अयोध्या विवाद : सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा, मध्यस्थता पर सभी पक्षों से मांगे नाम, पढ़ें पूरे मामले पर SC ने क्या-क्या कहा

By: Pinki Wed, 06 Mar 2019 1:03:30

अयोध्या विवाद : सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा, मध्यस्थता पर सभी पक्षों से मांगे नाम, पढ़ें पूरे मामले पर SC ने क्या-क्या कहा

अयोध्या मामले (Ayodhya Case) में मामले में मध्यस्थता हो या नहीं इसपर आज सुप्रीम कोर्ट में करीब एक घंटे तक सुनवाई हुई और सुप्रीम कोर्ट ने सभी पक्षों से मध्यस्थता करने वालों के नाम मांगे। चीफ जस्टिस रंजन गोगोई (CJI Ranjan Gogoi) की अगुवाई में पांच जजों की संविधान पीठ ने इस मामले की बुधवार को सुनवाई की। सुनवाई के दौरान निर्मोही अखाड़े को छोड़कर रामलला विराजमान समेत हिंदू पक्ष के बाकी वकीलों ने मध्यस्थता का विरोध किया। यूपी सरकार ने भी इसे अव्यवहारिक बताया। मुस्लिम पक्ष और निर्मोही अखाड़ा मध्यस्थता के पक्ष में है। सुनवाई के दौरान जहां मुस्लिम पक्ष मध्यस्थता के लिए तैयार दिखा, वहीं हिंदू महासभा और रामलला पक्ष ने इस पर सवाल उठाए। हिंदू महासभा ने कहा कि जनता मध्यस्थता के फैसले को नहीं मानेगी। सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने पिछली सुनवाई के दौरान सुझाव दिया था कि दोनों पक्षकार बातचीत का रास्ता निकालने पर विचार करें। अगर एक फीसदी भी बातचीत की संभावना हो तो उसके लिए कोशिश होनी चाहिए।

सुनवाई से जुड़ी अहम बातें...

- सुनवाई की शुरुआत में हिंदू महासभा ने पीठ से कहा जनता मध्यस्थता के लिए तैयार नहीं होगी। तो इस पर संविधान पीठ ने कहा कि आप कह रहे है कि इस मसले पर समझौता नहीं हो सकता। जस्टिस बोबड़े ने हिंदू महासभा से कहा- आप कह रहे हैं कि समझौता फेल हो जाएगा। आप प्री जज कैसे कर सकते हैं ?

- संविधान पीठ ने कहा यह केवल जमीन का विवाद नहीं है, यह भावनाओं से जुड़ा हुआ है। यह दिल दिमाग और हीलिंग का मसला है। इसलिए कोर्ट चाहता है कि आपसी बातचीत से इसका हल निकले।

- सुनवाई के दौरान हिंदू महासभा की दलील पर सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस बोबडे ने कहा कि जब वैवाहिक विवाद में कोर्ट मध्यस्थता के लिए कहता है तो किसी नतीजे की नहीं सोचता। बस विकल्प आजमाना चाहता है। हम ये नहीं सोच रहे कि कोई किसी चीज का त्याग करेगा। हम जानते हैं कि ये आस्था का मसला है, हम इसके असर के बारे में जानते हैं।

- जस्टिस बोबड़े ने कहा हम हैरान हैं कि विकल्प आज़माए बिना मध्यस्थता को खारिज क्यों किया जा रहा है? कोर्ट ने कहा अतीत पर हमारा नियंत्रण नहीं है पर हम बेहतर भविष्य की कोशिश जरूर कर सकते हैं। विवाद में अब क्या है हम इस उस पर बात कर रहे हैं। कोई उस जगह बने और बिगड़े निर्माण या मन्दिर, मस्जिद और इतिहास को बदल नहीं कर सकता। बाबर था या नहीं, वो किंग था या नहीं ये सब इतिहास की बात है। सिर्फ आपसी बातचीत से ही बदल सकता है।

- मुस्लिम पक्षकार की ओर ओर से राजीव धवन ने पक्ष रखा। उन्होंने कहा कि यह कोर्ट के ऊपर है कि मध्यस्थ कौन हो? मध्यस्थता इन कैमरा हो। इस पर जस्टिस बोबड़े बोले ने कहा कि यह गोपनीय होना चाहिए। साथ ही उन्होंने कहा पक्षकारों द्वारा गोपनीयता का उल्लंघन नहीं होना चाहिए। मीडिया में इसकी टिप्पणियां नहीं होनी चाहिएं। प्रक्रिया की रिपोर्टिंग ना हो। अगर इसकी रिपोर्टिंग हो तो इसे अवमानना घोषित किया जाए।

- जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि यह सिर्फ पक्षों का विवाद नहीं है। दोनों तरफ करोड़ों लोग हैं। मध्यस्थता में जो निकलेगा, वो सबको मान्य कैसे होगा। जिसपर मुस्लिम पक्ष के वकील राजीव धवन ने कहा कि आप आदेश दे देंगे तो सब मानेंगे। मुस्लिम पक्ष के वकील राजीव धवन ने कहा कि हम चाहते हैं मध्यस्थता बंद कमरे में हो। बातें लीक न हों। हम मध्यस्थता के लिए जाने को तैयार हैं। निर्मोही अखाड़ा भी तैयार है।

- साथ ही जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि शांतिपूर्ण वार्ता के माध्यम से संकल्प की वांछनीयता एक आदर्श स्थिति है। लेकिन असल सवाल यह है कि ये कैसे किया जा सकता है? मध्यस्थता का मकसद पक्षकारों के बीच समझौता कराना है।

- जब सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि मध्यस्थता के जरिए हुए फैसले को लाखों लोगों के लिए बाध्यकारी कैसे बनाया जाए? तो मुस्लिम पक्ष ने कहा कि मध्यस्थता का सुझाव कोर्ट की तरफ से आया है और बातचीत कैसे होगी ये कोर्ट को तय करना है?

- जस्टिस बोबड़े ने कहा कि जब कोई पार्टी किसी समुदाय की प्रतिनिधि होती है, चाहे वह प्रतिनिधि के मुकदमे में कोर्ट की कार्यवाही हो या मध्यस्थता हो। उसे बाध्यकारी होना चाहिए।

- जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि कोर्ट का फैसला एक बाध्यकारी चरित्र है। मध्यस्थता में हम कैसे लोगों को बाध्यकारी बना सकते हैं।

- हिन्दू पक्ष ने कहा कि मान लीजिये की सभी पक्षों में समझौता हो गया तो भी समाज इसे कैसे स्वीकार करेगा? इस पर जस्टिस बोबड़े ने कहा कि अगर समझौता कोर्ट को दिया जाता है और कोर्ट उस पर सहमति देता है और आदेश पास करता है। तब वो सभी को मानना ही होगा।

- हिंदू पक्ष के हरिशंकर जैन ने कहा कि कोर्ट मध्यस्थता से पहले सभी पक्षों की बात सुनें, ये नियम है। इसी दौरान जस्टिस बोबडे ने कहा कि अगर हम भूमि विवाद पर डिग्री (फैसला) दें तो क्या वो सबको मान्य हो जाएगा?

- वकील और बीजेपी नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने सुनवाई के दौरान कहा कि मध्यस्थता के कुछ पैरामीटर हैं और उससे आगे नहीं जा सकता। उन्होंने 1994 में संविधान पीठ के फैसले का जिक्र किया, जिसमें पासिंग रिमार्क था कि मस्जिद में नमाज पढ़ना इस्लाम का अंदरूनी हिस्सा नहीं है।

- रामलला विराजमान के वकील सी एस वैद्यनाथन ने कहा कि मध्यस्थता के पहले बहुत प्रयास हुए। अयोध्या रामजन्मभूमि है, इस पर कोई सुलह मुमकिन नहीं है। सरकार देख ले कि मस्ज़िद के लिए कहां जगह दी जा सकती है। समझौते का इकलौता बिंदु यही हो सकता है। मध्यस्थता पर जाने की कोई जरूरत नहीं है।

- रामलला विराजमान की तरफ से कहा गया अयोध्या का मतलब राम जन्मभूमि। यह मामला बातचीत से हल नहीं हो सकता। साथ ही कहा कि मस्जिद किसी दूसरे स्थान पर बन सकती है। इस पर जस्टिस बोबड़े ने कहा कि आप अपना यह पक्ष मध्यस्थता के दौरान रख सकते हैं। इस पर रामलला विराजमान की तरफ से कहा गया कि फिर मध्यस्थता का मतलब क्या है?

- हिन्दू महासभा मध्यस्थता के लिए तैयार नहीं है, ये राम जन्मभूमि का मसला है और यह कोई ज़मीन का विवाद नहीं है। किसी को भी सुलह कर लेने का अधिकार नहीं है। हिंदू महासभा के वकील हरिशंकर जैन मध्यस्थता का विरोध कर रहे हैं।

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