
बॉलीवुड की फिल्म सैयारा ने अपने पहले ही दिन ₹21.25 करोड़ की शानदार कमाई करके सभी को चौंका दिया, लेकिन इस बार सुर्खियों में न तो बड़े प्रमोशनल इवेंट्स थे और न ही मीडिया राउंड्स। यही कारण है कि निर्देशक संजय गुप्ता ने यशराज फिल्म्स (YRF) की इस 'नो प्रमोशन' रणनीति की जमकर सराहना की है। गुप्ता का मानना है कि यह उदाहरण पूरे बॉलीवुड के लिए एक चेतावनी और सबक है।
सैयारा ने बदला प्रमोशन का परंपरागत पैटर्न
18 जुलाई को रिलीज़ हुई सैयारा, जिसमें अहान पांडे और अनीत पड्डा ने मुख्य भूमिकाएं निभाईं, ने ट्रेड पंडितों को गलत साबित करते हुए ₹20 करोड़ की ओपनिंग ली। खास बात यह रही कि फिल्म की टीम ने पारंपरिक प्रचार माध्यमों – जैसे टीवी इंटरव्यू, सोशल मीडिया लाइव्स, पॉडकास्ट्स और इवेंट्स – से दूरी बनाए रखी। इसके बजाय उन्होंने केवल ट्रेलर और संगीत पर ध्यान केंद्रित किया, जो सोशल मीडिया पर धीरे-धीरे वायरल होते चले गए।
संजय गुप्ता ने YRF की रणनीति को बताया 'जीनियस कदम'
फिल्म कांटे के निर्देशक संजय गुप्ता ने एक्स (पूर्व ट्विटर) पर लिखा –“सैयारा के लिए जो भी यह निर्णय ले रहा था कि मुख्य कलाकार किसी भी मीडिया इंटरव्यू या पॉडकास्ट का हिस्सा न बनें, वह जीनियस है। इसने दर्शकों के लिए वह ताजगी बनाए रखी जो केवल सिनेमा हॉल में अनुभव की जा सकती थी। और अब देखिए, इसका कितना बेहतरीन असर हुआ।”
'12th फेल' और 'सैयारा' – बिना प्रचार के बनीं ब्लॉकबस्टर
गुप्ता ने बॉलीवुड की लंबे समय से चली आ रही पी एंड ए (पब्लिसिटी एंड एडवर्टाइजिंग) की रणनीति पर भी तीखा हमला किया। उन्होंने लिखा, “जब तक कॉरपोरेट्स नहीं आए थे, फिल्म इंडस्ट्री सामान्य ढंग से चल रही थी। फिर उन्होंने नए नियम गढ़ने की कोशिश की और पी एंड ए को प्रोड्यूसर्स को लूटने का जरिया बना दिया।”
उन्होंने यह भी कहा कि साउथ की फिल्म इंडस्ट्री कभी भी इस 'ओवर द टॉप' प्रचार शैली में नहीं फंसी। वहां फिल्म की सामग्री (कंटेंट) ही प्रचार का मुख्य आधार होती है। उन्होंने लिखा – "दक्षिण की फिल्म इंडस्ट्री ने कभी इस बेवकूफी भरे प्रचार तंत्र को नहीं अपनाया। फिर भी वे काफी अच्छा कर रही हैं। और अब '12th फेल' और 'सैयारा' जैसी फिल्में इसका प्रमाण हैं – सीधे सिनेमाघरों में रिलीज़, और धमाकेदार हिट। क्या अब हम कुछ सीख सकते हैं?"
प्रमोशन नहीं, कंटेंट है असली स्टार
सैयारा की सफलता इस बात का प्रमाण है कि यदि कहानी, अभिनय और निर्देशन मजबूत हो, तो फिल्म को दर्शकों तक पहुंचाने के लिए भारी-भरकम प्रचार जरूरी नहीं। फिल्म की रहस्यमय चुप्पी और सीमित खुलासा ही लोगों को सिनेमा हॉल तक खींच लाया।
सैयारा की चुपचाप आई रणनीति ने बॉलीवुड के प्रचार-प्रधान चलन पर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है। संजय गुप्ता जैसे वरिष्ठ फिल्मकार ने इसे न केवल सराहा है, बल्कि इसे पूरे उद्योग के लिए सीख का माध्यम बताया है। शायद अब समय आ गया है कि हिंदी फिल्म इंडस्ट्री अपने प्रचार के तौर-तरीकों पर पुनर्विचार करे – और यह समझे कि कभी-कभी 'कम बोलना', दर्शकों तक पहुंचने का सबसे प्रभावी तरीका हो सकता है।














