
दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल ने एक ऐसा बयान दिया है, जो न सिर्फ चर्चा में है बल्कि उनके आत्मविश्वास को भी बयां करता है। उन्होंने कहा है कि सुशासन के लिए उन्हें नोबेल पुरस्कार मिलना चाहिए। संघर्षों और रुकावटों के बावजूद जो कुछ उन्होंने दिल्ली की जनता के लिए किया, वह किसी अंतरराष्ट्रीय सम्मान से कम नहीं। उनकी बातों में झलक रहा था एक नेता का दर्द, जो हर मोर्चे पर जनता के लिए लड़ता रहा।
अरविंद केजरीवाल ने कहा कि उपराज्यपाल की रोक के बावजूद उन्होंने जो कार्य किए, वह शासन और प्रशासन की कसौटी पर खरे उतरते हैं और इसी कारण उन्हें नोबेल पुरस्कार मिलना चाहिए। यह वही केजरीवाल हैं, जिन्होंने पहले अपने करीबी साथियों मनीष सिसोदिया और सत्येंद्र जैन के लिए भारत रत्न की मांग की थी—लेकिन शायद यह पहली बार है जब उन्होंने खुद को इस तरह किसी पुरस्कार का हकदार बताया है। यह बयान उनके भीतर छिपी उस आत्म-स्वीकृति को दिखाता है, जो वर्षों की मेहनत और संघर्ष के बाद किसी नेता में आती है।
इस मौके पर आम आदमी पार्टी के वरिष्ठ नेता जैसमीन शाह की किताब ‘केजरीवाल मॉडल’ का पंजाबी भाषा में लोकार्पण किया गया। पंजाब के मोहाली स्थित कलकट भवन में आयोजित कार्यक्रम में अरविंद केजरीवाल ने अपने नौकरशाही से राजनीति तक के सफर को साझा किया। उन्होंने बताया कि कैसे एक साधारण आरटीआई कार्यकर्ता से वे मुख्यमंत्री बने, और इस सफर में उन्होंने दिल्ली की शिक्षा और स्वास्थ्य व्यवस्था को बेहतर बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। उनकी बातें सुनकर वहां मौजूद हर शख्स उनकी आंखों में संघर्ष की चमक और बदलाव की उम्मीद देख रहा था।
मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित हो चुके अरविंद केजरीवाल ने इस मौके पर एक बार फिर खुद को नोबेल पुरस्कार का दावेदार बताया। उन्होंने साफ शब्दों में कहा, ‘जितने दिन हमारी सरकार रही, हमें काम नहीं करने दिया गया, लेकिन फिर भी हमने काम किया। इसीलिए मुझे लगता है कि गवर्नेंस और एडमिनिस्ट्रेशन के लिए नोबेल मिलना चाहिए। एलजी की मौजूदगी के बावजूद दिल्ली में जो काम हमने किए, वह आसान नहीं था।’ उनकी इस बात में न सिर्फ प्रशासनिक चुनौतियों का संकेत था, बल्कि उस हिम्मत की भी झलक थी, जो विपरीत परिस्थितियों में भी रास्ता तलाशती है।
अंत में भाजपा पर निशाना साधते हुए उन्होंने कहा कि भाजपा न खुद काम करना चाहती है और न ही दूसरों को करने देना चाहती है। यह बयान भी उस गहरी राजनीतिक खींचतान को दर्शाता है, जो दिल्ली की सत्ता में लगातार बनी रही है। केजरीवाल की यह टिप्पणी उनके जुझारूपन और जमीनी हकीकत से जुड़े संघर्षों को एक बार फिर उजागर कर गई।














