
वंदे मातरम् के 150 वर्ष पूर्ण होने के अवसर पर लोकसभा में आयोजित विशेष चर्चा के दौरान समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और कन्नौज से सांसद अखिलेश यादव ने सदन में बेहद प्रखर भाषण दिया। उन्होंने सत्ता पक्ष पर जमकर प्रहार करते हुए न केवल भारतीय जनता पार्टी बल्कि उसके वैचारिक आधार माने जाने वाले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर भी सीधे निशाने साधे।
चर्चा के शुरुआती हिस्से में अखिलेश ने आरोप लगाया कि सत्तारूढ़ दल अब उन महान हस्तियों को भी अपना बताने लगा है, जिनका उनसे कोई ऐतिहासिक संबंध नहीं रहा। उनके मुताबिक, “सत्ता पक्ष के लोग हर महान व्यक्तित्व को अपनी विचारधारा से जोड़ने की कोशिश करते हैं, चाहे वे उनसे कभी जुड़े ही न रहे हों।”
“जब हार मिली, तभी याद आए बाबा साहेब” – अखिलेश का तंज
अखिलेश यादव ने सदन में कहा कि एक समय ऐसा था जब चुनावी मंचों पर बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर की तस्वीरें तक दिखाई नहीं देती थीं। लेकिन उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के गठबंधन ने जब भाजपा को चुनाव में मात दी, तभी सत्ता पक्ष को आंबेडकर की प्रतिमाएँ और तस्वीरें याद आने लगीं। उन्होंने व्यंग्य करते हुए कहा कि “जिस दिन इन्हें हार मिली, उसी दिन से इन्होंने बाबा साहेब की तस्वीरें लगाना शुरू कर दिया।”
“दरार फैलाने वाली सोच वंदे मातरम् की भावना को कमजोर कर रही है”
सपा चीफ ने आगे कहा कि वंदे मातरम् एक ऐसा गीत है जिसने स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान पूरे देश को एक सूत्र में पिरोया था। लेकिन आज, उनके अनुसार, कुछ “दरार पैदा करने वाली ताकतें” उसी गीत को विभाजन का आधार बनाने में लगी हुई हैं। उन्होंने याद दिलाया कि अंग्रेजों ने जब वंदे मातरम् पर रोक लगाई थी, तब भी स्वतंत्रता सेनानियों ने इसे अपने हृदय और मन से कभी अलग नहीं होने दिया। स्वदेशी आंदोलन में भी लोग इसी गीत से ऊर्जा पाते थे।
अखिलेश ने कटाक्ष किया कि जो लोग आजादी के आंदोलन का हिस्सा भी नहीं थे, वे वंदे मातरम् के महत्व को कैसे समझ सकते हैं? उनके अनुसार, ऐसे लोग राष्ट्रवाद की बात तो करते हैं, लेकिन उनके कर्म “राष्ट्र-विरोधी प्रवृत्ति” को दर्शाते हैं।
“उत्तर प्रदेश ने दी कम्युनल राजनीति को करारी शिकस्त”
सपा प्रमुख ने अपने भाषण के अंत में दावा किया कि उत्तर प्रदेश के मतदाताओं ने देश को एक नया राजनीतिक संदेश दिया है। उनके अनुसार, जहां से सांप्रदायिक राजनीति की शुरुआत हुई थी, वहीं की जनता ने उसका समापन भी कर दिया। उन्होंने कहा कि जो लोग स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़े ही नहीं थे, वे राष्ट्रगीत की आत्मा और उसकी ऐतिहासिक भूमिका को क्या समझेंगे? इसी बात को दोहराते हुए उन्होंने कहा—“ये राष्ट्रवादी नहीं, बल्कि राष्ट्र-विवादी सोच वाले लोग हैं।”













