
पाकिस्तान के गिलगित-बाल्टिस्तान क्षेत्र में सोमवार को प्रकृति का कहर एक बार फिर टूट पड़ा। डायमर जिले के बाबूसर इलाके में मूसलधार बारिश और बादल फटने की घटना के बाद आई अचानक बाढ़ ने कई जिंदगियां लील लीं। इस भीषण आपदा में अब तक चार पर्यटकों की मौत की पुष्टि हो चुकी है, जबकि दो घायल हैं और 15 लोग अब भी लापता बताए जा रहे हैं। राहत और बचाव कार्य जारी है, लेकिन मुश्किल भौगोलिक परिस्थितियों और मौसम की खराबी के कारण चुनौती बनी हुई है।
गिलगित-बाल्टिस्तान सरकार के प्रवक्ता फैजुल्लाह फाराक के अनुसार, सोमवार को डायमर जिले के थाक और बाबूसर क्षेत्र में भारी बारिश के साथ बादल फटने की घटना हुई। इससे नदियों और नालों में अचानक जलस्तर बढ़ गया, जिससे कुछ ही मिनटों में बाढ़ ने विकराल रूप ले लिया। बाढ़ की चपेट में आकर आठ टूरिस्ट व्हीकल बह गए, जिनमें सवार लोग या तो लापता हैं या उनकी मौत हो चुकी है।
मारे गए और लापता लोगों की स्थिति
बाबूसर क्षेत्र में बाढ़ की चपेट में आने से चार पर्यटकों की जान चली गई है। उनकी पहचान अब तक सार्वजनिक नहीं की गई है। इन मृतकों में एक महिला भी है, जो पंजाब के लोधरां की रहने वाली थी। दो अन्य घायलों को अस्पताल में भर्ती कराया गया है, जहां उनकी हालत स्थिर बताई जा रही है। वहीं 15 लोगों की तलाश अभी भी जारी है, जिन्हें बाढ़ के पानी में बह जाने की आशंका है। प्रशासन ने सेना की मदद से हेलीकॉप्टर और विशेष रेस्क्यू टीमें भेजी हैं।
फैजुल्लाह फाराक ने करीब 15 पर्यटकों के लापता होने की पुष्टि की है। इनके अलावा अब तक चार शव बरामद किए गए हैं। घायलों और मृतकों को स्थानीय अस्पताल में भेज दिया गया है। प्रवक्ता ने बताया कि बाढ़ के चलते बाबूसर हाईवे भी बंद हो गया है। क्षेत्र में संचार और बिजली की व्यवस्था बुरी तरह प्रभावित है।
वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (एसएसपी) अब्दुल हमीद ने पाकिस्तान के प्रमुख अखबार 'डॉन' को बताया कि भयावह बाढ़ के चलते स्थिति बेहद चिंताजनक है। बाढ़ से लगभग सात किलोमीटर का क्षेत्र प्रभावित है।
गिलगित-बाल्टिस्तान के मुख्यमंत्री ने अधिकारियों को निर्देश दिया है कि वे लोगों को बचाने और उनकी सहायता के लिए सभी उपलब्ध संसाधनों का उपयोग करें। इस भीषण बाढ़ से कृषि भूमि, फसलों, पेड़ों, और सार्वजनिक और निजी संपत्ति को भारी नुकसान पहुंचा है।
एसएसपी अब्दुल हमीद का अनुमान है कि देश के विभिन्न हिस्सों से आए 20 से 30 पर्यटक फिलहाल लापता हो सकते हैं। बचाव दल उनकी खोज में लगे हैं, हालांकि लगातार बारिश के कारण रेस्क्यू मिशन में रुकावट आ रही है। इस बाढ़ ने काराकोरम राजमार्ग के एक हिस्से को भी क्षतिग्रस्त कर दिया है। इसके चलते दोनों ओर सैकड़ों पर्यटक फंस गए हैं।
प्राकृतिक आपदा या जलवायु संकट?
इस त्रासदी को केवल एक प्राकृतिक आपदा मान लेना नासमझी होगी। विशेषज्ञ इसे जलवायु परिवर्तन का सीधा असर मान रहे हैं। गिलगित-बाल्टिस्तान क्षेत्र, जो हिमालय और कराकोरम जैसे पर्वतीय क्षेत्रों से घिरा है, अब लगातार जलवायु असंतुलन की चपेट में आ रहा है। बारिश का पैटर्न बदल रहा है, बर्फ तेजी से पिघल रही है और बादल फटने की घटनाएं सामान्य होती जा रही हैं।
घटना के तुरंत बाद प्रशासन ने रेस्क्यू ऑपरेशन शुरू किया। स्थानीय पुलिस, फायर ब्रिगेड, आपदा प्रबंधन बल (NDMA) और सेना की टीमें राहत कार्य में जुट गई हैं। लेकिन इलाके की कठिन पहाड़ी बनावट, संकरी सड़कें और खराब मौसम बचाव कार्य में बड़ी बाधा बन रहे हैं। प्रशासन ने आसपास के ग्रामीण इलाकों में अलर्ट जारी कर दिया है और पर्यटकों को अगले आदेश तक क्षेत्र से दूर रहने की सलाह दी गई है।
पर्यटन क्षेत्र को भारी नुकसान
गिलगित-बाल्टिस्तान का यह क्षेत्र गर्मियों में पर्यटन का प्रमुख केंद्र होता है। खासकर बाबूसर पास और थाक वैली जैसे स्थल पर्यटकों के बीच लोकप्रिय हैं। लेकिन इस हादसे के बाद क्षेत्र की पर्यटन गतिविधियों को बड़ा झटका लगा है। होटल मालिकों, गाइडों और स्थानीय कारोबारियों को आर्थिक नुकसान का भी सामना करना पड़ रहा है।
सरकार और अंतरराष्ट्रीय संगठनों से अपील
स्थानीय प्रशासन ने केंद्र सरकार से आपदा राहत कोष के तहत तत्काल सहायता की मांग की है। साथ ही अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों से जलवायु परिवर्तन के खतरों से निपटने के लिए तकनीकी सहयोग और संसाधन देने की अपील की है। पाकिस्तान पहले से ही आर्थिक संकट और जलवायु आपदाओं की मार झेल रहा है, ऐसे में इस तरह की घटनाएं हालात को और गंभीर बना रही हैं।
गिलगित-बाल्टिस्तान की यह त्रासदी केवल एक क्षेत्रीय हादसा नहीं, बल्कि पूरे दक्षिण एशिया के लिए चेतावनी है। जलवायु परिवर्तन अब सीमाओं से परे जाकर जान-माल की हानि का कारण बन रहा है। बाढ़, भूस्खलन और बादल फटने की बढ़ती घटनाएं इस बात की ओर इशारा करती हैं कि अब केवल राहत कार्य ही काफी नहीं, बल्कि जलवायु के अनुकूल नीति और पूर्व चेतावनी प्रणाली की सख्त जरूरत है। जब तक हम पर्यावरणीय असंतुलन को गंभीरता से नहीं लेंगे, तब तक ऐसे हादसे दोहराते रहेंगे—और हर बार कीमत होगी निर्दोष जिंदगियों की।














