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झारखंड में भाजपा का 'सत्ता वापसी' मास्टरप्लान, JMM को पछाड़ने के लिए बनाई ये खास रणनीति

झारखंड विधानसभा चुनाव से पहले राजनीतिक उठापटक बढ़ने के साथ ही भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) राज्य में अपनी पकड़ फिर से मजबूत करने के लिए रणनीति तैयार कर रही है।

Posts by : Priyanka Maheshwari | Updated on: Mon, 23 Sept 2024 6:24:24

झारखंड में भाजपा का 'सत्ता वापसी' मास्टरप्लान, JMM को पछाड़ने के लिए बनाई ये खास रणनीति

झारखंड विधानसभा चुनाव से पहले राजनीतिक उठापटक बढ़ने के साथ ही भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) राज्य में अपनी पकड़ फिर से मजबूत करने के लिए रणनीति तैयार कर रही है।

जमीनी स्तर पर लोगों को एकजुट करने, जनमत सर्वे, क्षेत्रीय दिग्गजों के साथ गठबंधन और आदिवासी मुद्दों पर खास ध्यान देने के साथ तैयार किए गए मास्टरप्लान के साथ भाजपा धीरे-धीरे बढ़त हासिल कर रही है। झारखंड में भाजपा सत्ता वापसी के लिए अपने इस मास्टर प्लान पर काम कर रही है।

इधर सत्तारूढ़ झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) भाजपा की बढ़त देख घबराई हुई लग रही है। राज्य में जेएमएम के खिलाफ आंतरिक असंतोष बढ़ रहा है और ये नाराजगी जनता में भी दिख रहा है। आइए जानें भाजपा सत्ता में वापसी के लिए खुद को कैसे तैयार कर रही है और JMM क्यों कमजोर होते जा रही है।

भाजपा की जमीनी स्तर की रणनीति

भाजपा की रणनीति का मूल आधार 'रायशुमारी' यानी लोगों की सलाह लेना, सर्वे कराने पर आधारित है। इसी प्लान के जरिए भाजपा पार्टी कार्यकर्ताओं को जोड़ रही है। यह पार्टी के लिए कोई नई अवधारणा नहीं है, लेकिन इस बार इसका दायरा काफी बढ़ा दिया गया है।

पंचायत स्तर तक के हजारों पार्टी कार्यकर्ताओं से परामर्श करके, भाजपा यह सुनिश्चित कर रही है कि उसका फैसला लेना समावेशी और लोकतांत्रिक हो। पिछले चुनावों के अलग जहां केवल ब्लॉक-स्तर के पदाधिकारियों से राय मांगी जाती थी, इस बार प्रति निर्वाचन क्षेत्र लगभग 500-700 कार्यकर्ताओं से फीडबैक लिया जाएगा।

भाजपा की ये पहल आंतरिक एकता को मजबूत करने और अपने कार्यकर्ताओं के बीच विश्वास बनाने में एक मास्टरस्ट्रोक है। खासकर ऐसे राज्य में जहां जमीनी स्तर पर भागीदारी महत्वपूर्ण है। ये सर्वे पार्टी को ऐसे उम्मीदवारों को मैदान में उतारने में मदद करेगी जिन्हें संगठनात्मक और जमीनी स्तर दोनों का समर्थन प्राप्त है।

गठबंधनों का लाभ उठाना: एनडीए को मजबूत करना

झारखंड में भाजपा की रणनीति का एक महत्वपूर्ण तत्व राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के भीतर गठबंधनों को मजबूत करने का प्रयास है। 2019 के विधानसभा चुनावों में जहां भाजपा ने अकेले चुनाव लड़ा था, इस बार पार्टी ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन (AJSU) और संभवत जनता दल यूनाइटेड (JDU), लोजपा जैसे प्रमुख क्षेत्रीय खिलाड़ियों के साथ गठबंधन कर रही है।

