
केरल की रहने वाली भारतीय नर्स निमिषा प्रिया को आखिरकार राहत मिली है। यमन सरकार ने उनकी मृत्युदंड की सजा को पूरी तरह से निरस्त कर दिया है। यह फैसला भारत के लिए एक बड़ी कूटनीतिक जीत माना जा रहा है। इस अहम जानकारी की पुष्टि कंथापुरम ए. पी. अबूबकर मुसलियार के कार्यालय ने की है, जो भारत के ग्रैंड मुफ्ती हैं। कार्यालय द्वारा जारी एक आधिकारिक बयान में कहा गया है कि, “पहले यह सजा निलंबित की गई थी, लेकिन अब इसे पूरी तरह से खत्म कर दिया गया है।”
समाचार एजेंसी ANI के अनुसार, इससे पहले यमन की राजधानी साना में उच्च स्तर पर विचार-विमर्श हुआ था, जहां यह तय किया गया कि प्रिया की फांसी की सजा को फिलहाल रोका जाए। लेकिन अब इस निर्णय को स्थायी रूप से बदलते हुए, मृत्युदंड को पूरी तरह रद्द करने का निर्णय लिया गया है।
फांसी की तारीख से पहले आया था बड़ा मोड़
निमिषा प्रिया की फांसी की तारीख 16 जुलाई 2025 तय थी। लेकिन ठीक एक दिन पहले भारत के ग्रैंड मुफ्ती एपी अबूबकर मुसलियार ने यमन के अधिकारियों से विशेष तौर पर मुलाकात कर व्यक्तिगत अनुरोध किया। इस मानवीय अपील ने यमन सरकार को निर्णय पर पुनर्विचार करने को प्रेरित किया और उसी दिन सजा पर अस्थायी रोक लग गई।
हालांकि भारत सरकार या यमन की ओर से अब तक कोई औपचारिक लिखित पुष्टि नहीं आई है, लेकिन यह साफ हो गया है कि भारत की ओर से की गई सुनियोजित और संगठित कूटनीतिक कोशिशें इस फैसले के पीछे बड़ी वजह बनीं।
Indian Grand Mufti, Kanthapuram AP Abubakker Muslaiyar’s office says, "The death sentence of Nimisha Priya, which was previously suspended, has been overturned. A high-level meeting held in Sanaa decided to completely cancel the death sentence that was temporarily suspended… https://t.co/tD1NVQtM9C
— ANI (@ANI) July 29, 2025
रोज़गार की चाह में यमन पहुंचीं थीं प्रिया, हालात ने लिया खतरनाक मोड़
38 वर्षीय निमिषा प्रिया, जो एक ईसाई परिवार से हैं, 2008 में रोजगार के लिए यमन पहुंची थीं। वहां उन्होंने साना में एक यमनी नागरिक तलाल अब्दो महदी के साथ मिलकर एक क्लिनिक खोला। शुरुआत में सब सामान्य लग रहा था, लेकिन जल्दी ही महदी का व्यवहार प्रिया के प्रति उत्पीड़नकारी हो गया। उसने न सिर्फ़ प्रिया का पासपोर्ट जब्त कर लिया, बल्कि खुद को सार्वजनिक रूप से उसका पति भी घोषित कर दिया।
प्रिया बार-बार भारत लौटने की कोशिश करती रहीं, लेकिन बिना पासपोर्ट वह यमन में फंसी रह गईं। 2017 में उन्होंने महदी को बेहोश कर पासपोर्ट वापस लेने की योजना बनाई, लेकिन अनजाने में दी गई अधिक मात्रा की बेहोशी की दवा से महदी की मौत हो गई। इसके बाद प्रिया पर हत्या का गंभीर आरोप लगा और उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया।
कानूनी लड़ाई और मौत की सजा का सिलसिला
2018 में गिरफ्तारी के बाद प्रिया पर मुकदमा चला और 2020 में यमन की अदालत ने उन्हें मौत की सजा सुना दी। इस निर्णय को दिसंबर 2024 में यमन के राष्ट्रपति रशद अल-अलीमी और जनवरी 2025 में हूती नेता महदी अल-मशात ने औपचारिक रूप से मंजूरी दे दी थी। यह फैसला सामने आते ही मामला अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का विषय बन गया।
दुनिया भर के मानवाधिकार संगठनों, भारतीय सामाजिक कार्यकर्ताओं और मीडिया संस्थानों ने इस पर सवाल उठाए और न्याय की मांग की। इसी दबाव के चलते भारत ने तेज़ी से राजनयिक प्रयास किए, जिसके नतीजे में अब निमिषा प्रिया की जान बच पाई है।














