सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक अहम फैसला सुनाया है जिसमें सिविल जज कैडर में सीधे प्रवेश के लिए कम से कम 3 साल की कानूनी प्रैक्टिस को अनिवार्य कर दिया गया है। इसका मतलब यह हुआ कि अब नई लॉ डिग्री प्राप्त करने वाले छात्र बिना किसी व्यावहारिक कानूनी अनुभव के सीधे न्यायिक सेवा परीक्षा में शामिल नहीं हो पाएंगे। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने न्यायिक भर्ती प्रक्रिया को पूरी तरह से नया रूप दे दिया है और देश भर के हजारों लॉ ग्रेजुएट्स की उम्मीदों पर बड़ा असर डाला है।
इस फैसले से पहले सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई ने कहा था कि मामले में विचार के लिए कुल आठ महत्वपूर्ण मुद्दे निर्धारित किए गए हैं। पहला यह कि आरक्षण के तहत 10 प्रतिशत कोटा को 2022 के फैसले के अनुसार मूल 25 प्रतिशत कोटा पर बहाल किया जाना चाहिए। दूसरा, न्यायिक सेवा परीक्षा में भाग लेने के लिए न्यूनतम योग्यता के तौर पर 3 साल की सेवा या प्रैक्टिस आवश्यक है। तीसरा और चौथा मुद्दा सिविल जज (जूनियर डिवीजन) के लिए मेधावी उम्मीदवारों के लिए 10 प्रतिशत कोटा के बारे में था।
साथ ही, उन्होंने पाँचवा मुद्दा भी उठाया कि उपयुक्तता परीक्षण के लिए कोई सीधा-सरल फार्मूला निर्धारित नहीं किया जा सकता है, बल्कि विभिन्न परिस्थितियों और कारकों को ध्यान में रखकर निर्णय लिया जाना चाहिए। छठा मुद्दा यह था कि न्यायिक सेवा परीक्षा में शामिल होने के लिए न्यूनतम कानूनी प्रैक्टिस की अवधि को बहाल किया जाए और इसका हिसाब नामांकन की तारीख से किया जाना चाहिए।
सीजेआई ने यह भी स्पष्ट किया कि नए विधि स्नातकों को सीधे नियुक्त करने से कई समस्याएं उत्पन्न हुई हैं, जैसा कि विभिन्न हाईकोर्ट के हलफनामों से भी स्पष्ट होता है। इस संदर्भ में यह बात सहमति बनी है कि न्यायालय के साथ काम करने का व्यावहारिक अनुभव अत्यंत आवश्यक है। सभी उच्च न्यायालय इस बात से सहमत हैं कि न्यूनतम प्रैक्टिस की आवश्यकता न्यायिक सेवा के लिए आवश्यक है।
उन्होंने यह भी बताया कि जज बनने के बाद उन्हें जीवन, स्वतंत्रता, संपत्ति आदि से जुड़े जटिल मामलों का सामना करना पड़ता है, जिसका समाधान केवल किताबों के ज्ञान से नहीं हो सकता। इसके लिए वरिष्ठ जजों का मार्गदर्शन और न्यायालय की कार्यप्रणाली की समझ भी जरूरी होती है। इसलिए यह आवश्यक है कि न्यायिक सेवा परीक्षा में शामिल होने से पहले उम्मीदवार के पास व्यावहारिक अनुभव हो। इसीलिए अनुभव की गणना अंतिम पंजीकरण के समय से की जाएगी, क्योंकि AIBE जैसी परीक्षाएं विभिन्न समयों पर आयोजित होती हैं। यह भी जरूरी है कि दस वर्षों से वकालत कर रहे वकील यह प्रमाणित करें कि उम्मीदवार ने न्यूनतम आवश्यक अवधि की कानूनी प्रैक्टिस पूरी की है।
इस फैसले के बाद अब नए लॉ ग्रेजुएट्स के लिए सीधे जज बनने का रास्ता कठिन हो गया है और उन्हें कम से कम तीन साल का कानूनी अभ्यास पूरा करना होगा, जिससे न्यायपालिका में अनुभव के साथ बेहतर गुणवत्ता सुनिश्चित की जा सके।