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न्याय करना नौकरी नहीं, राष्ट्र सेवा है: औरंगाबाद में बोले CJI भूषण गवई

सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश (CJI) भूषण गवई ने कहा न्याय देना केवल अदालत की 10 से 5 बजे की ड्यूटी नहीं, बल्कि यह समाज के प्रति एक समर्पित सेवा है। उनका यह बयान भारतीय न्याय प्रणाली की संवेदनशीलता, मानवीयता और सामाजिक उत्तरदायित्व के गहरे भाव को दर्शाता है।

Posts by : Rajesh Bhagtani | Updated on: Fri, 27 June 2025 2:46:51

न्याय करना नौकरी नहीं, राष्ट्र सेवा है: औरंगाबाद में बोले CJI भूषण गवई

सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश (CJI) भूषण गवई ने छत्रपति संभाजीनगर (पूर्ववर्ती औरंगाबाद) में आयोजित एक गरिमामय समारोह में न्यायिक सेवा के महत्व को लेकर बेहद भावपूर्ण और प्रेरक वक्तव्य दिया। उन्होंने कहा कि न्याय देना केवल अदालत की 10 से 5 बजे की ड्यूटी नहीं, बल्कि यह समाज के प्रति एक समर्पित सेवा है। उनका यह बयान भारतीय न्याय प्रणाली की संवेदनशीलता, मानवीयता और सामाजिक उत्तरदायित्व के गहरे भाव को दर्शाता है।

न्याय: केवल दायित्व नहीं, एक समर्पण

मुख्य न्यायाधीश गवई ने अपने संबोधन की शुरुआत इस स्पष्ट और दृढ़ विचार के साथ की कि न्याय एक नियमित कार्यालयी कार्य नहीं है, बल्कि यह एक सती की भांति समर्पण और तपस्या है। उन्होंने कहा कि जब तक न्यायाधीश समाज के साथ पूरी तरह जुड़ाव नहीं रखेगा, तब तक न्याय की निष्पक्षता और प्रासंगिकता अधूरी रहेगी। उनके अनुसार, न्याय को समाज की नब्ज को महसूस करते हुए ही वितरित किया जाना चाहिए।

न्यायाधीशों की सामाजिक भूमिका पर जोर


CJI गवई ने न्यायाधीशों से आग्रह किया कि वे केवल कानून की पुस्तकों तक सीमित न रहें, बल्कि समाज की असली पीड़ा और जरूरतों को समझने की कोशिश करें। उन्होंने कहा कि न्यायिक व्यवस्था तभी सशक्त मानी जाएगी जब उसके सदस्य जमीनी स्तर पर समाज के साथ कदम से कदम मिलाकर चलें। न्याय का उद्देश्य केवल विवाद निपटारा नहीं, बल्कि समाज में संतुलन और विश्वास पैदा करना होना चाहिए।

पारिवारिक मूल्यों और संत गाडगे बाबा की प्रेरणा

अपने जीवन की प्रेरणा पर बात करते हुए न्यायमूर्ति गवई ने अपने माता-पिता, विशेष रूप से पिता के विचारों को अपनी सफलता की नींव बताया। उन्होंने कहा कि संत गाडगे बाबा के विचारों से प्रेरित होकर उनके पिता ने उन्हें सिखाया था कि जीवन में सबके साथ अच्छा व्यवहार करना चाहिए, चाहे वह दुश्मन ही क्यों न हो। यह विचारधारा ही उन्हें एक बेहतर वकील और फिर न्यायाधीश बनने के लिए प्रेरित करती रही।

डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर के विचारों को मानते हैं पथप्रदर्शक

CJI भूषण गवई ने अपने भाषण में डॉ. अंबेडकर को न्याय और समता का प्रतीक बताया। उन्होंने कहा कि वे हमेशा डॉ. अंबेडकर के सामाजिक न्याय संबंधी सिद्धांतों के अनुसार ही अपने निर्णय लेते हैं। उनके लिए संविधान की आत्मा वही है, जो समाज के सबसे वंचित व्यक्ति तक न्याय पहुंचाए।

नागपुर और औरंगाबाद के साथ आत्मीय संबंध


गवई ने नागपुर और औरंगाबाद खंडपीठों को मुंबई से अधिक निकट बताया और कहा कि इन दोनों शहरों के साथ उनका भावनात्मक जुड़ाव है। उन्होंने 2008 की एक सड़क दुर्घटना और 2015 में अपने पिता के निधन के समय शहरवासियों से मिले स्नेह और सहयोग को भावुक स्वर में याद किया। उन्होंने कहा कि दिल्ली जाकर भी वह अपनत्व की भावना को भूला नहीं पाए।

समारोह में न्यायिक जगत की उपस्थिति

यह सम्मान समारोह औरंगाबाद खंडपीठ के वकील संघ द्वारा आयोजित किया गया था, जिसमें न्यायिक क्षेत्र से कई प्रमुख हस्तियां मौजूद थीं। समारोह की शुरुआत पौधारोपण से हुई, जो न्याय और पर्यावरण के बीच संतुलन का प्रतीक था। CJI गवई ने अधिवक्ता साहित्य सम्मेलन के लोगो का अनावरण भी किया और एक सम्मान पत्र ग्रहण किया।

समापन संदेश: न्याय एक सेवा भावना है

अपने समापन भाषण में मुख्य न्यायाधीश ने फिर से इस बात को दोहराया कि न्यायिक कार्य केवल पेशेवर उत्तरदायित्व नहीं, बल्कि एक गहरी सामाजिक और नैतिक सेवा है। उन्होंने कहा कि यदि न्यायपालिका इस भावना के साथ कार्य करे, तो समाज में न्याय की नींव और अधिक मजबूत होगी और लोगों का विश्वास सुदृढ़ होगा।

मुख्य न्यायाधीश भूषण गवई का यह संबोधन भारतीय न्याय व्यवस्था के मानवीय पक्ष को उभारता है। यह हमें याद दिलाता है कि न्यायालय केवल विधिक तर्क का मंच नहीं, बल्कि सामाजिक संवेदना और सेवा का माध्यम भी है। उनके विचार निश्चित ही न्यायिक बिरादरी को एक नई दिशा और चेतना देंगे।

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