
पेरेंटिंग सिर्फ एक जिम्मेदारी नहीं, बल्कि एक भावनात्मक यात्रा है जहाँ माता-पिता दोनों मिलकर बच्चे की सोच और जीवन की नींव रखते हैं। इस सफर में मां और पिता दोनों की भूमिका समान रूप से महत्वपूर्ण होती है। बच्चे अपने घर के माहौल से ही वह सब कुछ सीखते हैं जो जीवन में उनके व्यवहार, दृष्टिकोण और संबंधों को आकार देता है।
वे केवल हमारे बोले हुए शब्द नहीं सुनते, बल्कि हमारे चेहरे के हाव-भाव, व्यवहार और एक-दूसरे के प्रति सम्मान को भी बड़े गौर से महसूस करते हैं। इसलिए जब एक मां अपने पति यानी कि बच्चों के पिता की बार-बार आलोचना करती है, खासकर बच्चों की उपस्थिति में, तो यह बच्चों के कोमल मन और भावनाओं पर गहरा असर डाल सकता है।
ऐसी आदतें बच्चों के मन में रिश्तों की असल तस्वीर को विकृत कर देती हैं और यह असर जीवन भर उनके साथ रह सकता है। यदि आप भी जाने-अनजाने अपने बच्चों के सामने अपने पति की बुराई करती हैं, तो इन संभावित नुकसानों के बारे में जानना बेहद ज़रूरी है।
पिता के प्रति सम्मान कम हो सकता है
हर बच्चे के लिए उसके माता-पिता उसकी दुनिया होते हैं। जब एक मां अपने पति को बच्चों के सामने बार-बार नीचा दिखाती है, तो वह सम्मान धीरे-धीरे खत्म होने लगता है। बच्चे अपने व्यवहार में वही दोहराते हैं जो उन्होंने देखा है। अगर वे अपने पिता को लगातार तिरस्कार झेलते देखेंगे, तो वे यह समझ सकते हैं कि रिश्तों में सम्मान की कोई अहमियत नहीं होती। और यह सोच आगे चलकर उनके खुद के संबंधों को भी प्रभावित कर सकती है।
बच्चों की सोच में आती है नेगेटिविटी
बच्चों का मन बेहद संवेदनशील और सरल होता है। जब वे बार-बार मां को पिता की शिकायत करते सुनते हैं, तो वे खुद को असमंजस की स्थिति में पाते हैं। एक तरफ़ वे अपने पापा से प्यार करते हैं, तो दूसरी तरफ़ मां की नकारात्मक बातें उन्हें कन्फ्यूजन में डाल देती हैं। कई बार बच्चे यह सोचने लगते हैं कि कहीं वे ही तो झगड़े की वजह नहीं? यह उन्हें मानसिक रूप से अस्थिर और नकारात्मक बना सकता है।
बच्चों में असुरक्षा और तनाव बढ़ सकता है
घर का शांत और स्नेहभरा वातावरण बच्चों को आत्मविश्वास और सुरक्षा की भावना देता है। लेकिन जब वही घर तकरार, ताने और शिकवों का केंद्र बन जाए, तो बच्चे भीतर से असुरक्षित महसूस करने लगते हैं। वे कुछ कह नहीं पाते, लेकिन उनका मन अशांत हो जाता है। इसका असर उनकी पढ़ाई, नींद, और मानसिक विकास पर सीधा पड़ सकता है। धीरे-धीरे वे खुद में सिमटने लगते हैं और खुलकर भावनाएं व्यक्त करना बंद कर देते हैं।
भविष्य के रिश्तों की समझ पर असर पड़ता है
बचपन में जो बच्चे अपने माता-पिता के बीच लड़ाई, तकरार और कड़वाहट देखते हैं, उनके भीतर रिश्तों को लेकर नकारात्मक धारणाएं बन जाती हैं। कुछ बच्चे बड़े होकर हर बात में कमी निकालने वाले बन जाते हैं, जबकि कुछ रिश्तों से डरने लगते हैं। उनके भीतर भावनात्मक संतुलन और समझ की कमी हो जाती है। यदि आप चाहती हैं कि आपका बच्चा भविष्य में एक समझदार, संवेदनशील और भरोसेमंद पार्टनर बने, तो आपको खुद अपनी बातों और व्यवहार पर संयम रखना होगा।
मां की छवि पर भी पड़ता है नेगेटिव असर
मां हर बच्चे की सबसे करीबी, सबसे प्यारी और सबसे बड़ी रोल मॉडल होती है। लेकिन जब बच्चा बार-बार अपनी मां को शिकायत करते, गुस्सा करते और नेगेटिव बातें करते देखता है, तो उसकी नज़र में मां की छवि भी धुंधली होने लगती है। बच्चा मां को समझदार, शांत और स्नेहमयी महिला के बजाय एक चिड़चिड़ी और आलोचनात्मक व्यक्ति के रूप में देखने लगता है। इससे वह मां से भावनात्मक रूप से दूरी बना सकता है और कई बार अपनी बात कहने से भी झिझकने लगता है।
बच्चे अपने जीवन की शुरुआत एक खाली स्लेट की तरह करते हैं। हम माता-पिता ही हैं जो उस पर रंग भरते हैं। यदि हम उन्हें प्यार, समझदारी और सम्मान से भरा माहौल देंगे, तो वे भी वैसा ही जीवन जीने की कोशिश करेंगे। रिश्तों में मतभेद होना सामान्य बात है, लेकिन बच्चों के सामने उन मतभेदों को सम्मानजनक तरीके से संभालना ही एक सशक्त और जिम्मेदार पेरेंटिंग की पहचान है।














