नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक श्रीलंकाई तमिल नागरिक द्वारा दायर उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें उसने भारत से निर्वासन पर रोक लगाने की मांग की थी। याचिकाकर्ता का दावा था कि यदि उसे वापस श्रीलंका भेजा गया, तो उसकी जान को गंभीर खतरा हो सकता है। इस पर अदालत ने दो टूक कहा कि भारत कोई “धर्मशाला” नहीं है जो दुनियाभर के शरणार्थियों को जगह देता रहे।
यह मामला सुप्रीम कोर्ट की पीठ में न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन के समक्ष सुनवाई के लिए आया। याचिकाकर्ता श्रीलंकाई तमिल है, जिसे भारत में अवैध गतिविधियों (UAPA) के तहत दोषी ठहराया गया था और सात साल की सजा सुनाई गई थी। सजा पूरी होने के बाद भी वह लगभग तीन वर्षों से निरंतर हिरासत में था। इसी के खिलाफ उसने कोर्ट का रुख किया।
याचिकाकर्ता की दलीलें
याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील ने कहा कि व्यक्ति ने भारत में वैध वीजा पर प्रवेश किया था और उसकी पत्नी व बच्चे पहले से ही भारत में रह रहे हैं। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि सजा पूरी होने के बावजूद उसे बिना किसी कानूनी प्रक्रिया के हिरासत में रखा गया है, जो उसके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है। साथ ही, उन्होंने यह भी कहा कि यदि उसे श्रीलंका भेजा गया तो उसकी जान को खतरा है क्योंकि वहां की परिस्थितियां उसके लिए अनुकूल नहीं हैं।
सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी
हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने इन दलीलों को खारिज कर दिया और साफ कहा कि भारत को हर देश से आए शरणार्थियों के लिए शरणस्थली नहीं बनाया जा सकता। न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता ने कहा, "क्या भारत पूरी दुनिया से आए शरणार्थियों को अपने यहां बसाएगा? हमारी आबादी पहले ही 140 करोड़ है। यह कोई धर्मशाला नहीं है जहां कोई भी आकर बस जाए।"
अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि भारत में बसने का अधिकार केवल भारतीय नागरिकों को प्राप्त है, जो संविधान के अनुच्छेद 19 में निहित है। विदेशी नागरिक केवल सीमित परिस्थितियों में ही निवास की अनुमति मांग सकते हैं और वह भी सरकार की नीति के अनुरूप।
अनुच्छेद 21 का कोई उल्लंघन नहीं
याचिकाकर्ता के वकील ने यह भी तर्क दिया कि उसका अनुच्छेद 21 — जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार — का उल्लंघन हुआ है। लेकिन कोर्ट ने यह कहते हुए इस तर्क को भी खारिज कर दिया कि व्यक्ति की वर्तमान हिरासत कानूनी प्रक्रिया के अनुसार है और किसी भी संवैधानिक अधिकार का हनन नहीं हुआ है।
मद्रास हाईकोर्ट का आदेश बरकरार
सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास हाईकोर्ट के उस आदेश को भी सही ठहराया, जिसमें कहा गया था कि याचिकाकर्ता को सजा पूरी होते ही भारत से तत्काल निष्कासित किया जाए। सुप्रीम कोर्ट ने याचिका को "बेबुनियाद और अव्यवहारिक" करार देते हुए खारिज कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से स्पष्ट संदेश गया है कि भारत अपनी संप्रभुता और संसाधनों की सीमाओं को देखते हुए किसी भी विदेशी नागरिक को शरण देने को बाध्य नहीं है, जब तक कि वह कानूनी रूप से उचित प्रक्रिया के तहत पात्र न हो। अदालत ने यह भी संकेत दिया कि जनसंख्या और सुरक्षा जैसे कारकों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।