7 सितंबर 2019 चांद पर होगा Chandrayaan-2, लैंडिंग के अंतिम 15 मिनट जब थम जाएंगी धड़कनें
By: Pinki Tue, 20 Aug 2019 2:04:00
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने एक बड़ी उपलब्धि हासिल करते हुए चंद्रयान-2 (Chandrayaan-2) को चंद्रमा की कक्षा में मंगलवार को सफलतापूर्वक स्थापित कर दिया। बुधवार को श्रीहरिकोटा से लॉन्चिंग के 29 दिन बाद चंद्रयान ने सफर के सबसे मुश्किल पड़ावों में से एक को पार कर लिया। सुबह 9 बजकर 30 मिनट पर वह चंद्रमा की कक्षा में प्रवेश कर गया। चांद के 3 लाख 84 हजार किलोमीटर के सफर पर निकला चंद्रयान अब अपने मिशन से महज 18 हजार किलोमीटर दूर है। बता दे, अगर सब कुछ ठीक रहा तो 7 सितंबर 2019 रात के ठीक 1 बजकर 55 मिनट पर चंद्रयान-2 चांद पर होगा।
#WATCH Indian Space Research Organisation (ISRO) Chief K Sivan explains the intricacies of the #Chandrayaan2 mission using a miniature model. pic.twitter.com/Wqux0EflWZ
— ANI (@ANI) August 20, 2019
इस मिशन के सबसे तनावपूर्ण क्षण चांद पर विक्रम की लैंडिंग से पहले के 15 मिनट होंगे। यानी 7 सितंबर की रात 1 बजकर 55 मिनट से पहले तनाव अपने चरम पर होगा। खुद भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी इसरो के चीफ के सिवन ने कहा है 'लैंडिंग के अंतिम 15 मिनट बेहद चुनौतीपूर्ण रहेंगे क्योंकि उस दौरान हम ऐसा कुछ करेंगे जिसे हमने अभी तक कभी नहीं किया है।'
सिवन ने कहा, 'चंद्रमा की सतह से 30 किलोमीटर दूर चंद्रयान-2 की लैंडिंग के लिए इसकी स्पीड कम की जाएगी। विक्रम को चांद की सतह पर उतारने का काम काफी मुश्किल होगा। इस दौरान का 15 मिनट काफी चुनौतीपूर्ण होने वाला है। हम पहली बार सॉफ्ट लैंडिंग की करेंगे। यह तनाव का क्षण केवल इसरो ही नहीं बल्कि सभी भारतीयों के लिए होगा।'
सॉफ्ट लैंडिंग में सफलता मिलते ही भारत ऐसा करने वाला दुनिया का चौथा देश बन जाएगा। अभी तक अमेरिका, रूस और चीन के पास ही यह विशेषज्ञता है।
बता दे, चंद्रयान-2 मिशन की लॉन्चिंग की तारीख पहले 15 जुलाई थी। बाद में इसे 22 जुलाई को लॉन्च किया गया था। मिशन की लॉन्चिंग की तारीख पहले आगे बढ़ाने के बावजूद चंद्रयान-2 चांद पर तय तारीख (7 सितंबर) को ही पहुंचेगा। इसे समय पर पहुंचाने का मकसद यही है कि लैंडर और रोवर तय शेड्यूल के हिसाब से काम कर सकें। समय बचाने के लिए चंद्रयान ने पृथ्वी का एक चक्कर कम लगाया। पहले 5 चक्कर लगाने थे, पर बाद में इसे चार किया गया। लैंडिंग ऐसी जगह तय है, जहां सूरज की रोशनी ज्यादा है। रोशनी 21 सितंबर के बाद कम होनी शुरू होगी। लैंडर-रोवर को 15 दिन काम करना है, इसलिए समय पर पहुंचना जरूरी है।