कोयंबटूर महिला अदालत ने मंगलवार को पोलाची यौन शोषण मामले में नौ आरोपियों को उम्रकैद की सजा सुनाई। इस मामले में कुल आठ पीड़ित महिलाएं थीं, और दोषियों में एक AIADMK पदाधिकारी भी शामिल था। यह मामला उस वक्त सामने आया था जब राज्य में AIADMK की सरकार थी।
फैसले के बाद एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर एमके स्टालिन ने इसे "न्याय की जीत" करार दिया। उन्होंने लिखा, "अपराधियों, जिसमें एक दुष्ट AIADMK पदाधिकारी भी शामिल है, के अपराधों के लिए न्याय मिल गया है। वे ‘सर’ जो इस तंबू को बचाने की कोशिश कर रहे थे, उन्हें शर्म से सिर झुका लेना चाहिए।”
इस पर विपक्ष के नेता एडप्पडी पलानीस्वामी ने पलटवार किया और कहा कि CBI जांच का आदेश उन्होंने दिया था और किसी भी आरोपी को बचाने की कोशिश नहीं की गई थी।
EPS ने लिखा, “किसने उस दुष्ट गिरोह को गिरफ्तार किया था? मैं ही था जिसने निष्पक्ष रूप से CBI जांच का आदेश दिया। आज डीएमके सरकार के दौरान महिलाओं की सुरक्षा कहां है?”
उन्होंने अन्ना विश्वविद्यालय यौन उत्पीड़न मामले का भी जिक्र किया और आरोप लगाया कि स्टालिन सरकार ने एक आरोपी के घर पर मंत्री और डिप्टी मेयर के बिरयानी खाने के मुद्दे को नजरअंदाज कर दिया।
कनिमोझी का पलटवार
डीएमके की राज्यसभा सांसद कनिमोझी ने EPS पर तीखा हमला बोलते हुए कहा कि पोलाची कांड सामने आने पर AIADMK सरकार ने शुरुआत में न तो एफआईआर दर्ज की, न ही पीड़ितों को न्याय दिलाने की कोशिश की।
उन्होंने कहा, "उस वक्त सत्ता में बैठे लोग केवल आरोपियों को बचाने की कोशिश में लगे थे। मामला तब ही आगे बढ़ा जब विपक्ष और मीडिया ने मिलकर आवाज उठाई और CBI जांच की मांग की।"
कनिमोझी ने यह भी जोड़ा कि आज जनता को मुख्यमंत्री एमके स्टालिन पर भरोसा है, क्योंकि वह अपराध के बाद पार्टी की परवाह किए बिना कार्रवाई करते हैं।
Pollachi मामले में सजा के साथ जहां डीएमके इसे न्याय की जीत बता रही है, वहीं AIADMK इसे अपने ‘निष्पक्ष रवैये’ का नतीजा बता रही है। यह मामला एक बार फिर साबित करता है कि तमिलनाडु की राजनीति में यौन उत्पीड़न जैसे गंभीर मामलों पर भी तीखा राजनीतिक संघर्ष जारी है। जनता के लिए सवाल अब भी यही है—क्या महिलाओं की सुरक्षा और न्याय सिर्फ सियासी हथियार बनकर रह जाएगा?