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‘सैयारा’ समीक्षा: प्रेम वही, अंदाज़ वही... कमजोर कथानक में प्राण डालता है गीत-संगीत, गुनगुनाते निकलते हैं बाहर

सिनेमा में जब कहानी का ताना-बाना पुराना हो, तो उसे नया बनाने का भार अभिनय, निर्देशन और संगीत पर होता है। मोहित सूरी की ‘सैयारा’ इसी कसौटी पर खड़ी उतरती है। यह फिल्म न तो कोई नई बात कहती है, न ही रोमांस की परिभाषा बदलती है।

Posts by : Rajesh Bhagtani | Updated on: Fri, 18 July 2025 6:01:28

‘सैयारा’ समीक्षा: प्रेम वही, अंदाज़ वही... कमजोर कथानक में प्राण डालता है गीत-संगीत, गुनगुनाते निकलते हैं बाहर

जब भी दिल टूटने, अधूरे प्यार और दर्द में डूबे किरदारों की बात आती है, मोहित सूरी का नाम अपने-आप सामने आ जाता है। 'आशिकी 2' और 'एक विलेन' जैसी हिट फिल्मों के बाद वह एक बार फिर 'सैयारा' के ज़रिए उसी पुराने मिजाज़ को दोहराते हैं—जहाँ प्रेम है, पीड़ा है, लेकिन कुछ नया नहीं है। सिनेमा में जब कहानी का ताना-बाना पुराना हो, तो उसे नया बनाने का भार अभिनय, निर्देशन और संगीत पर होता है। मोहित सूरी की ‘सैयारा’ इसी कसौटी पर खड़ी उतरती है। यह फिल्म न तो कोई नई बात कहती है, न ही रोमांस की परिभाषा बदलती है। फिर भी, यह दर्शकों के दिल को छूने का माद्दा रखती है, और इसका श्रेय जाता है फिल्म के संगीत, सिनेमैटोग्राफी और दो नए चेहरों—अहान पांडे और अनीत पड्डा—की केमिस्ट्री को।

कहानी में कितना दम है?


‘सैयारा’ की कहानी किसी आश्चर्य का वादा नहीं करती। यह एक सीधी-सादी प्रेम कहानी है—जैसे दो अलग पृष्ठभूमियों के लोग मिलते हैं, प्यार होता है, और फिर समाज, पारिवारिक दबाव या जीवन की उलझनों से गुजरते हुए अपने रिश्ते को संभालने की कोशिश करते हैं। अगर आपने ‘आशिकी’, ‘हम दिल दे चुके सनम’ या ‘एक विलेन’ जैसी फिल्में देखी हैं, तो इस फिल्म की कहानी आपके लिए किसी दोहराव से कम नहीं लगेगी। कहानी कोई नई नहीं है, लेकिन उसे जिस अंदाज़ में परोसा गया है, वह कहीं-कहीं भावनाओं को छूती है। हालाँकि, दर्शकों को पहले ही अंदाज़ा लग जाता है कि आगे क्या होगा। स्क्रिप्ट में ऐसा कोई ट्विस्ट या ‘Wow’ मोमेंट नहीं है जो आपको चौंकाए या सोचने पर मजबूर करे।

अभिनय: नए चेहरों ने निभाया भरोसा

जहाँ कहानी में कुछ खास नहीं, वहीं अहान पांडे और अनीत पड्डा की फ्रेश जोड़ी पर्दे पर ऊर्जा भर देती है। अहान में चॉकलेट हीरो वाली मासूमियत है, वहीं अनीत की आंखों में भावनाओं की गहराई दिखती है। दोनों ने अपने अभिनय से ये साबित किया है कि अगर मंच मिले तो नए चेहरे भी स्क्रीन पर जादू कर सकते हैं।

अहान पांडे के लिए यह डेब्यू फिल्म है और उनके एक्सप्रेशन्स, बॉडी लैंग्वेज और डायलॉग डिलीवरी में एक ईमानदारी नजर आती है। हालांकि उन्हें अभी भी परिपक्वता की जरूरत है, लेकिन शुरुआत के तौर पर उनका प्रदर्शन प्रभावशाली है।

