अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के प्रशासन ने एक ऐसा कदम उठाया है जिसने हार्वर्ड विश्वविद्यालय सहित कई प्रतिष्ठित शैक्षणिक संस्थानों में पढ़ने वाले अंतरराष्ट्रीय छात्रों की हालत को मुश्किल बना दिया है। इस नए नियम के तहत, यदि कोई विश्वविद्यालय अमेरिकी गृह सुरक्षा विभाग को यह जानकारी नहीं देता कि उसके विदेशी छात्र ऑनलाइन या ऑफलाइन पढ़ाई कर रहे हैं, तो उस संस्थान की विदेशी छात्रों को दाखिला देने की अनुमति दो साल तक के लिए रद्द की जा सकती है। इससे छात्रों के वीज़ा पर गंभीर संकट उत्पन्न हो गया है।
हार्वर्ड विश्वविद्यालय ने इस फैसले को सीधे तौर पर संविधान के पहले संशोधन का उल्लंघन बताया है और इसके खिलाफ अदालत में मुकदमा दर्ज कराया है। विश्वविद्यालय का कहना है कि इस फैसले से लगभग 7,000 विदेशी छात्रों का शैक्षणिक भविष्य खतरे में पड़ सकता है। साथ ही, मौजूदा विदेशी छात्र अपने वीज़ा को बनाए रखने के लिए अन्य कॉलेजों में ट्रांसफर के लिए मजबूर हो सकते हैं, जो उनके लिए कई तरह की परेशानियां खड़ी कर सकता है।
इस विवाद की चपेट में अब कनाडा के प्रधानमंत्री मार्क कार्नी की बेटी क्लियो कार्नी और बेल्जियम की राजकुमारी एलिजाबेथ जैसे हाई-प्रोफाइल छात्राएं भी आ गई हैं। क्लियो कार्नी हार्वर्ड के संसाधन दक्षता कार्यक्रम में पढ़ रही हैं, जबकि राजकुमारी एलिजाबेथ हार्वर्ड के केनेडी स्कूल से सार्वजनिक नीति में मास्टर डिग्री कर रही हैं। दोनों ने पहला वर्ष पूरा कर लिया है, लेकिन इस नए नियम की वजह से वे दूसरे वर्ष के लिए अमेरिका लौट पाने को लेकर अनिश्चितता में हैं। बेल्जियम के रॉयल पैलेस ने अभी तक स्पष्टता का इंतजार कर रहा है कि इस फैसले का राजकुमारी पर क्या असर पड़ेगा।
हार्वर्ड विश्वविद्यालय ने इस मामले में सरकार की कार्रवाई को “अवैध” करार देते हुए इसे छात्रों के हितों के खिलाफ बताया है। उन्होंने कहा कि सरकार ने अचानक से विश्वविद्यालय के लगभग एक चौथाई छात्रों — जो विदेशी हैं — के शैक्षणिक अधिकारों को खतरे में डाल दिया है। विश्वविद्यालय ने छात्रों को इस स्थिति से निपटने में मदद के लिए हरसंभव प्रयास करने का वादा किया है।
हालांकि, फिलहाल एक अमेरिकी न्यायाधीश ने इस नए नियम पर अस्थायी रोक लगा दी है, जिससे छात्रों को थोड़ी राहत मिली है। लेकिन इस विवाद ने न केवल शैक्षणिक दुनिया में बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी हलचल मचा दी है, क्योंकि इससे जुड़े छात्र और उनके परिवार इस फैसले के प्रभाव को लेकर चिंतित हैं।
इस फैसले के पीछे ट्रंप प्रशासन का मकसद अमेरिकी शिक्षा संस्थानों में विदेशी छात्रों की संख्या और उनकी गतिविधियों पर नियंत्रण रखना बताया जा रहा है, लेकिन आलोचकों का कहना है कि यह कदम कई छात्र और विश्वविद्यालयों के लिए अनुचित और हानिकारक साबित होगा। इस विवाद के समाधान के लिए अदालत और प्रशासन के बीच आगे भी कानूनी लड़ाई जारी रहने की संभावना है।