गाजा में हमास के खिलाफ लंबे समय से चले युद्ध के बाद अब इजरायल ने अचानक रणनीतिक मोर्चा बदलते हुए ईरान पर बड़ा हमला कर दिया। इस भीषण सैन्य कार्रवाई में ईरान के कई महत्वपूर्ण सैन्य और परमाणु ठिकानों को निशाना बनाया गया, जिसमें उसके कई टॉप सैन्य अधिकारी भी मारे गए। इस अप्रत्याशित कार्रवाई के बाद पश्चिमी एशिया में भू-राजनीतिक तनाव और भी बढ़ गया है, जिससे तेल की वैश्विक सप्लाई पर असर पड़ने की आशंका गहराती जा रही है।
शनिवार को ब्रेंट क्रूड ऑयल की कीमतों में अचानक उछाल आया, जो 6 डॉलर बढ़कर 78 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गई—जो अब तक की सबसे ऊंची दर मानी जा रही है। वहीं, ईरान की ओर से इजरायल पर पलटवार की धमकी ने वैश्विक सुरक्षा एजेंसियों और निवेशकों की चिंता और बढ़ा दी है। विशेषज्ञों का कहना है कि इस तरह की स्थिति से अंतरराष्ट्रीय व्यापार और बाजारों में भारी अस्थिरता पैदा हो सकती है।
तेल-गैस की कीमतों पर क्या होगा असर?
ऊर्जा विशेषज्ञों के अनुसार, यदि यह तनाव और अधिक बढ़ता है, तो तेल और गैस के निर्यात पर सीधा असर पड़ सकता है, जिससे दुनियाभर में ऊर्जा की कीमतों में तेजी से उछाल आएगा। समाचार एजेंसी एएनआई से बातचीत में एक विशेषज्ञ ने कहा, “जब-जब इजरायल और ईरान के बीच टकराव हुआ है, तेल की कीमतों में भारी उथल-पुथल देखने को मिली है।” हालांकि, उन्होंने यह भी जोड़ा कि “तनाव के कम होते ही पहले भी स्थिति सामान्य हो चुकी है।”
भारत पर असर: कच्चे तेल की आपूर्ति पर मंडराता खतरा
भारत प्रत्यक्ष रूप से ईरान से बहुत अधिक तेल नहीं खरीदता, फिर भी वह अपनी जरूरत का करीब 80 प्रतिशत कच्चा तेल आयात करता है। ऐसे में विशेषज्ञों की चिंता हॉर्मुज की जलसंधि को लेकर है, जो उत्तर में ईरान और दक्षिण में अरब देशों से सटी हुई है। यहां से वैश्विक एलएनजी व्यापार का लगभग 20% गुजरता है, और इसे वैश्विक ऊर्जा सप्लाई का चोक पॉइंट भी कहा जाता है। यदि ईरान इस जलमार्ग को अवरुद्ध करता है, जैसा कि वह पहले भी धमकी दे चुका है, तो भारत को इराक, सऊदी अरब और यूएई से आने वाली तेल आपूर्ति में रुकावट झेलनी पड़ सकती है, जिससे पेट्रोल, डीजल और अन्य ईंधनों की कीमतों में भारी वृद्धि हो सकती है।
भविष्य की स्थिति पर नजर
तेल और गैस की कीमतों पर दीर्घकालिक प्रभाव इस पर निर्भर करेगा कि इजरायल और ईरान के बीच यह संघर्ष कितना लंबा चलता है और क्या कोई कूटनीतिक समाधान निकलता है या नहीं। वहीं, ओपेक देशों ने जुलाई में घोषणा की थी कि वे अपनी सप्लाई बढ़ाएंगे, जिससे ईरान की आपूर्ति कम होने पर भी वैश्विक स्तर पर संकट कुछ हद तक टल सकता है। भारत की बात करें तो यहां ग्रॉस रिफाइनिंग मार्जिन अच्छा है, जिससे फिलहाल बड़े असर की संभावना कम है। लेकिन यदि तनाव और गहराता है तो यह भारत की अर्थव्यवस्था के लिए भी चुनौती बन सकता है।