अनीत पड्डा (फिल्म की फीमेल लीड) का अभिनय फिल्म का सबसे मजबूत पक्ष है। उन्होंने न केवल कैमरे के सामने आत्मविश्वास दिखाया, बल्कि उनके डायलॉग डिलीवरी और इमोशनल सीन में पकड़ ने यह साफ कर दिया कि वे लंबी रेस की घोड़ी हैं।

संगीत: फिल्म की आत्मा

अगर ‘सैयारा’ को याद रखा जाएगा, तो वो इसके गीतों की वजह से। यदि कुछ है जो 'सैयारा' को बाकी औसत रोमांटिक फिल्मों से अलग बनाता है, तो वह है इसका संगीत। चाहे वो अरिजीत सिंह की भावुक आवाज़ में सजा टाइटल ट्रैक हो या जुबिन नौटियाल की मधुर रोमांटिक धुनें—संगीत सीधे दिल में उतरता है। हर गाना भावनाओं को गहराई से उकेरता है, और 'तेरा साया सा है तू', 'बिखर गया मैं' जैसे ट्रैक फिल्म के बाद भी कानों में गूंजते हैं। बैकग्राउंड स्कोर भी सिचुएशन के साथ मेल खाता है और भावनात्मक दृश्यों को और मजबूत करता है।

सिनेमैटोग्राफी और लोकेशंस

फिल्म की शूटिंग यूरोप और हिमाचल की खूबसूरत वादियों में की गई है, जो रोमांस को और निखारती हैं। कैमरे का काम बहुत संतुलित है, फ्रेम्स खूबसूरत हैं और कुछ सीन पोस्टकार्ड जैसे दिखते हैं। एक प्रेम कहानी में जो विजुअल जादू होना चाहिए, वो यहां मौजूद है।

कहां चूकी फिल्म?


फिल्म की सबसे बड़ी कमी इसकी कहानी में नयापन न होना है। जिस तरह का प्लॉट पेश किया गया है, वह दर्शकों को पहले ही कई फिल्मों में देखने को मिल चुका है। कहानी के नाम पर कोई बड़ा सरप्राइज नहीं है, जिससे दर्शक खुद को स्क्रीन से बांधे रखें। इसी वजह से फिल्म में शुरुआत से ही एक अनुमानित प्रवाह बना रहता है जो उत्सुकता को खत्म कर देता है।

फिल्म के कुछ संवाद भी वास्तविकता से कटे हुए लगते हैं। उन्हें सुनते समय ऐसा एहसास होता है मानो किरदारों की जुबान से कोई लेखक बोल रहा हो, न कि वे खुद अपने हालात में डूबे हुए हों। इससे किरदारों की संवेदनाएं कमजोर पड़ जाती हैं और दर्शक उनसे जुड़ नहीं पाते।

दूसरे भाग में फिल्म की गति बिखर जाती है। इंटरवल से पहले जो उत्साह या रफ्तार दिखाई देती है, वह बाद में गायब हो जाती है। कई दृश्य लंबे खिंचते हैं, जिनका कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ता। इस धीमेपन के कारण फिल्म उबाऊ महसूस होने लगती है।

फिल्म का एक और कमजोर पक्ष इसका कैरेक्टर डेवलपमेंट है। मुख्य किरदार के अलावा बाकी पात्र सिर्फ कहानी को भरने के लिए मौजूद हैं। उनके पास न तो कोई स्पष्ट उद्देश्य है और न ही ऐसा कोई क्षण जो उन्हें यादगार बना सके। इससे फिल्म में गहराई का अभाव महसूस होता है और एक बेहतर कहानी की संभावनाएं अधूरी रह जाती हैं।

‘सैयारा’ एक ऐसी फिल्म है जो कुछ नया कहने की कोशिश नहीं करती, बल्कि पुराने जज़्बातों को नए चेहरों और सुरों के साथ दोहराती है। अगर आप इस शैली के प्रशंसक हैं तो यह फिल्म आपको निराश नहीं करेगी, लेकिन अगर आप कुछ अलग, अनोखा या चौंकाने वाला ढूंढ़ रहे हैं—तो यह फिल्म आपके लिए नहीं है।

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