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चौंकाने वाली रिपोर्ट! बिहार में मां के दूध में मिला यूरेनियम, शिशुओं की सेहत पर बढ़ा खतरा

बिहार में हुई एक ताज़ा स्टडी में मां के दूध में यूरेनियम मिलने का खुलासा हुआ है, जिससे शिशुओं की सेहत पर गंभीर खतरे की आशंका बढ़ गई है। कई जिलों में लिए गए सैंपल में U-238 पाया गया, जो बच्चों के न्यूरोलॉजिकल और कॉग्निटिव विकास के लिए चिंताजनक है। विशेषज्ञों ने जोखिम के बावजूद ब्रेस्टफीडिंग जारी रखने की सलाह दी है और भविष्य में अन्य राज्यों में भी ऐसे शोध की योजना बनाई है।

Posts by : Kratika Maheshwari | Updated on: Sun, 23 Nov 2025 2:58:05

चौंकाने वाली रिपोर्ट! बिहार में मां के दूध में मिला यूरेनियम, शिशुओं की सेहत पर बढ़ा खतरा

बिहार में की गई एक ताज़ा वैज्ञानिक जांच ने सभी को हैरान कर दिया है। रिसर्च में पता चला है कि कई जिलों में मां के दूध में रेडियोएक्टिव तत्व यूरेनियम (U-238) मौजूद है, जो बच्चों की सेहत के लिए गंभीर खतरा पैदा कर सकता है। इस खुलासे ने विशेष रूप से छोटे बच्चों के भविष्य को लेकर विशेषज्ञों के बीच नई चिंताएं खड़ी कर दी हैं।

AIIMS दिल्ली के डॉ. अशोक शर्मा, जो इस अध्ययन के सह-लेखक हैं, बताते हैं कि रिसर्च के दौरान 40 स्तनपान कराने वाली महिलाओं के सैंपल लिए गए और हर एक नमूने में यूरेनियम की मौजूदगी पाई गई। हालांकि अधिकांश सैंपल में यूरेनियम की मात्रा निर्धारित सीमा से कम थी, लेकिन 70% बच्चों में नॉन-कार्सिनोजेनिक (गैर- कैंसरकारी) हेल्थ रिस्क देखने को मिले।

किन जिलों में सबसे ज्यादा प्रदूषण?

अध्ययन में पाया गया कि खगड़िया जिले में औसत यूरेनियम स्तर सबसे अधिक था, जबकि कटिहार में व्यक्तिगत स्तर पर सर्वाधिक मात्रा दर्ज की गई। विशेषज्ञों का कहना है कि यूरेनियम के ज्यादा संपर्क से बच्चों में न्यूरोलॉजिकल ग्रोथ रुक सकती है, IQ कम हो सकता है और संज्ञानात्मक विकास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।

फिर भी, रिसर्च टीम का मानना है कि ब्रेस्टफीडिंग रोकने की जरूरत नहीं है। डॉ. शर्मा स्पष्ट करते हैं कि महिलाओं के शरीर में प्रवेश करने वाला यूरेनियम अधिकतर यूरिन के माध्यम से बाहर निकल जाता है और दूध में बहुत ज्यादा इकठ्ठा नहीं होता। इसलिए जब तक कोई चिकित्सकीय कारण न हो, स्तनपान बच्चे के लिए सर्वश्रेष्ठ पोषण स्रोत ही माना जाएगा।

बच्चों पर प्रभाव: अध्ययन के मुख्य निष्कर्ष

रिसर्च के अनुसार:


करीब 70% शिशुओं में HQ (Hazard Quotient) > 1 पाया गया, जो स्वास्थ्य जोखिम का संकेत है।

छोटे बच्चे अपने शरीर से यूरेनियम जैसी भारी धातुओं को निकालने में कमजोर होते हैं, जिससे उनकी किडनी, मस्तिष्क और मानसिक विकास पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है।

0 से 5.25 ug/L तक के यूरेनियम स्तर के बावजूद, अध्ययन अब भी यह मानता है कि “वास्तविक स्वास्थ्य प्रभाव सीमित हो सकता है”।

डॉ. अशोक ने बताया कि टीम अन्य राज्यों में भी इसी तरह की जांच करेगी, ताकि यह पता चल सके कि भारत के और किन हिस्सों में पानी, दूध या वातावरण में भारी धातुएं मौजूद हैं।

कैसे किया गया अध्ययन?

यह रिसर्च बिहार के विभिन्न जिलों में रैंडमली चुनी गई 40 स्तनपान कराने वाली महिलाओं पर आधारित थी। हर सैंपल में यूरेनियम पाया गया और सबसे अधिक स्तर कटिहार जिले में मिला। रिसर्चर्स का कहना है कि यह रिपोर्ट बच्चों के एक्सपोज़र जोखिमों को समझने और समय रहते समाधान तलाशने में महत्वपूर्ण साबित होगी।

यूरेनियम: क्यों खतरनाक है?

यूरेनियम एक प्राकृतिक रेडियोएक्टिव धातु है, जो:

ग्रेनाइट जैसी चट्टानों

खनन

कोयले के दहन

न्यूक्लियर उद्योग

फॉस्फेट आधारित खाद

के कारण भूजल में घुल सकता है।

WHO ने पीने के पानी में यूरेनियम की अस्थाई सीमा 30 ug/L तय की है, जबकि जर्मनी इसे और सख्ती से 10 ug/L तक सीमित करता है।

भारत में स्थिति चिंताजनक है—18 राज्यों के 151 जिलों में भूजल में यूरेनियम संदूषण के मामले सामने आ चुके हैं, जिनमें बिहार के लगभग 1.7% वॉटर सोर्स प्रभावित हैं।

वैश्विक परिदृश्य क्या कहता है?

कनाडा, अमेरिका, फिनलैंड, चीन, बांग्लादेश और मंगोलिया सहित कई देशों में भी यूरेनियम की मात्रा अधिक पाई गई है।
हालांकि कई जगहों पर भूजल में भारी प्रदूषण मिला है, लेकिन एक्सपोज़्ड आबादी में स्पष्ट क्लिनिकल लक्षण अक्सर नहीं दिखते, जो इस विषय को और जटिल बनाता है।

आगे क्या?


डॉ. शर्मा का कहना है कि उनकी टीम आने वाले समय में पेस्टिसाइड्स और अन्य पर्यावरणीय प्रदूषकों पर भी विस्तृत शोध करेगी। उनका लक्ष्य है कि ब्रेस्ट मिल्क में मौजूद सभी संभावित टॉक्सिक कंटैमिनेंट्स की निरंतर निगरानी की जा सके, ताकि बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित हो सके।

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