
भारतीय न्यायपालिका के इतिहास में पहली बार सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए अपने प्रशासनिक पदों की भर्तियों में अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) वर्ग के लिए आरक्षण लागू किया है। यह फैसला सामाजिक न्याय की दिशा में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि मानी जा रही है, जिसकी मांग वर्षों से की जा रही थी।
24 जून को जारी हुआ ऐतिहासिक सर्कुलर
24 जून 2025 को सुप्रीम कोर्ट प्रशासन की ओर से एक आधिकारिक सर्कुलर जारी किया गया, जिसमें भर्तियों में आरक्षण नीति की औपचारिक जानकारी दी गई। सर्कुलर के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट द्वारा हर साल की जाने वाली लगभग 200 पदों की नियुक्ति प्रक्रिया में अब SC वर्ग के लिए 15% और ST वर्ग के लिए 7.5% आरक्षण लागू किया जाएगा।
इस हिसाब से, प्रति वर्ष होने वाली भर्तियों में लगभग 30 पद SC वर्ग और 15 पद ST वर्ग के लिए आरक्षित होंगे।
प्रमुख पदों पर आरक्षण का विस्तृत विवरण
सुप्रीम कोर्ट ने भर्ती पदों का विवरण देते हुए यह साफ किया है कि किन-किन पदों पर किस वर्ग के लिए कितनी सीटें आरक्षित की गई हैं:
1. सीनियर पर्सनल असिस्टेंट (Senior Personal Assistant) – कुल 94 पद
• SC: 14 पद
• ST: 6 पद
• अनारक्षित (UR): 74 पद
2. असिस्टेंट लाइब्रेरियन – कुल 20 पद
• SC: 3 पद
• ST: 1 पद
• अनारक्षित: 16 पद
3. जूनियर कोर्ट असिस्टेंट – कुल 437 पद
• SC: 65 पद
• ST: 32 पद
• अनारक्षित: 340 पद
4. जूनियर कोर्ट असिस्टेंट (स्पेशल श्रेणी) – 20 पद
• आरक्षण नीति लागू रहेगी (संख्या स्पष्ट नहीं)
5. जूनियर कोर्ट अटेंडेंट – 600 पद
• इन पदों पर भी SC-ST कोटा लागू किया जाएगा।
6. चेंबर अटेंडेंट पदों पर भी आरक्षण
• SC और ST वर्ग के लिए सीटें निर्धारित की गई हैं।
आरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट की स्पष्टता
सर्कुलर में स्पष्ट निर्देश दिए गए हैं कि यदि किसी भी पद की भर्ती में आरक्षण का पालन नहीं किया जाता है, तो संबंधित अभ्यर्थी सुप्रीम कोर्ट के रजिस्ट्रार के पास शिकायत दर्ज कर सकते हैं। यह व्यवस्था यह सुनिश्चित करने के लिए की गई है कि आरक्षण नीति को ईमानदारी से लागू किया जाए और SC-ST वर्ग के योग्य उम्मीदवारों को उनका हक मिले।
सामाजिक न्याय की दिशा में मील का पत्थर
यह फैसला उस लंबे संघर्ष और मांग का परिणाम है, जिसमें वर्षों से यह सवाल उठता रहा कि जब सरकार के अन्य संस्थानों में आरक्षण लागू है, तो न्यायपालिका के प्रशासनिक तंत्र में क्यों नहीं। अब सुप्रीम कोर्ट ने खुद इस दिशा में पहल करके यह उदाहरण प्रस्तुत किया है कि न्यायपालिका भी सामाजिक समावेशिता और बराबरी के मूल्यों को अपनाने को तैयार है।
सुप्रीम कोर्ट का यह कदम देश में सामाजिक न्याय की अवधारणा को मजबूत करने की दिशा में ऐतिहासिक पहल माना जा रहा है। इससे न केवल अनुसूचित जाति और जनजाति वर्ग के लिए रोजगार के नए अवसर खुलेंगे, बल्कि यह संदेश भी जाएगा कि सर्वोच्च न्यायालय भी संवैधानिक मूल्यों के अनुरूप समानता और प्रतिनिधित्व को महत्व देता है। यह फैसला आने वाले समय में उच्च न्यायालयों और अन्य न्यायिक संस्थानों के लिए भी एक मिसाल बन सकता है।














