नवरात्रि स्पेशल : माँ कूष्मांडा के पूजन से होता है सभी कष्टों का निवारण, जानें इसकी पूर्ण विधि

By: Ankur Sat, 13 Oct 2018 1:16:18

नवरात्रि स्पेशल : माँ कूष्मांडा के पूजन से होता है सभी कष्टों का निवारण, जानें इसकी पूर्ण विधि

आज नवरात्रि के त्योहार का चतुर्थ दिन हैं, जो कि मातारानी के कूष्मांडा स्वरुप को समर्पित होता हैं। आज के दिन माँ कूष्मांडा का पूरे विधि-विधान के साथ पूजन किया जाता हैं। माँ कूष्मांडा की पूजा करने से समस्त रोग व कष्टों का नाश होता हैं। इसी के साथ ही जातक को रिद्धि-सिद्धि की प्राप्ति भी होती हैं। इसलिए आज के दिन मातारानी की पूजा अवश्य करनी चाहिए। आज हम आपको माँ कूष्मांडा के पूजन की पूर्ण विधि बताने जा रहे हैं, ताकि आप उचित फल प्राप्त कर सकें। तो आइये जानते हैं माँ कूष्मांडा के पूजन की पूर्ण विधि के बारे में।

* पूजा विधि

सर्वप्रथम कलश और उसमें उपस्थित देवी देवता की पूजा करनी चाहिए। तत्पश्चात माता के साथ अन्य देवी देवताओं की पूजा करनी चाहिए, इनकी पूजा के पश्चात देवी कूष्माण्डा की पूजा करनी चाहिए। पूजा की विधि शुरू करने से पूर्व हाथों में फूल लेकर देवी को प्रणाम करना चाहिए। इसके बाद व्रत, पूजन का संकल्प लें और वैदिक एवं सप्तशती मंत्रों द्वारा मां कूष्माण्डा सहित समस्त स्थापित देवताओं की षोडशोपचार पूजा करें। इसमें आवाहन, आसन, पाद्य, अध्र्य, आचमन, स्नान, वस्त्र, सौभाग्य सूत्र, चंदन, रोली, हल्दी, सिंदूर, दुर्वा, बिल्वपत्र, आभूषण, पुष्प-हार, सुगंधित द्रव्य, धूप-दीप, नैवेद्य, फल, पान, दक्षिणा, आरती, प्रदक्षिणा, मंत्र पुष्पांजलि आदि करें। तत्पश्चात प्रसाद वितरण कर पूजन संपन्न करें।

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* ध्यान मंत्र

वन्दे वांछित कामर्थे चन्द्रार्घकृत शेखराम्। सिंहरूढ़ा अष्टभुजा कूष्माण्डा यशस्वनीम्॥
भास्वर भानु निभां अनाहत स्थितां चतुर्थ दुर्गा त्रिनेत्राम्। कमण्डलु, चाप, बाण, पदमसुधाकलश, चक्र, गदा, जपवटीधराम्॥
पटाम्बर परिधानां कमनीयां मृदुहास्या नानालंकार भूषिताम्। मंजीर, हार, केयूर, किंकिणि रत्नकुण्डल, मण्डिताम्॥
प्रफुल्ल वदनांचारू चिबुकां कांत कपोलां तुंग कुचाम्। कोमलांगी स्मेरमुखी श्रीकंटि निम्ननाभि नितम्बनीम्॥

* स्तोत्र पाठ

दुर्गतिनाशिनी त्वंहि दरिद्रादि विनाशनीम्। जयंदा धनदा कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम्॥
जगतमाता जगतकत्री जगदाधार रूपणीम्। चराचरेश्वरी कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम्॥
त्रैलोक्यसुन्दरी त्वंहिदुःख शोक निवारिणीम्। परमानन्दमयी, कूष्माण्डे प्रणमाभ्यहम्॥

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