Janmashtami Special : गीता में 'ॐ' को माना गया है एकाक्षर ब्रह्म

By: Ankur Mon, 03 Sept 2018 3:34:19

Janmashtami Special : गीता में 'ॐ' को माना गया है एकाक्षर ब्रह्म

भगवतगीता का ज्ञान हमारे जीवन की कई समस्याओं को हल करता हैं। इसके मुताबिक़ जीवन में आ रही बाधाओं को समझ के साथ दूर किया जा सकता हैं। आज हम आपको कृष्ण जन्माष्टमी के इस शुभ अवसर पर भगवतगीता के कुछ अध्यायों का सारांश बताने जा रहे हैं। ये अध्यायों का ज्ञान कृष्ण ने अर्जुन को दिया था। तो आइये जानते हैं इन अध्यायों के बारे में।

* सातवां अध्याय

सातवें अध्याय की संज्ञा ज्ञानविज्ञान योग है। विज्ञान की दृष्टि से अपरा और परा प्रकृति के इन दो रूपों की व्याख्या गीता ने दी है। अपरा प्रकृति में आठ तत्व हैं, पंचभूत, मन, बुद्धि और अहंकार। इसमें ईश्वर की चेष्टा के संपर्क से जो चेतना आती है उसे परा प्रकृति कहते हैं, वही जीव है। आठ तत्वों के साथ मिलकर जीवन नवां तत्व हो जाता है। इस अध्याय में भगवान के अनेक रूपों का उल्लेख किया गया है।

importance of om,bhagwat gita,janmashtami special ,ॐ, गीता, एकाक्षर ब्रह्म,भगवतगीता का ज्ञान

* आठवां अध्याय

इस अध्याय की संज्ञा अक्षर ब्रह्मयोग है। उपनिषदों में अक्षर विद्या का विस्तार हुआ और गीता में उसे अक्षरविद्या का सार कह दिया गया है। अक्षर ब्रह्म परमं, मनुष्य, अर्थात् जीव और शरीर की संयुक्त रचना का ही नाम अध्यात्म है। गीता के शब्दों में ॐ एकाक्षर ब्रह्म है।

* नवां अध्याय

नवें अध्याय को राजगुह्ययोग कहा गया है, अर्थात् यह अध्यात्म विद्या और गुह्य ज्ञान सबमें श्रेष्ठ है। मन की दिव्य शक्तियों को किस प्रकार ब्रह्ममय बनाया जाय, इसकी युक्ति ही राजविद्या है। इस क्षेत्र में ब्रह्मतत्व का निरूपण ही प्रधान है। वेद का समस्त कर्मकांड यज्ञ, अमृत, और मृत्यु, संत और असंत, और जितने भी देवी देवता है, सबका पर्यवसान ब्रह्म में है।

Home | About | Contact | Disclaimer| Privacy Policy

| | |

Copyright © 2025 lifeberrys.com