार की कार्रवाई इस दिशा में नाकाफी साबित हो रही है। हाल के वर्षों में महिलाओं के खिलाफ अपराधों की बढ़ती संख्या ने इस बात को और स्पष्ट कर दिया है कि सरकार महिलाओं के खिलाफ बढ़ रहे अपराध को गंभीरता से नहीं ले रही है।

हाल के रिपोर्टों के मुताबिक झारखंड में महिलाओं के खिलाफ अपराधों में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। 2020 से 2022 के बीच, महिलाओं के खिलाफ अपराधों में 30% से अधिक की बढ़ोतरी हुई है। इनमें बलात्कार, यौन उत्पीड़न और घरेलू हिंसा के मामले प्रमुख हैं। इसका ज्यादातर शिकार आदिवासी महिलाएं हो रही हैं। विशेष रूप से, झारखंड में बलात्कार के मामले में 2022 में 1,224 घटनाएं दर्ज की गईं, जो कि पिछले वर्ष की तुलना में 18% अधिक हैं।

महिला सुरक्षा के मुद्दे पर पुलिस का रैवाया भी संतोषजनक नहीं रही है। कई महिलाएं शिकायत करने के बावजूद थानों में अनसुनी रह जाती हैं। रिपोर्टों के मुताबिक केवल 20% मामलों में ही पुलिस ने उचित कार्रवाई की है, जबकि अधिकांश मामलों में प्राथमिकी तक दर्ज नहीं की जाती है। यह दिखाता है कि सरकार और पुलिस दोनों इस गंभीर मुद्दे को गंभीरता से नहीं ले रहे हैं।

महिला सुरक्षा के लिए कई योजनाएं तो हेमंत सरकार ने बनाई हैं, लेकिन उन पर अमल करने में ढिलाई देखने को मिल रही है। "महिला सुरक्षा योजना" और "आशा" जैसी योजनाओं के लिए बजट आवंटन में कमी आई है। जिन योजनाओं का उद्देश्य महिलाओं को सुरक्षा और सहायता प्रदान करना था, वे अब केवल कागजों पर सीमित रह गई हैं। लेकिन भाजपा ने कहा है कि वह सत्ता में आने पर सबसे पहले महिलाओं की सुरक्षा को प्राथमिकता देंगे।
झारखंड में 'रोटी' यानी बेरोजगारी सबसे बड़ी चुनौती?

रोटी को बचाने से भाजपा का मतलब राज्य में रोजगार के अवसर पैदा करना है। झारखंड में बेरोजगारी की समस्या एक गंभीर संकट बनती जा रही है, और हेमंत सोरेन सरकार की नीतियां इस मुद्दे को हल करने में असफल साबित हो रही हैं। 2023 में झारखंड में बेरोजगारी दर लगभग 12% तक पहुंच गई है, जो कि राष्ट्रीय औसत 7% से काफी अधिक है। यह आंकड़ा न केवल चिंताजनक है, बल्कि यह दर्शाता है कि पिछले कुछ सालों में रोजगार सृजन की प्रक्रिया धीमी हो गई है। 2021 में बेरोजगारी दर 8% थी, जो पिछले दो सालों में तेजी से बढ़ी है।

हेमंत सरकार की अलग-अलग योजनाएं, जैसे "मुख्यमंत्री रोजगार सृजन योजना", में अपेक्षित परिणाम नहीं मिल रहे हैं। राज्य सरकार के मुताबिक 2022-23 में केवल 25,000 नौकरियां सृजित की गईं, जबकि लाखों युवा रोजगार की तलाश में हैं। यह स्थिति यह संकेत देती है कि राज्य में रोजगार सृजन की गति बेहद धीमी है।

हेमंत सोरेन सरकार की नीतियां रोजगार सृजन में नाकाम साबित हुई हैं। रोजगार के अवसरों की कमी और उद्योगों की अनुपस्थिति ने स्थिति को और खराब किया है। उद्योग जगत का झारखंड में निवेश बढ़ाने में विफल रहना भी बेरोजगारी के संकट को बढ़ाने का मुख्य कारण है। लेकिन भाजपा ने साफ कर दिया है कि वह सत्ता में आते ही इस राज्य में ज्यादा से ज्यादा रोजगार सृजन पर ध्यान देंगे।

'रोटी, बेटी और माटी' जैसी बुनियादी जरूरतों की रक्षा करने की भाजपा का प्रण राज्य की चुनौतियों से निपटने के प्रति उसके समग्र दृष्टिकोण को दिखाती है। बेरोजगारी को संबोधित करके, महिलाओं को लव जिहाद और अन्य अत्याचारों से बचाकर, और भूमि को संरक्षित करने के लिए अवैध अप्रवास का मुकाबला करके, भाजपा का लक्ष्य राज्य और उसके लोगों की सुरक्षा और समृद्धि सुनिश्चित करना है।

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