
दिल्ली में टोल टैक्स को लेकर उठी आवाजें अब बड़े आंदोलन का रूप लेती दिख रही हैं। 13 सितंबर को पश्चिमी दिल्ली के मुण्डका क्षेत्र स्थित अर्बन एक्सटेंशन रोड-2 (UER-II) टोल प्लाज़ा के पास सैकड़ों ग्रामीण इकट्ठा हुए और एक विशाल महापंचायत का आयोजन किया। इस पंचायत से सरकार को साफ संदेश दिया गया कि यदि उनकी मांगों पर ध्यान नहीं दिया गया, तो ग्रामीण अनिश्चितकालीन धरने पर बैठने को मजबूर होंगे और यह विरोध अब और तीखा हो सकता है।
महापंचायत में नेताओं के स्वर
पालम 360 खाप के प्रधान चौधरी सुरेंद्र सोलंकी ने सभा को संबोधित करते हुए कहा कि यह विरोध केवल ग्रामीणों के हक और अधिकार की लड़ाई है। उन्होंने कहा,
“जब सरकार ने UER-II पर टोल लगाया, तब हमें कोई आपत्ति नहीं थी। समस्या तब शुरू हुई जब स्थानीय लोगों पर इसका अतिरिक्त बोझ डाल दिया गया। हमारी मांग है कि दिल्ली में भी वही नीति लागू हो जैसी हरियाणा, यूपी और राजस्थान में है।”
सोलंकी ने यह भी जोड़ा कि यह आंदोलन फिलहाल शांतिपूर्ण है और पंचायत के तरीके से आगे बढ़ाया जा रहा है। हालांकि, उन्होंने चेतावनी दी कि अगर ग्रामीणों की आवाज़ को अनसुना किया गया, तो यह आंदोलन उग्र रूप ले सकता है। साथ ही उन्होंने स्पष्ट किया कि यह आंदोलन किसी राजनीतिक दल के इशारे पर नहीं बल्कि पूरी तरह ग्रामीणों की समस्याओं से जुड़ा है।
VIDEO | Delhi: On `Mahapanchayat` held against UER-2 toll tax, Palam 360 Khap head Chaudhary Surendra Solanki says, "Today`s `Mahapanchayat` has been convened in protest against the toll. The UER-2 toll introduced by the government was fine in principle, but the burden of toll… pic.twitter.com/Juyvptkqea
— Press Trust of India (@PTI_News) September 13, 2025
ग्रामीणों की अहम मांगें
महापंचायत में उपस्थित खाप प्रतिनिधियों और ग्रामीणों ने सरकार के सामने तीन बड़ी मांगें रखीं:
20 किलोमीटर तक छूट – हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान की तरह दिल्ली में भी 20 किमी तक बिना टोल टैक्स यात्रा की अनुमति दी जाए।
स्थानीय निवासियों को टैक्स माफी – जिन किसानों और ग्रामीणों की ज़मीन टोल सड़क के लिए अधिग्रहित की गई, उन्हें स्थायी रूप से टोल टैक्स से छूट दी जाए।
नीति में बदलाव – वर्तमान UER-II टोल नीति में संशोधन कर पड़ोसी राज्यों जैसी व्यवस्था लागू की जाए।
रोजमर्रा की जिंदगी पर असर
ग्रामीणों का कहना है कि उन्हें रोज़ शहर आने-जाने की जरूरत पड़ती है। ऐसे में बार-बार टोल चुकाना उनके लिए आर्थिक बोझ बनता जा रहा है। किसानों और स्थानीय निवासियों का तर्क है कि यह टैक्स न केवल उनकी जेब पर असर डाल रहा है, बल्कि उनकी जीवनशैली और दैनिक जरूरतों पर भी नकारात्मक प्रभाव डाल रहा है।














