पेरेंटिंग एक ऐसा सफर है जो बेहद खूबसूरत होने के साथ-साथ काफी जिम्मेदारी भरा भी होता है। यह एक ऐसा अनुभव है जिसमें हर दिन कुछ नया सीखने और सिखाने का मौका मिलता है। जब बात बेटे की परवरिश की आती है, तो यह सफर और भी संवेदनशील हो जाता है। क्योंकि बेटे को बचपन में दिया गया प्यार, मार्गदर्शन और सहयोग उसकी सोच, आत्मविश्वास और रिश्तों की नींव रखता है। माता-पिता की हर बात, हर व्यवहार और हर निर्णय बेटे के व्यक्तित्व पर गहरा असर डालता है। कई बार माता-पिता अच्छे इरादों से कुछ ऐसा कर बैठते हैं, जो अनजाने में बच्चे के मानसिक विकास को प्रभावित कर देता है। इसलिए यह बेहद जरूरी है कि बच्चे की परवरिश करते समय कुछ सामान्य लेकिन अहम गलतियों से बचा जाए ताकि बेटे का भविष्य उज्ज्वल और मजबूत बन सके। आइए जानते हैं कि बेटे की परवरिश करते हुए कौन-सी पांच प्रमुख गलतियां माता-पिता को नहीं करनी चाहिए।
1. बेटे के इमोशंस को दबाना
बेटे को भावनात्मक रूप से मजबूत बनाना जरूरी है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि उसकी भावनाओं को नजरअंदाज किया जाए या दबाया जाए। समाज में अक्सर लड़कों को यह सिखाया जाता है कि 'लड़के नहीं रोते' या 'कमजोरी नहीं दिखाते'। लेकिन ये बातें उनके मासूम दिल और मन पर गहरा असर डालती हैं। जब उन्हें बार-बार अपने जज्बात छुपाने के लिए कहा जाता है, तो वो धीरे-धीरे भीतर से टूटने लगते हैं। ऐसे में बच्चे अपने डर, दुख और कमजोरियों को जाहिर करने से कतराने लगते हैं। इसलिए जरूरी है कि आप बेटे को यह समझाएं कि भावनाएं इंसानियत का हिस्सा हैं और इन्हें व्यक्त करना कमजोरी नहीं, बल्कि साहस की निशानी है।
2. हर बात पर डांटना और दूसरों से तुलना करना
बहुत से माता-पिता यह सोचते हैं कि अगर वे अपने बच्चे की तुलना किसी और बच्चे से करेंगे तो वह प्रेरित होकर बेहतर प्रदर्शन करेगा। उदाहरण के लिए अगर पड़ोसी का बच्चा क्लास में टॉप कर गया तो उसकी तुलना अपने बेटे से करना आम बात हो जाती है। लेकिन यह तुलना और बार-बार की गई डांट बच्चे के आत्मसम्मान को नुकसान पहुंचाती है। इसके चलते बच्चे के आत्मविश्वास में गिरावट आती है और उसका स्वभाव चिड़चिड़ा बन सकता है। बेहतर होगा कि आप अपने बेटे की क्षमता को पहचानें और उसे सकारात्मक तरीके से प्रेरित करें ताकि वह आत्मविश्वास के साथ अपने लक्ष्य की ओर बढ़ सके।
3. बच्चे की बात ना सुनना और सिर्फ अपनी बात मनवाना
कई बार माता-पिता बच्चे की बात को नजरअंदाज कर देते हैं या उसे बोलने का पूरा मौका ही नहीं देते। वे केवल अपनी बात थोपने में लगे रहते हैं और बच्चे की भावनाओं को अनसुना कर देते हैं। इसका सीधा असर बच्चे की सोचने और बोलने की क्षमता पर पड़ता है। वह खुद को कमतर समझने लगता है और धीरे-धीरे उसका आत्मविश्वास कम हो जाता है। इसलिए जब भी बच्चा कुछ कहना चाहे तो उसकी बात को ध्यान से सुनें। इससे उसे यह महसूस होगा कि उसकी बातों की भी अहमियत है, जिससे उसके अंदर विश्वास और आत्मसम्मान दोनों मजबूत होंगे।
4. लड़कों से 'मर्द' जैसी उम्मीद करना
हमारे समाज में एक धारणा है कि लड़का होने का मतलब है हर स्थिति को सहना और मजबूत दिखना। बचपन से ही लड़कों को यह कहकर तैयार किया जाता है – "मर्द बनो", "तुम लड़के हो, तुम्हें डर नहीं लगना चाहिए", आदि। ये बातें बच्चे पर अनावश्यक मानसिक दबाव डालती हैं। वह अपनी कोमल भावनाओं, संवेदनशीलता और सहानुभूति को दबाने लगता है, जो कि एक अच्छे इंसान की बुनियादी भावनाएं हैं। इसलिए जरूरी है कि आप अपने बेटे को एक अच्छा इंसान बनने की दिशा में बढ़ाएं, न कि समाज की ‘मर्दानगी’ की गलत परिभाषा में ढालने की कोशिश करें।
5. बेटे को समय ना देना
बहुत से माता-पिता केवल बेटे की पढ़ाई और जरूरतों को पूरा करने को ही अपनी जिम्मेदारी मानते हैं, लेकिन वे उसके साथ क्वालिटी टाइम बिताना जरूरी नहीं समझते। नतीजतन, बच्चे और माता-पिता के बीच एक भावनात्मक दूरी बनने लगती है। बड़े होने पर यह दूरी और बढ़ जाती है, जिससे बच्चे के दिल में माता-पिता के लिए वह जुड़ाव नहीं रह पाता जो होना चाहिए। इसलिए जरूरी है कि आप बेटे को केवल अच्छी शिक्षा ही नहीं दें, बल्कि उसके साथ समय बिताएं, उसकी बातें सुनें, खेलें और उसके साथ रिश्तों को मज़बूत बनाएं। यही समय का साथ बच्चे के अंदर एक मजबूत और सकारात्मक व्यक्तित्व को जन्म देता है।