स्वतंत्रता दिवस विशेष : भारत का पहला स्वतंत्रता सेनानी, मंगल पांडे
By: Ankur Sat, 11 Aug 2018 5:36:56
भारत के स्वतंत्रता संग्राम में सबसे पहले शहीद होने वाले स्वतंत्रता सेनानी थे मंगल पांडे। भारतीय स्वाधीनता संग्राम की शुरुआत हुई थी 1857 की क्रांति से और इस क्रांति में मंगल पांडे का नाम अग्रणी योद्धाओं के रूप में लिया जाता है।
मंगल पांडे के द्वारा भड़काई गई क्रांति ने ईस्ट इंडिया कंपनी को हिला कर रख दिया था। हालाँकि अंग्रेजों ने इस क्रांति को लम्बे समय तक चलने नहीं दिया। लेकिन इस क्रांति की आग को पूरी तरह से नहीं बुझा पाए थे और बची हुई छोटी चिंगारियां भारत के स्वतंत्रता संग्राम में कई आन्दोलन बन कर उभरी। आज हम आपको भारत के पहले स्वतंत्रता सेनानी अर्थात मंगल पांडे और उनसे जुडी कुछ बातों के बारे में बताने जा रहे हैं।
उन्नीस जुलाई 1827 को जन्मे मंगल पांडे बंगाल नेटिव इन्फैंट्री (बीएनआई) की 34वीं रेजीमेंट के सिपाही थे। सेना की बंगाल इकाई में जब ‘एनफील्ड पी-53’ राइफल में नई किस्म के कारतूसों का इस्तेमाल शुरू हुआ तो हिन्दू और मुसलमान दोनों धर्मों के सैनिकों के मन में अंग्रजों के खिलाफ रोष पैदा हो गया। इन कारतूसों को मुँह से खोलना पड़ता था। सेना में ऐसी खबर फैल गई कि इन कारतूसों में गाय तथा सुअर की चर्बी का इस्तेमाल किया जाता है और अंग्रेजों ने हिन्दुस्तानियों का धर्म भ्रष्ट करने के लिए ऐसा जानबूझकर किया है।
चौंतीसवीं बंगाल नेटिव इन्फैंट्री का कमांडेंट व्हीलर ईसाई उपदेशक का काम भी करता था। 56वीं बंगाल नेटिव इन्फैंट्री के कैप्टन विलियम हैलीडे की पत्नी उर्दू और देवनागरी में बाइबल की प्रतियाँ सिपाहियों को बाँटने का काम करती थी। इस तरह भारतीय सिपाहियों के मन में यह बात पुख्ता हो गई कि अंग्रेज उनका धर्म भ्रष्ट करने का यत्न कर रहे हैं।
इतिहासकार दीप्ति किशोर के अनुसार बैरकपुर छावनी में 29 मार्च 1857 को हुई घटना ने पूरे देश में खलबली मचा दी और जहाँ-जहाँ खबर फैली वहीं फिरंगियों के खिलाफ विद्रोह शुरू हो गया। उनके मुताबिक ब्रितानिया हुकूमत के खिलाफ मंगल पांडे के बगावती तेवरों ने आग में घी डालने का काम किया और मन ही मन सुलग रही क्रांति की चिनगारी ज्वाला बनकर भड़क उठी। नए कारतूस का प्रयोग अंग्रेजों के लिए घातक साबित हुआ।
देश में क्रांति की पहली लौ जलाने वाले मंगल पांडे को आठ अप्रैल 1857 को फाँसी पर लटका दिया गया था। उनके बाद 21 अप्रैल को उनके सहयोगी ईश्वरी प्रसाद को भी फाँसी दे दी गई। इस घटना की खबर के फैलते ही देश में जगह-जगह आजादी का बिगुल बज उठा और हिन्दुस्तानियों तथा अंग्रेजों के बीच हुई जंग में काफी खून बहा। हालाँकि बाद में अंग्रेज इस विद्रोह को दबाने में सफल हो गए। भारतीय इतिहास में इस घटना को ‘1857 का गदर’ नाम दिया गया। बाद में इसे आजादी की पहली लड़ाई करार दिया गया।