अपने बच्चों से कभी ना कहें इन 8 बातों में झूठ, पड़ता हैं नकारात्मक प्रभाव
By: Ankur Mon, 14 Mar 2022 11:31:18
बच्चों की परवरिश करना एक बड़ी चुनौती हैं जिसमें पेरेंट्स को बच्चों से हर एक बात सोच-समझकर कहनी होती हैं क्योंकि इसका बच्चों पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ता हैं. खासतौर से जो बर्ताव आप कर रहे हैं वो ही बच्चे ग्रहण करते हैं तो आपको यह समझने की जरूरत हैं कि बच्चों से क्या बोला जाए और क्या नहीं. कई ऐसे पड़ाव आते हैं जब मां-बाप को बच्चे के प्रति सख्त होना पड़ता है और इस दौरान पेरेंट्स कुछ बातें ऐसी बोल जाते हैं जो झूठ होती हैं ताकि बच्चे इससे सकारात्मक रूप से प्रभावित हो. बच्चे को प्यार देने के साथ ही उनके साथ सख्त होना भी बहुत जरूरी है लेकिन कुछ बातें ऐसी भी होती हैं जिन्हें कभी भी बच्चे से नहीं कहना चाहिए. तो आइये जानते हैं इन बबातों के बारे में...
बचपन की बहादुरी
जब बच्चे किसी चीज़ से डरते हैं, तो पैरेंट्स अक्सर उन्हें अपने बारे में ये कहते हैं कि जब मैं तुम्हारे जितना छोटा था/छोटी थी, तब बहुत बहादुर था/थी, किसी भी चीज़ से नहीं डरता था/डरती थी ताकि बच्चे हिम्मती बनें. फिर चाहे पैरेंट्स बचपन में बहादुर हों या न हों. आपका ये झूठ कुछ हद तक आपके बच्चे पर असर कर सकता है, लेकिन आपका बच्चा अगर थोड़ा भी साहसी है और आप उसे और बहादुर बनाने के लिए बार-बार इस तरह से परेशान करते रहे, तो हो सकता है, इससे आपके बच्चे का आत्मविश्वास कमज़ोर हो जाए.
बच्चे को कहीं छोड़ने पर
कई बार ऐसी परिस्थितियां आ सकती हैं जब आपको अपने बच्चे को किसी रिश्तेदार, दोस्त के पास छोड़ने की ज़रूरत पड़ सकती है। माता पिता दोनों वर्किंग हैं तो उस स्थिति में बच्चे को डे केयर में डालने की ज़रूरत पड़ सकती है। सिचुवेशन चाहे कोई भी हो, बच्चे को यह समझाएं और बताएं कि आप किन परिस्थितियों में उन्हें कुछ घंटों के लिए कहीं भी छोड़ रहे हैं। जब आप उन्हें सटीक स्थिति बताते हैं और उन्हें ठीक से समझाते हैं, तो वे समझेंगे और समर्थन और सहयोग करने की पूरी कोशिश करेंगे। इसके साथ ही कई बार पेरेंट्स अपने बच्चों को डराने के लिए उन्हें छोड़ने की बात करते हैं। बच्चा किसी भी उम्र का है, यह निश्चित रूप से उन्हें डराने वाला और उनके दिमाग पर असर डालने वाला है। बच्चे को सही हालातों से अवगत कराएं और उनसे झूठ बोल उनके मन में डर ना पनपने दें।
वैवाहिक स्थिति के बारे में
वैवाहिक जीवन में सब कुछ ठीक ना होने पर माता पिता यह बात बच्चों से छिपाना चाहते हैं लेकिन आखिर कब तक? यदि आप और आपका जीवनसाथी साथ में खुश नहीं हैं या तनावपूर्ण स्थिति के चलते अलग होने की सोच रहे हैं तो यह बात बच्चे से न छिपाएं। तलाक की स्थिति में अचानक यह बात बच्चे के सामने आए इससे बेहतर है कि उन्हें इसका पहले से ही अंदाजा हो। पढ़ाई में बच्चों की रुचि बढ़ाने के लिए आप उन्हें बेशक़ ये कह सकते हैं कि मैं पढ़ने में बहुत अच्छा था/अच्छी थी, मगर तब जब वाक़ई ये सच हो. इस तरह का झूठ कहना सही नहीं, जिसका सच कभी न कभी सामने आ ही जाए. हो सकता है, कभी आपके पैरेंट्स या फ्रेंड्स बच्चों के सामने आपकी पोल खोल दें या फिर बच्चों के हाथ ही आपका रिज़ल्ट आदि लग जाए. कहते हैं, झूठ तभी बोलना चाहिए, जब आपकी याददाश्त तेज़ हो, वरना पकड़े जाने पर मुसीबत में पड़ना स्वाभाविक है. अतः बच्चे से ऐसा झूठ न कहें जो पकड़ा जाए. अगर ऐसा हुआ तो बच्चे आपको झूठा समझेंगे.
