10 साल बाद राजस्थान में कांग्रेस को मिली सफलता, डोटासरा और सचिन पायलट के सिर बंधा सेहरा
By: Rajesh Bhagtani Wed, 05 June 2024 11:39:06
जयपुर। राजस्थान लोकसभा चुनाव में भाजपा को लोकसभा चुनाव 2014 और 2019 के मुकाबले में हार का सामना करना पड़ा है। लोकसभा चुनाव 2024 में भाजपा को राजस्थान में सिर्फ 14 सीटों पर सफलता प्राप्त हुई है, जबकि 2014 व 2019 में भाजपा ने क्लीन स्वीप अर्थात् सभी 25 सीटों पर अपना परचम लहराने में सफलता प्राप्त की थी।
विधानसभा चुनाव में भारी बहुमत से सरकार बनाने वाली भाजपा को लोकसभा चुनाव में हार का सामना क्यों करना पड़ा इसे लेकर राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि भाजपा की आन्तरिक गुटबाजी और बड़े नेताओं को हाशिये पर धकेलने के कारण भाजपा को यह नुकसान उठाना पड़ा। विशेष रूप से केन्द्रीय नेतृत्व को भाजपा की कद्दावर नेता वसुंधरा राजे को दरकिनार करना भारी पड़ गया। इसके अतिरिक्त केन्द्रीय नेताओं का लोकसभा चुनाव में जीत के प्रति अति आत्मविश्वास भाजपा के लिए नुकसानदायक रहा। केन्द्रीय नेतृत्व यह मान बैठा कि तीसरी बार राज्य में एकतरफा जीत होगी। यही आत्मविश्वास बड़े नेताओं की नाराजगी का कारण बन बैठा राज्य के बड़े नेताओं ने चुनाव से कन्नी काट ली। यह चुनाव मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा के नए कंधों पर आकर टिक गया। अब भाजपा के कुछ दिग्गज विधायकों का खेल शुरू हुआ। बस एक ही मकसद अपने लोग जीतें, बाकी प्रत्याशियों के साथ भितरघात पार्टी के अंदरूनी सूत्रों के अनुसार धौलपुर करौली, भरतपुर, सीकर, झुंझुनं चूरू, नागौर, टोंक-सवाई माधोपुर, दौसा, बाड़मेर, बांसवाड़ा सीट पर अपने तमाम वजीरों को भाजपा प्रत्याशियों के खिलाफ ही सक्रिय कर दिया गया। यह भितरघात भाजपा के लिए पुराना प्रदर्शन दोहराने में बाधा बन गया।
कांग्रेस इस मामले में कुछ हद तक भाजपा से बेहतर रही। हालांकि भाजपा से ज्यादा गुटबाजी और भितरघात कांग्रेस के बड़े नेताओं में कायम रही, लेकिन लोकसभा चुनाव में उसका ज्यादा असर नहीं पड़ा। पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत पूरे चुनाव के दौरान अपने बेटे वैभव गहलोत को जिताने के प्रयास में जालोर से ज्यादा बाहर नहीं निकल सके। गहलोत ने राज्य में कुल 53 चुनावी सभा कीं। इनमें से अकेले जालोर में करीब 22 सभाओं को संबोधित किया। ऐसे में सचिन पायलट और गोविंद सिंह डोटासरा ने चुनाव की कमान संभाल ली। दोनों की जोड़ी ने पूरे चुनाव में कांग्रेस का माहौल बनाए रखा। कांग्रेस का अन्य दलों से गठबंधन के साथ एकजुटता से लड़ने का फार्मूला भी सफल रहा। प्रदेश में पिछले दो लोकसभा चुनावों में ज्यादातर उम्मीदवारों की जीत का अंतर लाखों में रहा है, लेकिन इस बार ज्यादातर सीटों पर मतगणना के दौरान जयपुर ग्रामीण, झुंझुनूं नागौर, कोटा, जोधपुर में कांटे का मुकाबला देखने को मिला। जयपुर ग्रामीण और झुंझुनूं में तो एक-दो बार रुझान ऊपर- नीचे भी हुआ। इससे उम्मीदवार और उनके समर्थकों की सांसें ऊपर नीचे होती रहीं। लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने उत्तरी-पूर्वी राजस्थान में शानदार प्रदर्शन किया। उत्तरी राजस्थान के शेखावाटी की चूरू, झुंझुनं, सीकर और गठबंधन में नागौर लोकसभा सीट पर बाजी मारी, वहीं पूर्वी राजस्थान की दौसा, भरतपुर, धौलपुर करौली और टॉक सवाई माधोपुर सीट जीती। वहीं पश्चिमी और दक्षिणी राजस्थान में एक-एक सीट जीतने में कामयाबी मिली है।
राज्य की 25 सीटों में से भाजपा ने 14 सीट जीतीं। कांग्रेस ने 8 और उसके सहयोगी दलों ने 3 सीटों पर बाजी मारी। कांग्रेस का उत्तरी राजस्थान के शेखावाटी और पूर्वी राजस्थान में शानदार प्रदर्शन रहा। लंबे समय बाद भाजपा-कांग्रेस के अलावा अन्य दलों ने 3 सीटें जीतीं। चुनाव में किस्मत आजमा रहे लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला फिर जीतने के साथ संसद पहुंच गए हैं। चार केन्द्रीय मंत्रियों में से एक कैलाश चौधरी को बाड़मेर लोकसभा सीट से हार का सामना करना पड़ा। लोकसभा चुनाव में एक दशक बाद कांग्रेस की वापसी का सेहरा प्रदेशाध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा और सचिन पायलट के सिर बंधा। डोटासरा और पायलट के आक्रामक प्रचार की बदौलत कांग्रेस दोनों चरणों में प्रभावी नजर आई। शेखावाटी में सीपीएम से गठबंधन और भाजपा के बागी राहुल कस्वां को टिकट दिलाने में डोटासरा ने अहम भूमिका निभाई। इसी के दम शेखावटी से भाजपा का सूपड़ा साफ हो गया। उधर, पायलट ने अपने करीबी ब्रजेन्द्र ओला, भजनलाल जाटव, मुरारीलाल मीना, हरीश मीना, संजना जाटव और कुलदीप इंदौरा को न केवल टिकट दिलाए बल्कि उनकी जीत में भी अहम भूमिका निभाई।