
बिहार विधानसभा चुनाव में मिली करारी हार से आरजेडी अभी भी उबर नहीं पा रही है। पार्टी के अधिकांश नेता अभी भी परिणामों के झटके से परेशान हैं। भले ही तेजस्वी यादव को एक बार फिर आरजेडी विधायक दल का नेता चुन लिया गया है, लेकिन पार्टी के भीतर परिस्थितियां सहज नहीं हैं। स्थिति यह रही कि सोमवार को विधायक दल की बैठक में तेजस्वी भावुक हो उठे। बातचीत के दौरान उन्होंने यह कहकर सबको चौंका दिया कि यदि विधायक चाहें तो वे नेतृत्व छोड़ने के लिए राज़ी हैं। उनका कहना था कि यदि संगठन किसी और के नेतृत्व में बेहतर खड़ा हो सकता है, तो वे अपने पद से हटने में बिल्कुल संकोच नहीं करेंगे।
‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, मौजूद विधायकों में से एक ने बताया कि टिकट वितरण और चुनावी हार को लेकर तेजस्वी पर लगातार जिस तरह के आरोप लग रहे थे, उससे वे आहत थे। बैठक में उन्होंने एक तरह से मन की पीड़ा साझा करते हुए कहा कि आखिर वे करें तो क्या करें—परिवार की जिम्मेदारियां निभाएं या पार्टी को संभालें? बहन रोहिणी आचार्य की ओर से लगाए गए आरोपों ने भी उनके ऊपर अतिरिक्त दबाव पैदा कर दिया है। भले ही तेजस्वी ने इस पर सीधे तौर पर कोई बयान नहीं दिया है, पर पार्टी में यह चर्चा ज़ोरों पर है कि उनके सलाहकार संजय यादव और रमीज नेमत खान की वजह से वे कार्यकर्ताओं से दूर होते जा रहे हैं।
भावुक माहौल, हस्तक्षेप करने को मजबूर हुए लालू यादव
जब तेजस्वी ने नेतृत्व छोड़ने जैसा सुझाव दिया, तो मीटिंग का माहौल अचानक भावुक हो गया। कई विधायक तुरंत खड़े होकर कहने लगे कि उन्हें ही नेता रहना चाहिए और वे किसी भी कीमत पर उन्हें बदलने के पक्ष में नहीं हैं। इसी दौरान लालू प्रसाद यादव को खुद दखल देना पड़ा। उन्होंने विधायकों से कहा कि वे तेजस्वी को मनाएं और उन्हें दोबारा नेता चुनें। अंततः सभी विधायकों ने एकमत होकर तेजस्वी यादव को अपना नेता घोषित कर दिया। बैठक में राबड़ी देवी, मीसा भारती और तेजस्वी के करीबी संजय यादव भी मौजूद थे। बताया जा रहा है कि मीसा भारती भी पूरी तरह संतुष्ट नहीं हैं, लेकिन उन्होंने अभी तक सार्वजनिक रूप से कुछ नहीं कहा है।
गौरतलब है कि इस बार आरजेडी सिर्फ 25 सीटें ही जीत पाई है, जबकि उसने 143 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे। तीसरे स्थान पर पहुंच जाना पार्टी के लिए गंभीर झटका माना जा रहा है। इससे पहले 2010 में भी पार्टी का प्रदर्शन बेहद खराब रहा था, जब उसे सिर्फ 22 सीटें मिली थीं और विपक्ष का नेता चुनना भी संभव नहीं हो पाया था। हालांकि इस बार तेजस्वी विपक्ष के नेता बनने में सफल रहे हैं।
बैठक में EVM पर भी उठे सवाल, नेताओं ने कहा—इन मशीनों से नहीं हो सकता निष्पक्ष चुनाव
विधायक दल की बैठक में केवल नेतृत्व का मुद्दा ही नहीं उठा, बल्कि ईवीएम को लेकर भी सवाल पूछे गए। तेजस्वी के नेता चुने जाने से ठीक पहले, वरिष्ठ नेता जगदानंद सिंह ने दावा किया कि इस बार की हार ईवीएम से छेड़छाड़ का नतीजा है। उनका कहना था कि मशीनों का गलत तरीके से प्रयोग किया गया है और पार्टी को इस पर गंभीरता से लड़ाई लड़ने की जरूरत है। उनके तर्क का समर्थन करते हुए विधायक भाई वीरेंद्र ने भी कहा कि अगर चुनाव पारदर्शी बनाने हैं, तो ईवीएम के बजाय बैलेट पेपर से ही वोटिंग कराई जानी चाहिए।
उन्होंने जोर देकर कहा कि पार्टी को चुनाव आयोग से मांग करनी चाहिए कि भविष्य में सभी चुनाव सिर्फ बैलेट पेपर से हों, क्योंकि मशीनों पर भरोसा अब कम होता जा रहा है।














