
बिहार की सियासत में एसआईआर को लेकर उठी लपटें थमने का नाम नहीं ले रहीं। नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने गुरुवार को मीडिया से बात करते हुए एक बार फिर विधानसभा चुनाव के बहिष्कार की संभावना जताई। उनका कहना था, "जब जनता का मत ही छीना जा रहा है और चुनाव एक दिखावा बन गया है, तो फिर वोट देने का औचित्य ही क्या रह जाता है?"
तेजस्वी ने सवाल उठाते हुए कहा, "अगर लोकतंत्र में जनता की भागीदारी नहीं रहेगी तो क्यों न सरकार को सीधे-सीधे एक्सटेंशन दे दिया जाए?" विधानसभा परिसर में पत्रकारों से बातचीत के दौरान उन्होंने यह भी दावा किया कि चुनाव आयोग असली चालें 1 अगस्त से चलेगा और उनकी टीम इस पर पैनी नजर बनाए हुए है।
एसआईआर पर उठाए गंभीर सवाल
तेजस्वी यादव ने दोहराया कि एसआईआर (स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन) के तहत मतदाता सूची में बड़े पैमाने पर गड़बड़ी की जा रही है। उनका आरोप था कि “सरकार और आयोग मिलकर फर्जीवाड़ा कर रहे हैं। वोटर लिस्ट से असली मतदाताओं के नाम हटाने की साजिश रची जा रही है।"
तेजस्वी ने कहा कि इस तरह की राजनीति चंडीगढ़ मॉडल की याद दिलाती है, जहां सत्ता पक्ष अपनी सुविधा के अनुसार नतीजे गढ़ता है। उन्होंने यह भी जोड़ा, "हम अपने सहयोगी दलों से विचार-विमर्श करेंगे। चुनाव में भाग लेना या उसका बहिष्कार करना — सभी विकल्प हमारे सामने खुले हैं।"
विधानसभा में भी उठाई आवाज
तेजस्वी ने विधानसभा की कार्यवाही के दौरान भी एसआईआर के मुद्दे को जोर-शोर से उठाया। उन्होंने स्पीकर से निवेदन किया कि उन्हें बुधवार को अपनी बात पूरी करने का मौका नहीं मिला था।
उन्होंने कहा, "चुनाव आयोग जिस तरह से नागरिकता तय करने की कोशिश कर रहा है, वह उसके अधिकार क्षेत्र से बाहर है।" आधार कार्ड को वोट डालने के लिए सही माना जाता है, लेकिन उसी आधार पर वोटर वेरिफिकेशन कैसे अवैध हो सकता है — यह एक बड़ा सवाल है।
पप्पू यादव की अलग राय
हालांकि इस पूरे मामले में कांग्रेस सांसद पप्पू यादव की राय थोड़ी अलग नजर आई। उन्होंने कहा, “वोट का बहिष्कार समाधान नहीं हो सकता। अगर वास्तव में विरोध करना है तो बेहतर होगा कि हम विधानसभा और लोकसभा से इस्तीफा दें और सरकार को अकेले शासन चलाने दें।”














