
मुख्य न्यायाधीश (CJI) के पद से सेवानिवृत्त जस्टिस बी.आर. गवई ने रविवार को अपने कार्यकाल और न्यायपालिका को लेकर कई अहम बातें साझा कीं। उन्होंने समाज में न्यायपालिका को लेकर बने भ्रम और जजों के कामकाजी रवैये पर खुलकर प्रकाश डाला।
जस्टिस गवई ने कहा कि उनके कार्यकाल में किसी भी मामले में उन्हें सरकार की ओर से कोई दबाव नहीं महसूस हुआ। उन्होंने स्पष्ट किया कि सुप्रीम कोर्ट में हर मामले को केवल उसके मेरिट के आधार पर देखा जाता है, न कि यह देखकर कि पक्षकार कौन है—सरकार है या कोई निजी संस्था।
सरकार के खिलाफ फैसले और स्वतंत्रता का मिथक
जस्टिस गवई ने यह भी बताया कि समाज में यह धारणा है कि अगर कोई जज हर फैसला सरकार के खिलाफ नहीं देता तो वह स्वतंत्र नहीं है। उन्होंने इसे गलत मानते हुए कहा कि न्याय का आधार हमेशा केस की मेरिट होता है, न कि यह कि फैसला किसके पक्ष में है।
कॉलेजियम में असहमति पर विचार
जस्टिस गवई ने कॉलेजियम में जस्टिस विपुल पंचोली के प्रमोशन पर जस्टिस बी.वी. नागरत्ना की असहमति का भी जिक्र किया। उन्होंने कहा कि कॉलेजियम में असहमति सामान्य प्रक्रिया है और यह कोई नई बात नहीं है। यदि किसी जज के तर्क में वास्तविक मेरिट होता तो अन्य चार जज भी उनसे सहमत हो जाते। गवई ने यह भी स्पष्ट किया कि असहमति और दलील को सार्वजनिक रूप में लाना पूर्वाग्रह पैदा कर सकता है, इसलिए इसे सार्वजनिक नहीं किया गया।
अफसोस और भविष्य की योजना
जस्टिस गवई ने अपने कार्यकाल में एक चीज़ ना कर पाने पर अफसोस जताया—सुप्रीम कोर्ट में किसी महिला जज को लाने की सिफारिश नहीं हो पाई। उन्होंने यह भी साफ कर दिया कि रिटायरमेंट के बाद वह कोई सरकारी पद या राज्यपाल जैसी भूमिका स्वीकार नहीं करेंगे। उनका फोकस अब अपने गृह जिले में आदिवासी समुदाय के कल्याण और सामाजिक कामों पर रहेगा।














