नई दिल्ली। 18 मई 1974 — यह तारीख भारतीय इतिहास में एक ऐसा मोड़ थी, जब भारत ने दुनिया को अपनी वैज्ञानिक और सामरिक शक्ति का एहसास कराया। राजस्थान के पोकरण में ‘ऑपरेशन स्माइलिंग बुद्धा’ के तहत भारत ने पहला परमाणु परीक्षण सफलतापूर्वक पूरा किया, जिसने देश को परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्रों की श्रेणी में ला खड़ा किया। इस ऐतिहासिक दिन की 51वीं वर्षगांठ पर कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को श्रद्धांजलि अर्पित की और वैज्ञानिकों के योगदान को याद किया।
राहुल गांधी ने अपने फेसबुक पोस्ट में लिखा, "श्रीमती इंदिरा गांधी के दूरदर्शी और निर्णायक नेतृत्व में भारत ने परमाणु शक्ति के क्षेत्र में ऐतिहासिक छलांग लगाई। मैं उन वैज्ञानिकों का भी आभार व्यक्त करता हूं, जिनके समर्पण और प्रतिभा से यह संभव हुआ।"
उन्होंने उन हीरोज को याद किया जिनकी काबिलियत के बूते भारत दुनिया के छह परमाणु संपन्न राष्ट्रों में शामिल हो गया। उन्होंने आगे लिखा- "मैं उन प्रतिभाशाली वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं के प्रति हार्दिक आभार व्यक्त करता हूं जिनके समर्पण ने इसे संभव बनाया। उनकी विरासत आज भी जीवित है, जो पीढ़ियों को तकनीकी उन्नति करने और भारत की सामरिक क्षमताओं को मजबूत करने के लिए प्रेरित करती है।"
बता दें, इस परमाणु परीक्षण को सफल बनाने में एक दशक से भी ज्यादा का समय लगा था। देश के प्रसिद्ध वैज्ञानिकों की अथक मेहनत के बल पर दुनिया हमारी अहमियत समझ पाई थी। इससे पहले संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) में शामिल अमेरिका, रूस, फ्रांस, यूके, चीन ही परमाणु ताकत से संपन्न थे।
भारत ने इस परमाणु परीक्षण में पूरी गोपनीयता बरती। जैसे ही दुनिया को पता चला, शोर मच गया। अमेरिका ने भारत के परमाणु कार्यक्रम पर कई तरह के प्रतिबंध लगाए थे।
पोकरण-2: जब भारत ने फिर से दिखाई अपनी शक्ति
भारत ने 1998 में ऑपरेशन शक्ति के तहत पांच और परमाणु परीक्षण किए, जिससे यह साबित हो गया कि भारत अपनी रणनीतिक जरूरतों के लिए आत्मनिर्भर है। तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने यह स्पष्ट किया कि भारत की सुरक्षा सर्वोच्च प्राथमिकता है और परमाणु परीक्षण उसी का हिस्सा है। इस बार भी परीक्षण की योजना अत्यंत गोपनीय रखी गई और वैश्विक बिरादरी को इसकी भनक परीक्षण के बाद ही लगी।
अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया: सराहना और आलोचना दोनों का मिला सामना
पोकरण परीक्षणों के बाद भारत को अंतरराष्ट्रीय मंच पर आलोचना और आर्थिक प्रतिबंधों का सामना करना पड़ा। अमेरिका, कनाडा और कई यूरोपीय देशों ने भारत के खिलाफ कड़े कदम उठाए। लेकिन भारत ने न केवल इन चुनौतियों का डटकर सामना किया, बल्कि अपनी स्वदेशी तकनीक को और मजबूत किया। वर्षों बाद, यही देश भारत के सामरिक और तकनीकी आत्मनिर्भरता की सराहना करने लगे।
वैज्ञानिकों का योगदान: जिनके समर्पण ने रचा इतिहास
भारत के परमाणु कार्यक्रम की सफलता के पीछे कुछ अद्वितीय वैज्ञानिकों का योगदान रहा, जिनमें डॉ. होमी भाभा, डॉ. राजा रामन्ना और डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम जैसे नाम शामिल हैं। इन्होंने दशकों तक देश के लिए बिना प्रचार के काम किया और भारत को विज्ञान और सुरक्षा के क्षेत्र में नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया। आज भी उनकी मेहनत और दूरदृष्टि आने वाली पीढ़ियों को प्रेरणा देती है।