
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 को लेकर एनडीए में सीटों के बंटवारे का मामला सुर्खियों में है। बीजेपी और जेडीयू के गठबंधन में शामिल हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (HAM) को इस बार केवल छह सीटें दी गई हैं। इस फैसले के बाद HAM के अध्यक्ष जीतन राम मांझी ने एक चौंकाने वाला बयान दिया है। उन्होंने कहा कि गठबंधन ने उनकी पार्टी की ताकत को कम आंका है और इसके लिए एनडीए को भविष्य में खामियाजा भुगतना पड़ सकता है।
“हमारी ताकत को कम आंका गया”
मांझी ने कहा, “हमने हमेशा एनडीए के साथ सहयोग किया है। आलाकमान ने जो फैसला किया है, उसे हम सिर माथे पर स्वीकार करते हैं, लेकिन केवल छह सीटें देकर उन्होंने हमारे महत्व को कम आंका है। यह एनडीए के लिए भविष्य में चुनौती बन सकती है।”
उनका यह बयान गठबंधन में HAM की राजनीतिक भूमिका और सीट शेयरिंग पर नाराजगी की ओर इशारा करता है।
“आलाकमान का फैसला स्वीकार है, लेकिन खतरा नजरअंदाज नहीं”
इसके साथ ही उन्होंने स्पष्ट किया कि उनका इरादा पूरी तरह से विरोध करने का नहीं है। उन्होंने कहा, “संसद में हमें केवल एक सीट दी गई थी, क्या हम नाराज थे? उसी तरह, छह सीटें मिलना भी आलाकमान का निर्णय है। हम इसे स्वीकार करते हैं और हमारी कोई शिकायत नहीं है। लेकिन यह बताना जरूरी है कि हमारी ताकत को कम आंकना गठबंधन के लिए सही नहीं होगा।”
VIDEO | Union Minister and HAM President Jitan Ram Manjhi (@jitanrmanjhi) expresses his discontent as his party gets 6 seats under seat-sharing arrangement in NDA.
— Press Trust of India (@PTI_News) October 12, 2025
He says, "What the high command decided, we accept, but by giving six seats, they have undervalued us, it may have… pic.twitter.com/Bj0MIZgv1d
HAM की चुनावी रणनीति
बता दें कि रविवार, 12 अक्टूबर को एनडीए में सीट बंटवारे का औपचारिक ऐलान किया गया। जीतन राम मांझी की पार्टी टेकारी, कुटुंबा, अतरी, इमामगंज, सिकंदरा और बराचट्टी सीटों पर चुनाव लड़ेगी। ये सीटें HAM के लिए चुनौतीपूर्ण होने के साथ-साथ गठबंधन में उनकी राजनीतिक स्थिति को परखने का अवसर भी होंगी।
राजनीतिक विश्लेषण
विश्लेषकों का मानना है कि मांझी का यह बयान केवल नाराजगी का संकेत नहीं है, बल्कि यह भविष्य में एनडीए के भीतर संतुलन और सहयोग के मुद्दे पर चुनौती पेश कर सकता है। सीटों के बंटवारे में HAM की सीमित हिस्सेदारी यह संकेत देती है कि गठबंधन के बड़े दल — भाजपा और जेडीयू — अपने रणनीतिक लाभ के लिए छोटे सहयोगियों को सीमित सीटें दे रहे हैं।














