विवाह पंचमी 2024: श्रीराम-सीता के शुभ मिलन का पर्व, पूजा विधि और व्रत कथा
By: Sandeep Gupta Fri, 06 Dec 2024 09:31:12
हिंदू पंचांग के अनुसार, मार्गशीर्ष शुक्ल पंचमी का दिन भगवान राम और माता सीता के विवाह का प्रतीक है। इस तिथि को श्रीराम विवाहोत्सव के रूप में मनाया जाता है। भगवान राम चेतना के और माता सीता प्रकृति की शक्ति की प्रतीक हैं। इनके मिलन का यह दिन अत्यंत शुभ और धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण माना जाता है।
इस वर्ष विवाह पंचमी का पर्व 6 दिसंबर 2024 को मनाया जा रहा है। आइए जानते हैं इस विशेष दिन का महत्व, पूजा विधि और व्रत कथा।
विवाह पंचमी 2024 मुहूर्त (Vivah Panchami 2024 Shubh Muhurat)
पूजन के शुभ चौघड़िया मुहूर्त:
लाभ (उन्नति): 08:18 AM से 09:36 AM
अमृत (सर्वोत्तम): 09:36 AM से 10:53 AM
शुभ (उत्तम): 12:11 PM से 01:29 PM
लाभ (उन्नति): 08:48 PM से 10:30 PM
विवाह पंचमी का महत्व और वरदान
इस दिन भगवान राम और माता सीता का विवाह करवाना अत्यंत फलदायी माना जाता है।
विवाह बाधा निवारण: यदि किसी के विवाह में रुकावट आ रही हो, तो इस दिन पूजा और पाठ से यह समस्या दूर हो सकती है।
वैवाहिक सुख: भगवान राम और माता सीता की उपासना से वैवाहिक जीवन के संकट समाप्त होते हैं।
पारिवारिक सुख: इस दिन रामचरितमानस के बालकांड का पाठ करने से घर में सुख-शांति आती है।
राम-सीता विवाह पूजा विधि
संकल्प लें: विवाह पंचमी के दिन सिया-राम विवाह का संकल्प करें।
मूर्ति स्थापना: भगवान राम और माता सीता की प्रतिमा को पीले और लाल वस्त्र पहनाएं।
पाठ और मंत्र जाप: बालकांड में विवाह प्रसंग का पाठ करें या "ऊं जानकीवल्लभाय नमः" मंत्र का 108 बार जाप करें।
गठबंधन और आरती: माता सीता और भगवान राम का गठबंधन करें और आरती उतारें।
वस्त्र सुरक्षित रखें: गठबंधन किए गए वस्त्रों को अपनी समस्या के समाधान के लिए अपने पास रखें।
महाउपाय: वैवाहिक सुख के लिए
- किसी नवविवाहित दंपत्ति को भोजन कराएं और उन्हें उपहार देकर आशीर्वाद लें।
- घर में राम दरबार का चित्र या प्रतिमा स्थापित करें। इससे परिवार में एकता और सुख-शांति बनी रहती है।
विवाह पंचमी पर विशेष मंत्र और दोहे
इस दिन पीले वस्त्र धारण कर तुलसी या चंदन की माला से नीचे दिए गए दोहों का जाप करना शुभ होता है:
प्रमुदित मुनिन्ह भावँरीं फेरीं। नेगसहित सब रीति निवेरीं॥
राम सीय सिर सेंदुर देहीं। सोभा कहि न जाति बिधि केहीं॥
पानिग्रहन जब कीन्ह महेसा। हियँ हरषे तब सकल सुरेसा॥
बेदमन्त्र मुनिबर उच्चरहीं। जय जय जय संकर सुर करहीं॥
सुनु सिय सत्य असीस हमारी। पूजिहि मन कामना तुम्हारी॥
नारद बचन सदा सुचि साचा। सो बरु मिलिहि जाहिं मनु राचा॥
विवाह पंचमी व्रत कथा
पौराणिक धार्मिक ग्रंथ श्रीरामचरितमानस के अनुसार,श्री राम-सीता का स्वयंवर मार्गशीर्ष माह की शुक्ल पंचमी के दिन हुआ था। महाराजा जनक ने सीता के विवाह के लिए स्वयंवर आयोजित किया था। माता सीता के स्वयंवर के लिए लंका पति रावण सहित कई महान ताकतवर महाराजाओं ने भाग लिया था। इस स्वयंवर में प्रभु श्री राम छोटे भाई लक्ष्मण भी अपने गुरु वशिष्ठ के साथ पहुंचे। लेकिन कोई भी महाराजा जनक की शर्तें पूरी करने में कामयाब नहीं हुआ था। उन्होंने शर्त रखी थी कि जो भी भगवान शिव के इस धनुष की कमान चढ़ाकर इसे तोड़ देगा। उसी के साथ अपनी बेटी सीता का विवाह कर देंगे। ये वो धनुष था जिसे शिव भक्त परशुराम के अलावा कोई नहीं उठा सकता था। ऐसे में हर महाराजा ने कोशिश की, लेकिन धनुष को जरा सा भी नहीं हिला पाएं।
राजा जनक हताश हो गए और उन्होंने कहा कि ‘क्या कोई भी मेरी पुत्री के योग्य नहीं है?’ तब महर्षि वशिष्ठ ने भगवान राम को शिव जी के धनुष की प्रत्यंचा चढ़ाने को कहा। अपने गुरु की आज्ञा का पालन करते हुए भगवान राम शिव जी के धनुष की प्रत्यंचा चढ़ाने लगे और धनुष टूट गया।
इस प्रकार सीता जी का विवाह राम से हुआ। तीनों लोकों में इस बात का यश फैल गया कि राम ने भगवान शिव का धनुष तोड़ दिया है और इसी कारण इस दिन को प्रतिवर्ष मार्गशीर्ष माह की शुक्ल पंचमी को मनाया जाता है। श्री राम सीता का जीवन प्रेम, आदर्श, समर्पण और मूल्यों को प्रदर्शित करता है।