हर युग में कुछ ऐसे संत होते हैं जिनका प्रभाव न केवल उनके समय तक सीमित रहता है, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के जीवन पर भी गहरा असर छोड़ता है। उनके विचार, शिक्षाएं और जीवनदृष्टि समय के साथ और भी मूल्यवान हो जाती हैं। ऐसे ही एक महान संत थे श्री नीम करोली बाबा, जिनके भक्त उन्हें महाबली श्री हनुमान का स्वरूप मानते हैं। उनका सहज व्यवहार, गहन सोच और स्पष्ट दृष्टिकोण आज भी असंख्य लोगों के जीवन को दिशा दिखा रहा है।
नीम करोली बाबा का मानना था कि यदि बचपन से ही बच्चों को अच्छे संस्कार और आदतें दी जाएं, तो वे जीवन में कभी गलत दिशा में नहीं भटकते। वे न केवल सफल होते हैं, बल्कि एक अच्छे, संवेदनशील और जिम्मेदार नागरिक भी बनते हैं। तो आइए जानते हैं नीम करोली बाबा के वो चार मूल मंत्र, जिन्हें यदि आप अपने बच्चों को सिखाएं, तो उनका भविष्य निश्चित रूप से उज्ज्वल और स्थिर होगा।
1. बच्चों को सिखाएं – सुबह जल्दी उठने की आदत
सफल लोगों की आदतों की बात की जाए, तो एक बात अक्सर समान पाई जाती है – वे सभी सुबह जल्दी उठते हैं। नीम करोली बाबा भी प्रतिदिन ब्रह्ममुहूर्त में उठ जाया करते थे और दिन की शुरुआत पूजा-पाठ और ध्यान से करते थे। यह आदत बच्चों में अनुशासन और समय की कीमत समझने की भावना पैदा करती है। जब बच्चे सुबह जल्दी उठते हैं, तो उनके पास दिनभर का समय बेहतर ढंग से प्रयोग करने का अवसर होता है। वे दिनभर ऊर्जावान, केंद्रित और सकारात्मक बने रहते हैं।
2. संतुलित दिनचर्या और अनुशासन – जीवन की दिशा का आधार
नीम करोली बाबा हमेशा इस बात पर जोर देते थे कि बच्चों की परवरिश में एक निश्चित दिनचर्या और अनुशासन का होना आवश्यक है। जब बच्चे प्रतिदिन तय समय पर पढ़ाई, खेल और विश्राम करते हैं, तो वे जिम्मेदार बनते हैं और आत्मविश्वास के साथ अपने कार्यों को अंजाम देते हैं। एक संतुलित दिनचर्या उन्हें अपने समय का सही उपयोग सिखाती है और जीवन के हर मोड़ पर निर्णय लेने की क्षमता भी विकसित करती है। बाबा के अनुसार, संयम और अनुशासन ही व्यक्ति को संपूर्ण जीवन में स्थिरता प्रदान करते हैं।
3. आध्यात्मिकता से जोड़ें – जीवन को मिलेगी सही दिशा
नीम करोली बाबा स्वयं नियमित रूप से धार्मिक ग्रंथों जैसे रामायण, महाभारत आदि का अध्ययन करते थे। वे मानते थे कि ये ग्रंथ केवल धार्मिक ज्ञान ही नहीं, बल्कि जीवन की समस्याओं का समाधान और सही मार्गदर्शन भी प्रदान करते हैं। जब बच्चे इन ग्रंथों की कहानियों और शिक्षाओं से परिचित होते हैं, तो उनके भीतर सद्गुणों का विकास होता है और वे नैतिक दृष्टिकोण से मजबूत बनते हैं। इसलिए बचपन से ही बच्चों को आध्यात्म और धार्मिक साहित्य की ओर प्रेरित करना आवश्यक है। यह उनके व्यक्तित्व को संतुलित, शांत और जागरूक बनाता है।
4. सेवा और सहायता का भाव – सबसे बड़ा धर्म
नीम करोली बाबा का सम्पूर्ण जीवन सेवा और परोपकार को समर्पित था। उन्होंने हमेशा जरूरतमंदों की सहायता की और लोगों को यही शिक्षा दी कि मानवता का सबसे बड़ा धर्म है दूसरों की सहायता करना। बच्चों में यदि यह भावना शुरू से डाली जाए कि जरूरतमंद की मदद करना उनका कर्तव्य है, तो वे बड़े होकर एक संवेदनशील और सहयोगी व्यक्ति बनते हैं। इस सेवा भाव से उनमें दया, करुणा और समाज के प्रति उत्तरदायित्व की भावना पैदा होती है, जो उन्हें एक बेहतर इंसान और सच्चा नागरिक बनाती है।