
राष्ट्रगीत ‘वंदे मातरम्’ की रचना को 150 वर्ष पूरे होने पर लोकसभा में एक विशेष चर्चा आयोजित की गई, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर कई दिग्गज सांसदों ने भाग लिया। समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष और कन्नौज के सांसद अखिलेश यादव भी इस चर्चाओं में शामिल हुए और उन्होंने राष्ट्रगीत की ऐतिहासिक भूमिका और उसके मौलिक अर्थों पर विस्तार से बात रखी। अखिलेश ने कहा कि भारत की स्वतंत्रता यात्रा में वंदे मातरम् ने अनगिनत क्रांतिकारियों के भीतर इतना जोश भरा कि वे हर कठिनाई को पार करने में सक्षम हुए।
अखिलेश ने जोर देकर कहा कि वंदे मातरम् सिर्फ एक गीत नहीं, बल्कि एक प्रेरणा का स्रोत था, जिसने आज़ादी के आंदोलन में देश को एकजुट रखा। उन्होंने कहा कि देश को आज जिन चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, उन्हें देखते हुए आवश्यक है कि राष्ट्रगीत को केवल गाया ही न जाए, बल्कि उसके संदेश को व्यवहार में उतारा जाए।
बीजेपी पर निशाना साधते हुए सपा प्रमुख ने कहा कि जो खुद को राष्ट्रवाद का सबसे बड़ा पैरोकार बताते हैं, वे वास्तव में “राष्ट्र-विवाद की राजनीति” में लिप्त दिखाई देते हैं। उनका कहना था कि देश में सामाजिक न्याय की स्थिति कहीं अधिक महत्वपूर्ण है, और इसकी उपेक्षा कर सिर्फ राष्ट्रवाद की बातें करने का कोई अर्थ नहीं है।
पीएम मोदी ने याद दिलाया बंकिम चंद्र चटोपाध्याय का योगदान
चर्चा की शुरुआत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने की और बंकिम चंद्र चटोपाध्याय द्वारा रचित इस गीत को स्वतंत्रता संघर्ष की आत्मा बताया। उन्होंने कहा कि अंग्रेजों के अत्याचारों के बीच वंदे मातरम् एक ऐसा गीत बना जो हर भारतीय के मन में साहस और संकल्प की ज्वाला जगाता था।
पीएम मोदी ने कहा, “दुनिया के इतिहास में शायद ही कोई ऐसा गीत हो जिसने सदियों तक करोड़ों लोगों को एक लक्ष्य के लिए प्रेरित किया हो। वंदे मातरम् केवल साहित्यिक रचना नहीं, बल्कि उस समय के हर भारतीय का संकल्प था।”
प्रधानमंत्री ने इस बात पर गर्व जताया कि गुलामी के भयानक दौर में भी भारत ऐसे प्रतिभाशाली लोगों को जन्म देता रहा, जो संपन्न राष्ट्रों को भी चकित कर देने वाली रचनाएँ संसार को दे सके। उनके अनुसार, दुनिया को यह याद दिलाना आवश्यक है कि भारत की सांस्कृतिक शक्ति कितनी गहरी और सशक्त रही है।
‘गीत गाने से ज्यादा उसके मूल्यों को अपनाना जरूरी’—अखिलेश यादव का तर्क
अपनी प्रतिक्रिया में अखिलेश यादव ने कहा कि वंदे मातरम् पर चर्चा तब सार्थक होगी, जब हम इसके पीछे छिपे आदर्शों को अपने व्यवहार में उतारें। उन्होंने तर्क दिया कि सामाजिक न्याय, समान अवसर और संविधान के मूल्यों को मजबूत किए बिना किसी गीत या नारे का महत्व अधूरा रह जाता है।
उन्होंने कहा, “सिर्फ गाने से क्या होगा? असल सवाल यह है कि क्या हम उस भावना को जी रहे हैं जिसके लिए वंदे मातरम् रचा गया था। बाबा साहेब ने जो मार्ग दिखाया, उस सामाजिक न्याय की स्थिति आज क्या है? देश में बराबरी कितनी है?”
अखिलेश ने वर्तमान सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि आर्थिक असमानता बढ़ रही है और आम जनता के लिए बुनियादी सुविधाएँ भी महंगी होती जा रही हैं। फ्लाइट टिकटों के बढ़े दामों का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि यह स्थिति बताती है कि देश किस दिशा में जा रहा है।
उन्होंने कहा कि आज आवश्यक है कि देश यह देखे कि सामाजिक न्याय और समानता के मोर्चे पर हम कितनी प्रगति कर रहे हैं, क्योंकि यही वह मूल्य हैं जिनकी रक्षा के लिए आज़ादी की लड़ाई लड़ी गई थी।














