
79वें स्वतंत्रता दिवस के मौके पर लाल किले पर आयोजित राष्ट्रीय कार्यक्रम में कांग्रेस सांसद और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी तथा पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे अनुपस्थित रहे। उनकी गैरहाजिरी ने राजनीतिक गलियारों में चर्चाओं को जन्म दिया। हालांकि विपक्ष की ओर से कोई आधिकारिक बयान नहीं आया, लेकिन सूत्रों के अनुसार राहुल गांधी पिछले साल की बैठने की व्यवस्था से नाराज थे, और इसी कारण इस वर्ष उन्होंने समारोह में भाग नहीं लिया।
सोशल मीडिया के जरिए श्रद्धांजलि और शुभकामनाएं
अनुपस्थिति के बावजूद दोनों नेताओं ने सोशल मीडिया के माध्यम से स्वतंत्रता सेनानियों को श्रद्धांजलि दी और देशवासियों को शुभकामनाएं भेजीं। राहुल गांधी ने अपने संदेश में न्याय, सत्य और समानता के आधार पर विकसित भारत के संकल्प को दोहराया, जबकि मल्लिकार्जुन खरगे ने स्वतंत्रता दिवस को लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति पुनः समर्पण का दिन बताया।
BJP का हमला और आरोप
भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता शहजाद पूनावाला ने राहुल गांधी की अनुपस्थिति पर निशाना साधते हुए X (पूर्व में ट्विटर) पर लिखा कि मोदी विरोध में विपक्ष नेता देश और सेना का भी अपमान कर रहे हैं। उन्होंने इसे शर्मनाक व्यवहार करार दिया और सवाल उठाया कि क्या यही संविधान और सेना का सम्मान है।
पिछले साल की बैठने की व्यवस्था विवाद
पिछले साल के समारोह में राहुल गांधी, जिन्हें कैबिनेट मंत्री का दर्जा प्राप्त है, को लाल किले में परंपरा और प्रोटोकॉल के विपरीत पिछली पंक्ति में बैठाया गया था। उस समय भारतीय ओलंपिक पदक विजेताओं को सम्मान देने के लिए बैठने की व्यवस्था में बदलाव किया गया था। राहुल गांधी को पांचवीं पंक्ति में ओलंपियनों के पीछे बैठाया गया, जबकि मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़, केंद्रीय मंत्री अमित शाह, निर्मला सीतारमण और एस. जयशंकर जैसी हस्तियां आगे की पंक्ति में थीं।
रक्षा मंत्रालय ने स्पष्ट किया था कि सीट आवंटन वरीयता और प्रोटोकॉल के अनुसार किया जाता है, और ओलंपिक विजेताओं को सम्मानित करने का निर्णय इसी आधार पर लिया गया था। हालांकि कांग्रेस ने इस तर्क को खारिज करते हुए सवाल उठाया कि अगर कुछ कैबिनेट मंत्री आगे बैठ सकते हैं तो विपक्ष के नेता को क्यों पीछे रखा गया।
राजनीतिक संदेश और रणनीति
इस साल राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खरगे की अनुपस्थिति को कांग्रेस समर्थक मौन विरोध के रूप में देख रहे हैं, वहीं भाजपा इसे राष्ट्र उत्सव से दूरी और प्रोटोकॉल के अपमान के रूप में प्रस्तुत कर राजनीतिक लाभ लेने की कोशिश कर रही है। यह घटना एक बार फिर यह साबित करती है कि राष्ट्रीय समारोहों में भी राजनीतिक मतभेद और प्रोटोकॉल से जुड़े विवाद हमेशा सुर्खियों में बने रह सकते हैं।














