
लोकसभा में वंदे मातरम् को लेकर जारी चर्चा के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विपक्ष, विशेषकर कांग्रेस, पर कड़ा प्रहार किया। पीएम मोदी ने कहा कि राष्ट्रीय गीत को लेकर कांग्रेस के भीतर वर्षों पहले जो रुख अपनाया गया था, वह न केवल भ्रमित करने वाला था बल्कि जिन्ना की सोच से प्रभावित भी दिखाई देता है। प्रधानमंत्री ने बहस की शुरुआत ही इस टिप्पणी से की कि जवाहरलाल नेहरू ने एक समय नेताजी सुभाष चंद्र बोस को एक पत्र लिखकर कहा था कि वंदे मातरम् से मुसलमान समुदाय में असंतोष पैदा हो सकता है और इसके उपयोग पर पुनर्विचार आवश्यक है।
"नेहरू को लगा उनका राजनीतिक आधार डगमगा रहा है"
मोदी ने आगे दावा किया कि 1930 के दशक के अंत में मुस्लिम लीग द्वारा वंदे मातरम् का विरोध अचानक तेज हो गया था। उन्होंने कहा, “15 अक्टूबर 1937 को लखनऊ में मोहम्मद अली जिन्ना ने वंदे मातरम् के खिलाफ जोरदार अभियान चलाया। उस समय कांग्रेस अध्यक्ष जवाहरलाल नेहरू को लगा कि उनका राजनैतिक आधार खतरे में है। जिन्ना की बात का जवाब देने की बजाय उन्होंने वंदे मातरम् की उत्पत्ति और उसके इस्तेमाल पर सवाल उठाने शुरू कर दिए।”
बोस को लिखे पत्र का प्रधानमंत्री ने किया जिक्र
पीएम मोदी ने ऐतिहासिक घटनाओं का हवाला देते हुए बताया कि जिन्ना के बयान के सिर्फ पाँच दिन भीतर, नेहरू ने 20 अक्टूबर को सुभाष चंद्र बोस को पत्र लिखते हुए वंदे मातरम् की पृष्ठभूमि पर अपना संदेह व्यक्त किया। प्रधानमंत्री के अनुसार, नेहरू ने पत्र में लिखा कि आनंदमठ की पृष्ठभूमि मुस्लिम समुदाय को उत्तेजित कर सकती है। इसके बाद कांग्रेस ने घोषणा की कि 26 अक्टूबर को कोलकाता में कार्यसमिति की बैठक में वंदे मातरम् के इस्तेमाल की समीक्षा की जाएगी।
"कांग्रेस ने दबाव में राष्ट्रीय गीत पर समझौता किया"
प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि पूरे देश में जनता वंदे मातरम् के पक्ष में सड़कों पर उतरी, प्रभात फेरियां निकाली गईं और नाराज़गी जताई गई। लेकिन इसके बावजूद, 26 अक्टूबर की बैठक में कांग्रेस ने राष्ट्रीय गीत के उपयोग को आधा-अधूरा कर देने जैसा समझौता कर लिया। मोदी ने कहा, “कांग्रेस ने इसे सामाजिक सद्भाव का नाम देकर मुस्लिम लीग के दबाव में निर्णय लिया, जबकि सच यह है कि पार्टी ने लीग के सामने आत्मसमर्पण कर दिया। भारत में रहने वाला हर नागरिक तिरंगे और वंदे मातरम् के सम्मान से पीछे नहीं हट सकता।”
"वंदे मातरम् बना बंगाल की एकता का प्रतीक"
मोदी ने अपने संबोधन में बंगाल की ऐतिहासिक भूमिका पर विशेष जोर दिया। उन्होंने कहा, “एक दौर था जब बंगाल की बौद्धिक और सांस्कृतिक ऊर्जा पूरे राष्ट्र का मार्गदर्शन करती थी। अंग्रेज भी जानते थे कि भारत की आत्मा बंगाल की चेतना में बसती है, इसलिए उन्होंने 1905 में सबसे पहले बंगाल का विभाजन किया। उनका उद्देश्य था कि बंगाल टूटेगा तो भारत की राष्ट्रीय चेतना भी कमजोर हो जाएगी।”
लेकिन प्रधानमंत्री के अनुसार, अंग्रेजों की योजना सफल नहीं हुई। उन्होंने कहा, “बंगाल का विभाजन हुआ, पर वंदे मातरम् एक अडिग पर्वत की तरह खड़ा रहा। यह गीत बंगाल की एकता और स्वतंत्रता की भावना का ऐसा नारा बन गया कि हर गली और हर चौक में इसकी गूंज सुनाई देने लगी।”













