
डर एक स्वाभाविक भावना है, लेकिन कुछ लोगों में यह सामान्य से अधिक होता है। ऐसे लोग छोटी-छोटी परिस्थितियों में भी घबरा जाते हैं और दूसरे लोग उन्हें अक्सर ‘डरपोक’ कहकर पुकारते हैं। क्या आप भी उन लोगों में से हैं जिन्हें अचानक घबराहट या अनजाना भय घेर लेता है? आखिर ऐसा क्यों होता है, इसके पीछे क्या कारण छिपा है? आइए जानते हैं ज्योतिषीय दृष्टि से।
क्यों बढ़ती है भय की प्रवृत्ति?
ज्योतिष शास्त्र कहता है कि जब व्यक्ति में आत्मबल और आत्मविश्वास की कमी आती है तो उसके अंदर सुरक्षा की चाह अधिक बढ़ जाती है। यही असुरक्षा धीरे-धीरे भय का रूप ले लेती है। अस्थिर मन, बेवजह चिंता और नकारात्मक विचार ऐसे व्यक्ति को और अधिक डरपोक बना देते हैं। यह केवल मानसिक स्थिति नहीं होती, बल्कि इसके पीछे ग्रहों की स्थिति और उनकी शक्ति भी जिम्मेदार मानी जाती है।
किन ग्रहों की कमजोरी बढ़ाती है डर?
चंद्रमा – चंद्रमा को मन और भावनाओं का प्रतिनिधि ग्रह माना गया है। जब कुंडली में यह ग्रह अशुभ या दुर्बल हो, तो मन स्थिर नहीं रह पाता। ऐसे व्यक्ति को हर छोटी बात में वहम होने लगता है और भीतर से घबराहट बढ़ जाती है। परिणामस्वरूप वह बिना वजह चिंता, मानसिक तनाव और भय से ग्रस्त रहने लगता है।
मंगल – साहस और पराक्रम का प्रतीक मंगल ग्रह है। यदि यह ग्रह कमजोर हो तो व्यक्ति का आत्मविश्वास टूट जाता है। अंदर से साहस घटने लगता है और हर स्थिति में डर महसूस होने लगता है।
राहु और केतु – राहु को माया और भ्रम का कारक कहा जाता है, जबकि केतु अज्ञात भय और असुरक्षा का सूचक है। जब ये ग्रह प्रतिकूल होते हैं तो व्यक्ति के मन में निरंतर नकारात्मक विचार आते रहते हैं। खासतौर पर केतु के कमजोर होने पर व्यक्ति बिना वजह के भय और असमंजस की स्थिति में घिरा रहता है।
भय से छुटकारा पाने के उपाय
अगर आपकी कुंडली में इनमें से कोई ग्रह दुर्बल है और आप बिना वजह डर या घबराहट का अनुभव करते हैं, तो कुछ उपाय बेहद लाभकारी हो सकते हैं।
प्रतिदिन हनुमान चालीसा का पाठ करें।
भगवान शिव की पूजा और शिवलिंग पर अभिषेक करने से मानसिक शांति मिलती है।
नियमित रूप से स्नान, ध्यान और मंत्र-जाप करने से आत्मबल बढ़ता है और भय दूर होता है।
डिस्क्लेमर: यह लेख धार्मिक मान्यताओं और पंचांग आधारित जानकारी पर आधारित है। किसी विशेष निर्णय या अनुष्ठान से पहले योग्य पंडित या ज्योतिषी से परामर्श अवश्य लें।














