
इस्लामाबाद: पाकिस्तान की जमीयत उलेमा-ए-इस्लाम (एफ) के प्रमुख मौलाना फजलुर रहमान ने शुक्रवार (31 अक्टूबर 2025) को पाकिस्तानी सेना के रुख पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की। अफगानिस्तान को लेकर सेना प्रमुख फील्ड मार्शल आसिम मुनीर की नीति पर सवाल उठाते हुए उन्होंने कहा कि “अब पाकिस्तान के पास किसी और युद्ध में उलझने की क्षमता नहीं है।”
मौलाना रहमान, जो पाकिस्तान के प्रभावशाली पश्तून धर्मगुरुओं में से एक माने जाते हैं, ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि देश को अपने पुराने सैन्य इतिहास से सबक लेना चाहिए। उन्होंने 1971 के बांग्लादेश युद्ध और 1999 के कारगिल संघर्ष का उल्लेख करते हुए कहा कि इन अभियानों ने पाकिस्तान की अंतरराष्ट्रीय प्रतिष्ठा को गहरा आघात पहुंचाया था। रहमान के अनुसार, ये युद्ध सेना के "लापरवाह और अव्यावहारिक निर्णयों" का परिणाम थे, जिनसे पाकिस्तान को भारी नुकसान झेलना पड़ा।
सेना को “वास्तविक समस्याओं” पर ध्यान देना चाहिए
अपने बयान में मौलाना फजलुर रहमान ने कहा कि पाकिस्तानी सेना को सीमाओं पर टकराव की बजाय देश के भीतर बढ़ती समस्याओं — जैसे खैबर पख्तूनख्वा में आतंकवाद, गंभीर आर्थिक संकट और राजनीतिक अस्थिरता — पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। उन्होंने आरोप लगाया कि सेना जनता के बीच भय का माहौल बनाकर सत्ता पर पकड़ बनाए रखना चाहती है, जो देश के लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ है।
मौलाना ने यह भी कहा कि इस्लाम किसी निर्दोष मुस्लिम पड़ोसी पर हमला करने की अनुमति नहीं देता। उन्होंने अफगानिस्तान के प्रति पाकिस्तानी सेना के आक्रामक रवैये को “गैर-इस्लामी और राजनीतिक रूप से आत्मघाती कदम” बताया।
भारत और अफगानिस्तान के संदर्भ में बयान की अहमियत
विश्लेषकों का मानना है कि मौलाना रहमान का यह बयान न केवल पाकिस्तान की आंतरिक राजनीति बल्कि भारत और अफगानिस्तान से जुड़े रणनीतिक समीकरणों पर भी असर डाल सकता है। भारतीय खुफिया एजेंसियों के मुताबिक, रहमान का बयान अफगान तालिबान की मनोवैज्ञानिक प्रतिक्रिया रणनीति का हिस्सा हो सकता है, जिसका उद्देश्य पाकिस्तान की “युद्धक नीति” को कमजोर करना है।
कई राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि रहमान जैसे प्रभावशाली धार्मिक नेता पाकिस्तान में चल रहे “इंटरनल वॉर नैरेटिव” को चुनौती देकर जनता का ध्यान वास्तविक मुद्दों की ओर मोड़ रहे हैं।
भारत यात्रा की इच्छा जताई
दिलचस्प बात यह है कि मौलाना फजलुर रहमान ने हाल ही में भारत की यात्रा करने की इच्छा भी जताई है। वह इसे “शांति का संदेश” लेकर आने की पहल बता रहे हैं। इस बात का खुलासा उनके करीबी सहयोगी और सांसद कामरान मुरतजा ने एक टीवी इंटरव्यू में किया। मुरतजा के अनुसार, उन्होंने खुद मौलाना रहमान का शांति संदेश एक भारतीय राजनयिक तक पहुंचाया है।
रहमान का यह कदम जहां भारत-पाक संबंधों में एक नया पहलू जोड़ सकता है, वहीं पाकिस्तान के भीतर उनकी आलोचना भी तेज हो सकती है। मौलाना के बयानों ने एक बार फिर यह स्पष्ट कर दिया है कि देश के अंदरूनी हालात और बाहरी नीतियां अब गंभीर पुनर्मूल्यांकन की मांग कर रही हैं।














