37th National Games: माँ बनने के बाद राष्ट्रीय खेलों में सनातोम्बी चानू ने वुशु में जीता स्वर्ण पदक
By: Rajesh Bhagtani Sun, 05 Nov 2023 1:54:03
पणजी। मणिपुर की लीमापोकपम सनातोम्बी चानू के लिए स्वर्ण पदक जीतना आम बात है। अनुभवी वुशु खिलाड़ी ने गोवा में जारी 37वें राष्ट्रीय खेलों में चौथा स्वर्ण पदक जीता, जोकि इन खेलों में उनका पांचवां पदक है। उन्होंने ताओलू डिवीजन की ताई ची स्पर्धा में शीर्ष स्थान हासिल किया।
लेकिन कंपाल ओपन ग्राउंड में उनके स्वर्ण पदक जीत की खास बात यह रही कि मां बनने के बाद से राष्ट्रीय खेलों में उनका यह पहला स्वर्ण पदक है। सनातोम्बी चानू की अभी डेढ़ साल की बेटी भी है। उन्होंने कहा कि यह पदक उनके लिए इसलिए खास है क्योंकि वह अपनी डेढ़ साल की बेटी को अपने पिता के पास मणिपुर में घर पर छोडकऱ राष्ट्रीय खेलों में भाग लेने पहुंची थी। सनातोम्बी ने छह महीने के भीतर ही मैट पर वापसी की और उन्होंने पटियाला में राष्ट्रीय शिविर में वापसी करते हुए पिछले साल नवंबर में सीनियर नेशनल में स्वर्ण पदक जीता।
एशियन गेम्स में नहीं जाने से थी निराश
मां बनने के बाद लीमापोकपम सनातोम्बी के लिए ट्रेनिंग शुरू करना बेहद मुश्किल भरा रहा, क्योंकि बॉडी का मूवमेंट आसान नहीं था। उन्हें धीरे-धीरे ट्रेनिंग शुरू करने से पहले हल्की जॉगिंग करनी पड़ी। वह अपने खोए हुए आत्मविश्वास को हर-हाल में पाना चाहती थी, क्योंकि तीन महीने बाद ही उन्हें सीनियर राष्ट्रीय चैंपियनशिप (नवंबर 2022) में हिस्सा लेना था। उनकी मेहनत रंग भी लगाई।
उन्होंने मां बनने के छह महीने के भीतर ही मैट पर वापसी की और पटियाला में राष्ट्रीय शिविर में पिछले साल नवंबर में सीनियर नेशनल में स्वर्ण पदक जीता। यह उपलब्धि हासिल करने के बावजूद उन्हें हांगझाऊ एशियन गेम्स 2023 में नहीं भेजा गया, क्योंकि उन्होंने 2019 के बाद से किसी भी अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता में भाग नहीं लिया था।
पुरस्कार से मिले पैसों से चुकाया कर्ज
इम्फाल में एक किसान के घर जन्मी सनातोम्बी पांच बहनों में तीसरे नंबर पर हैं। 2004 में खेल में आने के बाद से उन्होंने कई वित्तीय बाधाओं को पार किया। कई बार ऐसे मौके भी आए जब पैसों की कमी के कारण वह टूर्नामेंट में भाग नहीं ले सकी। लेकिन उन्हें हमेशा यह विश्वास रहा कि एक दिन चीजें बेहतर होंगी। उनके लिए वह पल 2007 में आया, जब उन्हें 1.70 लाख रुपए का नकद पुरस्कार मिला। इससे उन्हें कर्ज चुकाने में मदद मिली और 2011 में जीते गए स्वर्ण पदक का मतलब था कि अब वह अपने परिवार का भरण-पोषण कर सकती हैं।
उम्र कोई बाधा नहीं
खास बात यह रही कि सनातोम्बी के जुनून के
आगे उम्र भी बाधा नहीं बन सकी। 34 साल की उम्र होने के बावजूद सनातोम्बी
ने खेलों में सफल वापसी की और स्वर्ण पदक जीता।
साल 2007 में स्वर्ण
पदक के साथ डेब्यू करने के बाद से सनातोम्बी ने राष्ट्रीय सीनियर
प्रतियोगिताओं में शानदार प्रदर्शन किया और वह 2009 तक स्वर्ण पदक की
हैट्रिक लगाने में सफल रहीं। लेकिन 2011 में उनके प्रदर्शन में गिरावट
देखने को मिली और उन्हें रजत पदक से संतोष करना पड़ा। लेकिन उसके बाद से 34
वर्षीय खिलाड़ी की स्वर्णिम दौड़ जारी है और वह 2022 तक राष्ट्रीय
चैंपियनशिप के सभी संस्करणों में शीर्ष स्थान पर रही हैं। अंतर्राष्ट्रीय
टूर्नामेंटों में, सनातोम्बी ने दक्षिण एशियाई खेलों में दो स्वर्ण और 2016
विश्व कप में कांस्य के अलावा ब्रिक्स चैंपियनशिप में 2017 में कांस्य पदक
जीते हैं।
पति जेम्स भी हैं एथलीट
सनातोम्बी के पति
जेम्स बॉय सिंह भी एथलीट हैं और अभी सर्विसेज केनोइंग और कयाकिंग टीमों को
कोचिंग देते हैं। सनातोम्बी ने कहा कि उन्हें वापसी करने में अपने पति का
पूरा सहयोग मिला। एक ही राज्य से होने के बावजूद उन्हें अपने जीवनसाथी से
मिलने का मौका नहीं मिला।
भावुक सनातोम्बी ने कहा, 'एक ही राज्य में
रहने के बावजूद हमारी मुलाकात नहीं हो पाती और फोन पर ही बातचीत होती है।
मैं अपने खेल से जुड़ी हूं और वह एक कोच हैं, इसलिए हम एक-दूसरे से मिलने
के लिए समय नहीं निकाल सके। इसके अलावा, हमारी बेटी अपनी चाची के पास है।
उम्मीद है कि एक दिन वह हमारे बलिदान को समझेगी।
मणिपुर पुलिस में कार्यरत
सनातोम्बी
अभी मणिपुर पुलिस में एएसआइ के पद पर कार्यरत हैं। उन्होंने कहा कि वे
अगले कुछ साल और खेलना चाहती हैं। इसके बाद उनकी नजरें कोचिंग देने पर हैं।