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आपका मन मोह लेगी दिल्ली के इन प्रसिद्ध गुरुद्वारों की शांति और खूबसूरती

देश की राजधानी दिल्ली को अपने पर्यटन, खानपान, रहन-सहन, बोलचाल, इतिहास और संस्कृति के लिए जाना जाता हैं। लेकिन इसी के साथ ही दिल्ली को धार्मिक स्मारकों और मंदिरों के लिए भी जाना जाता हैं

Posts by : Ankur Mundra | Updated on: Thu, 18 May 2023 1:13:33

आपका मन मोह लेगी दिल्ली के इन प्रसिद्ध गुरुद्वारों की शांति और खूबसूरती

देश की राजधानी दिल्ली को अपने पर्यटन, खानपान, रहन-सहन, बोलचाल, इतिहास और संस्कृति के लिए जाना जाता हैं। लेकिन इसी के साथ ही दिल्ली को धार्मिक स्मारकों और मंदिरों के लिए भी जाना जाता हैं। अगर हम सिख धर्म के बारे में बात करें, तो दिल्ली को कई गुरुद्वारों का घर कहा जाता है। राजधानी दिल्ली में कई गुरूद्वारे हैं जहां पाठ होते हैं एवं इसी के साथ ही कीर्तन और लंगर का आयोजन किया जाता है। आज हम आपको दिल्ली के कुछ बेहतरीन और प्रसिद्ध गुरुद्वारों के बारे में जानकारी देने जा रहे हैं जो शांति और खूबसूरती से सभी का मन मोह लेते हैं। आइये जानते हैं इन गुरुद्वारों के बारे में...

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गुरुद्वारा मजनू का टीला

अब्दुल्ला मजनू के नाम से जाना जाता था, जब वह 1505 में गुरु नानक देव जी से मिला। वह भगवान के नाम पर लोगों को यमुना नदी के पार नि: शुल्क ले जाते थे, इसी बात ने गुरु नानक जी के दिल को छू लिया। उन्होंने टीले में रहने का फैसला किया, इसी दौरान मजनू उनका शिष्य बन गया। दिल्ली के सबसे प्रतिष्ठित गुरुद्वारों में से एक पहले और छठे गुरुओं के ठहरने का प्रतीक है।

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गुरुद्वारा बंगला साहिब

दिल्ली के बंगला साहिब गुरूद्वारे को लेकर कई मान्यताएं हैं। ऐसा कहा जाता है कि ये गुरुद्वारा पहले जयपुर के महाराजा जय सिंह का बंगला था। साथ ही यहां पर सिखों के आठवें गुरु हर किशन सिंह रहा करते थे। गुरुद्वारा बंगला साहिब दिल्ली के सबसे प्रमुख धार्मिक और पर्यटन स्थलों में से एक है। यह सिख जनरल सरदार भगेल सिंह द्वारा 1783 में बनाया गया था। पूरे 24 घंटों के लिए संचालित गुरुद्वारा सिखों के बड़े दिल वाले स्वभाव का एक जीता जागता उदाहरण है। इस गुरुद्वारे को लेकर एक ये भी मान्यता है कि यहां का पानी रोगनाशक है और इसे पवित्र माना जाता है। यहां पूरे साल लगंर चलता है।

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गुरुद्वारा शीशगंज साहिब

पुरानी दिल्ली के चंडी चौक क्षेत्र में गुरुद्वारा शीश गंज साहिब स्थित है। 1783 में पंजाब छावनी के सैन्य जनरल रहे बघेल सिंह ने इसका निर्माण कराया था। यह सिखों के नौवें गुरु, गुरु तेग बहादुर की शहादत स्थल है। जब गुरु ने इस्लाम धर्म कबूल करने से इंकार कर दिया था तो मुगल सम्राट औरंगजेब के आदेश पर उनको मार दिया गया था। गुरु तेज बहादुर की शहादत की याद में गुरुद्वारा का निर्माण कराया गया था।

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गुरुद्वारा बाबा बंदा सिंह बहादुर

कुतुब मीनार के पास महरौली में स्थित, यह गुरुद्वारा सिख शहीद बाबा बंदा सिंह बहादुर जी के स्थल को चिह्नित करता है। सन 1719 को उनके बेटे और 40 अन्य सिखों के साथ, उन्हें मुगलों द्वारा असहनीय तरीके से मौत के घाट उतार दिया गया था। उनकी निडर वीरता के लिए उनका नाम सिख इतिहास में शानदार ढंग से दर्ज किया गया है। यहां हर साल बैसाखी पर मेला लगता है।

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गुरुद्वारा रकाब गंज साहिब

गुरु तेग बहादुर जी उर्फ 'हिंद दी चादर' या 'द शील्ड ऑफ इंडिया' 1675 में कश्मीरी पंडितों की रक्षा करते हुए मारे गए। औरंगजेब ने इस्लाम में परिवर्तित होने से इनकार करने के लिए उनका सिर कलम कर दिया। उनके शिष्यों ने उनके सिर रहित शरीर का अंतिम संस्कार करने के लिए अपना घर जला दिया, जहां अब गुरुद्वारा रकाब गंज है। उनका सिर उनके पुत्र गुरु गोबिंद सिंह जी के पास ले जाया गया था।

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गुरुद्वारा माता सुंदरी

गुरु गोबिंद सिंह जी की पत्नी के नाम पर, गुरुद्वारा माता सुंदरी वह स्थान है जहां माता सुंदरी जी ने 1747 में अंतिम सांस ली थी। यह स्थान उनकी याद में लोगों के बीच जाना माना तीर्थस्थल बन चुका है। माता सुंदरी गुरु गोबिंद सिंह जी के दक्कन के लिए रवाना होने के बाद यहां ठहरी थी। गुरु जी के निधन के बाद, माता सुंदरी ने 40 वर्षों तक सिखों का नेतृत्व किया। सिखों द्वारा उनका बहुत सम्मान किया जाता था, मार्गदर्शन के लिए वे हमेशा माता सुंदरी को ही अपना गुरु माना करते थे। माता सुंदरी के पार्थिव शरीर का अंतिम संस्कार गुरुद्वारा बाला साहिब जी में किया गया था। ये गुरुद्वारा माता सुंदरी कॉलेज के पास स्थित है।

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गुरुद्वारा बाला साहिब

यह गुरुद्वारा आठवें गुरु श्री हरकिशन और गुरु गोबिंद सिंह की दो पत्नियों - माता सुंदरी और माता साहिब कौर से जुड़ा है। बाला साहिब को उनके पिता गुरु हर राय जी के उत्तराधिकारी के रूप में 5 साल की उम्र में गुरु बनने का सम्मान मिला था। वह अपने हीलिंग टच के लिए जाने जाते हैं, जिन्होंने उस समय के दौरान दिल्ली में हैजा और चेचक के बहुत से रोगियों की मदद की थी।

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गुरुद्वारा मोती बाग

1707 में जब गुरु गोबिंद सिंह जी पहली बार दिल्ली आए, तब वह और उनकी सेना गुरुद्वारा मोती बाग साहिब में ही रुके थे। ऐसा कहा जाता है कि यहीं से गुरु गोबिंद सिंह जी ने लाल किले पर अपने सिंहासन पर बैठे मुगल सम्राट औरंगजेब के पुत्र राजकुमार मुअज्जम (बाद में बहादुर शाह) की दिशा में दो तीर चलाए थे। दिल्ली का यह पवित्र गुरुद्वारा शुद्ध सफेद संगमरमर से बना हुआ है।

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