महत्वपूर्ण इवेंट मिस हो जाने पर
परफेक्ट होने की कोशिश तो हर माता पिता करते हैं लेकिन कई बार प्रोफेशनल कमिटमेंट के चलते अगर आप बच्चे के किसी महत्वपूर्ण फंक्शन में नहीं पहुंच पाते हैं तो बहाने बनाने के बजाय या झूठ बोलने से अच्छा है ईमानदारी से माफी मांगना ताकि आपके बच्चों को पता चले कि वे भविष्य में आप पर भरोसा कर सकते हैं। वहीं अगर आप ऐसी स्थिति में अपने बच्चे से झूठ बोलते हैं, तो यह दर्शाता है कि आप अपनी जिम्मेदारी से बच रहे हैं और जब आपका बच्चा इस बारे में जानेगा, तो वह फिर से आप पर पूरा भरोसा नहीं करेगा।
जब आप गलत हों
गलती तो माता पिता से भी होती है और अपनी कोई भी गलती पर झूठ बोल उसे कवर-अप करने के बजाय यह कहना कि ‘हां यह मेरी गलती है’..आप बच्चे के सामने आप एक एग्जांपल सेट करते हैं कि हां गलती तो हो सकती है लेकिन गलती को स्वीकारना और उसे ठीक करना भी ज़रूरी है।
किसी ट्रौमैटिक सिचुवेशन पर
इससे अच्छी बात तो और हो ही क्या सकती है कि कोई भी बच्चा किसी ट्रौमैटिक या दर्दनाक अनुभव का सामना कभी करे ही ना। लेकिन ज़िन्दगी में कुछ ऐसी सच्चाई होती हैं जिससे बच्चों को दूर रखना भी ठीक नहीं है। फैमिली में किसी के गुज़र जाने पर अक्सर बच्चों को इस सब से दूर रखा जाता है या उन्हें बहलाने के लिए कोई कहानी बता दी जाती है। यह जरूरी है कि प्यार और संवेदनशीलता से बच्चों के सामने सही बात की जाए ताकि किसी अपने को खोने पर वह उसका इंतजार ही ना करते रहें। कठिन वक्त में बच्चे के साथ मजबूती से खड़े रहना और उन्हें यह विश्वास दिलाना कि यह वक्त भी गुज़र जाएगा, उनको आने वाले वक्त के लिए तैयार करता है और परिस्थितियों के मुताबिक ढलने की शिक्षा भी देता है।
आपके परिवार का बजट
बच्चों की फरमाइशों का तो कोई अंत ही नहीं है। कभी खिलौने की ज़िद तो कभी किसी और चीज़ की। हर माता पिता यही तो चाहते हैं कि बच्चे की हर डिमांड को वो पूरा कर पाएं लेकिन क्या वाकई हर डिमांड? कई बार बच्चे ऐसी चीजों की ख्वाहिश करते हैं जिसका पूरा कर पाना पेरेंट्स के बजट से बाहर होता है। ऐसी स्थिति में बच्चे के सामने बहाने बनाना या उसे झूठा दिलासा देने से अच्छा है उसे वास्तविकता बताना। बच्चे को बताएं कि आपके परिवार का यह बजट है। बच्चों को मेहनत का महत्व और रुपयों का मूल्य समझाकर आप उनका सामना वास्तविकता से तो कराते ही हैं और साथ में उन्हें तैयार करते हैं भविष्य के लिए भी।
मेडिकल हिस्ट्री
जब बच्चे छोटे होते हैं तो परिवार में किसे डायबिटीज है या किसे हार्ट की परेशानी,यह शायद उनके लिए ज़रूरी लेकिन बड़े होने के साथ साथ बच्चे को फैमिली की मेडिकल हिस्ट्री पता होना जरूरी है ताकि संभावित आनुवांशिक बीमारियों से उनके स्वास्थ्य पर कोई असर ना पड़े और वह अपने स्वास्थ्य, खानपान और लाइफस्टाइल में जरूरी बदलाव ला सकें। केवल शारीरिक स्वास्थ्य के मुद्दे नहीं हैं जिनके बारे में आपको अपने बच्चों के साथ पारदर्शी होना चाहिए। आपका मानसिक स्वास्थ्य भी मायने रखता है। यदि आपके परिवार में कोई डिप्रेशन या अन्य किसी मानसिक बीमारी से जूझ रहा है तो बच्चों को समय आने पर शिक्षित करें ताकि वह उन बातों तो आपसे भी खुल कर डिस्कस कर सकें।