
परीक्षाओं का दौर केवल बच्चों के लिए ही चुनौतीपूर्ण नहीं होता, बल्कि माता-पिता भी इस समय मानसिक दबाव महसूस करते हैं। बच्चे अपनी पढ़ाई में पूरी ऊर्जा झोंकते हैं, और ऐसे में पैरेंट्स की भूमिका सिर्फ गाइड करने की नहीं, बल्कि एक मज़बूत सहारा बनने की भी होती है। मगर कई बार बिना इरादे के पैरेंट्स ऐसी बातें या व्यवहार कर बैठते हैं जो बच्चे की एकाग्रता बिगाड़ देते हैं और उनके तनाव को और बढ़ा देते हैं। इसलिए परीक्षा के इन अहम दिनों में बहुत सोच-समझकर, धैर्य के साथ और संवेदनशील तरीके से बच्चों का साथ देना ज़रूरी है। पेरेंटिंग एक्सपर्ट अर्पिता अक्षय ने भी इस समय में पैरेंट्स के सही व्यवहार को लेकर महत्वपूर्ण सुझाव दिए हैं।
1. पुराने रिज़ल्ट और कमजोरियों की याद न दिलाएँ
अक्सर माता-पिता अनजाने में पिछली परीक्षाओं के नंबर या की गई गलतियों को दोहराने लगते हैं—लेकिन यह आदत बच्चों के मनोबल को काफ़ी नुकसान पहुँचाती है। ‘पिछली बार क्या हुआ था भूल मत जाना’ या ‘इस बार फिर कम नंबर आए तो?’ जैसी बातें उनके आत्मविश्वास को गिरा देती हैं। बच्चे डर और बेचैनी में पढ़ाई करने लगते हैं, जिससे न उनका फोकस बन पाता है और न ही वे अच्छा प्रदर्शन कर पाते हैं। इसलिए जरूरी है कि माता-पिता पिछले परिणामों को पूरी तरह पीछे छोड़कर बच्चे को आगे की परीक्षा पर ध्यान केंद्रित करने के लिए प्रेरित करें।
2. हर थोड़ी देर में पढ़ाई का अपडेट लेने से बचें
परीक्षा अवधि में घबराहट के कारण कई पैरेंट्स लगातार बच्चों से पूछताछ शुरू कर देते हैं—कितना पढ़ लिया, क्या बचा है, रिवीजन कब करोगे, टेस्ट कब दोगे? अर्पिता अक्षय के अनुसार, यह लगातार पूछना बच्चों के तनाव की मात्रा बढ़ा देता है। उन्हें लगता है कि वे चाहे जितना पढ़ लें, पैरेंट्स को तसल्ली नहीं मिल रही। ऐसे में उनका मन पढ़ाई के बजाय दबाव से भर जाता है। बच्चों को उनकी पढ़ाई का अपना तरीका और गति अपनाने दें। घर में शांत माहौल तैयार करें ताकि वे सहज होकर अपनी तैयारी कर सकें। भरोसा जताएँ कि वे अच्छा कर रहे हैं—यह भरोसा ही उनका सबसे बड़ा आत्मविश्वास बन सकता है।
3. तुलना करना बिल्कुल गलत तरीका है
एग्जाम के दौरान भाई-बहन, रिश्तेदारों या दोस्तों से तुलना करना बच्चे के मन पर गहरी चोट करता है। ‘देखो, तुम्हारी कज़िन हमेशा अच्छे नंबर लाती है’, ‘तुम्हारा दोस्त कितना पढ़ता है’—इस तरह की बातें बच्चे के मन में हीन भावना और असुरक्षा भर देती हैं। पेरेंटिंग एक्सपर्ट स्पष्ट कहती हैं कि हर बच्चा अपनी क्षमता, अपना रफ़्तार और अपनी सीखने की शैली के साथ आता है। तुलना न केवल उसके आत्मविश्वास को कम करती है, बल्कि पढ़ाई के प्रति उसका मनोबल भी तोड़ देती है। इसके बजाय, बच्चे को इस बात के लिए प्रेरित करें कि वह अपनी मेहनत को बेहतर करने पर ध्यान दे, न कि दूसरों जैसा बनने पर।
4. बच्चों पर अवास्तविक लक्ष्य थोपने से बचें
पैरेंट्स अक्सर बच्चों के लिए ऊँचे टारगेट तय कर देते हैं—कभी अपनी उम्मीदों को पूरा करने के लिए, तो कभी समाज के दबाव में। लेकिन यह बड़ी उम्मीदें बच्चों के मानसिक संतुलन को बिगाड़ सकती हैं। यदि बच्चा अपनी क्षमता से अधिक बोझ महसूस करता है, तो वह घबराहट, डर, और असफलता के डर में पढ़ाई करने लगता है। अर्पिता सलाह देती हैं कि पैरेंट्स बच्चों की क्षमताओं को ईमानदारी से समझें और उसी के अनुरूप यथार्थवादी लक्ष्य तय करें। इससे बच्चे पर अनावश्यक दबाव नहीं पड़ेगा और वह अपनी पूरी क्षमता के साथ पढ़ाई कर सकेगा।
5. अच्छे नंबरों के लिए लालच देना नुकसानदायक है
अक्सर पैरेंट्स इनाम का वादा कर बच्चों को पढ़ाई के लिए मोटिवेट करने की कोशिश करते हैं—जैसे ‘पहली रैंक लाओगे तो मोबाइल दिलाऊँगा’ या ‘अच्छे नंबर आए तो घूमने ले जाएँगे’। पेरेंटिंग कोच बताती हैं कि इससे बच्चे का ध्यान पढ़ाई से हटकर सिर्फ इनाम पाने पर केंद्रित हो जाता है। और यदि अपेक्षित नंबर नहीं आते, तो उनमें अपराधबोध और तनाव बढ़ जाता है। इनाम देना हो तो बच्चे के प्रयास का दें—उसके धैर्य, मेहनत और कोशिशों का सम्मान करते हुए। इससे वह सीखने की प्रक्रिया को ज़्यादा सकारात्मक रूप से अपनाएगा और पढ़ाई में स्वाभाविक रुचि विकसित करेगा।