खासकर AJSU के साथ गठबंधन भाजपा के लिए बहुत जरूरी है क्योंकि इनका पारंपरिक रूप से कुछ आदिवासी क्षेत्रों में अपना प्रभाव है। AJSU प्रमुख सुदेश महतो को अपने पाले में लाकर, भाजपा पिछले चुनाव में खोए आदिवासी वोटों को वापस पाने का प्रयास कर रही है। इसके अलावा सीट-बंटवारे के लिए जेडीयू के साथ बातचीत पूरी होने वाली है।

जनजातीय मुद्दों पर फोकस करना

भाजपा की मास्टरप्लान का सबसे अहम तत्व जनजातीय मुद्दों पर उसका ध्यान केंद्रित करना है। झारखंड की जनजातीय आबादी, जिसने पिछले चुनाव में बड़े पैमाने पर झामुमो का समर्थन किया था, अब भाजपा द्वारा आक्रामक तरीके से उसे अपने पक्ष में करना चाहती है। चम्पाई सोरेन और गीता कोड़ा जैसे प्रमुख जनजातीय नेताओं को पार्टी में शामिल करना इसी रणनीति का हिस्सा है। हाल ही में झामुमो से अलग होकर भाजपा में शामिल हुए चम्पाई सोरेन से उम्मीद की जा रही है कि वे कोल्हान क्षेत्र में समर्थन वापस जीतने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे, जो राज्य की जनजातीय राजनीति के लिए महत्वपूर्ण क्षेत्र है।

जनजातीय पहचान की रक्षा और अवैध अप्रवास से जुड़ी चिंताओं को दूर करने पर भाजपा के जोर ने जनजातीय मतदाताओं, खासकर संथाल परगना क्षेत्र के बीच जोरदार प्रतिक्रिया व्यक्त की है। अवैध घुसपैठ और जनजातीय पहचान के क्षरण के बारे में पार्टी की बयानबाजी ने मतदाताओं के बीच पकड़ बना ली है, जिससे भाजपा को ऐसी पार्टी के रूप में स्थापित किया जा रहा है जो जनजातीय हितों की रक्षा के बारे में अधिक गंभीर है।

जेएमएम की आंतरिक कलह से भाजपा को फायदा

भाजपा जहां अपने मास्टरप्लान को बड़ी सावधानी से लागू कर रही है, वहीं सत्तारूढ़ झामुमो लगातार कमजोर होता जा रहा है। राज्य के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन अपनी ही पार्टी के भीतर गंभीर आंतरिक चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। कभी झामुमो के स्तंभ रहे चम्पाई सोरेन जैसे वरिष्ठ नेता पार्टी नेतृत्व से असंतुष्टि का हवाला देकर पार्टी छोड़ चुके हैं। झामुमो के भीतर विद्रोह मतदाताओं को यह संकेत भी देता है कि पार्टी एकता बनाए रखने के लिए संघर्ष कर रही है।

इसके अलावा, झामुमो सत्ता विरोधी लहर से भी जूझ रहा है, जिसमें भ्रष्टाचार और अधूरे वादों के आरोप भी शामिल हैं। भाजपा ने इसका फायदा उठाने में देर नहीं लगाई और चुनाव को सोरेन के शासन पर जनमत संग्रह के रूप में पेश किया। ऐसे राज्य में जहां आर्थिक संकट और कुप्रबंधन के आरोपों के कारण जनता की भावनाएं तेजी से बदल रही हैं, झामुमो की चुनावी स्थिति अनिश्चित दिखती है।

झारखंड में जैसे-जैसे चुनाव की स्थिति बनती जा रही है, भाजपा की जमीनी तैयारी, गठबंधन और जनजातीय लोगों तक पहुंच उसे स्पष्ट बढ़त दिला रही है। 'रायशुमारी' अभियान का विस्तार, जमीनी स्तर पर भागीदारी पर ध्यान और एनडीए का मजबूत मोर्चा बनाने की रणनीति से पता चलता है कि भाजपा राज्य में फिर से वापसी करने में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती।

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