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क्या बच्चों की जगह ले लेंगे जानवर? जानें भारत में क्यों बढ़ रही है पेट पैरेंटिंग

क्या बच्चों की जगह जानवर ले सकते हैं? जानें भारत में बढ़ती पेट पैरेंटिंग की प्रवृत्ति, इसके कारण, लाभ और बच्चों के बजाय पालतू जानवरों को परिवार का सदस्य मानने का कारण।

Posts by : Kratika Maheshwari | Updated on: Mon, 06 Oct 2025 4:52:05

क्या बच्चों की जगह ले लेंगे जानवर? जानें भारत में क्यों बढ़ रही है पेट पैरेंटिंग

कहा जाता है कि कुत्ते इंसान के सबसे वफादार साथी होते हैं। यही वजह है कि इंसान सदियों से अपने घरों में पालतू जानवरों को रखता आया है। लेकिन आज सवाल उठता है—क्या ये जानवर कभी हमारे बच्चों की जगह ले लेंगे? यह विचार अब केवल मजाक या कल्पना नहीं रह गया, बल्कि भारत में बढ़ती पेट पैरेंटिंग की प्रवृत्ति के कारण यह एक वास्तविक चर्चा बन गई है। कई लोग अब बच्चों के बजाय जानवरों के साथ समय बिताना अधिक संतोषजनक समझ रहे हैं। आइए, जानें पेट पैरेंटिंग क्या है और क्यों यह भारत में तेजी से लोकप्रिय हो रही है।

पेट पैरेंटिंग क्या है?

पेट पैरेंटिंग उस प्रक्रिया को कहते हैं जिसमें पालतू जानवरों—जैसे कुत्ते, बिल्ली, खरगोश, पक्षी या अन्य—को सिर्फ साथी के रूप में नहीं, बल्कि परिवार के सदस्य और बच्चों की तरह देखा जाता है। इसमें मालिक जानवर की परवरिश, स्वास्थ्य, पोषण और खुशियों का ध्यान रखता है।

पेट पैरेंटिंग में शामिल हैं:

- जानवर के खाने-पीने, स्वास्थ्य और सुरक्षा का ख्याल रखना

- उसके जन्मदिन और खास अवसरों का जश्न मनाना

- उसके लिए खिलौने, कपड़े और विशेष भोजन खरीदना

- इसके साथ गहरा भावनात्मक बंधन बनाना

- इसमें फाइनेंशियल निवेश, लाइफस्टाइल में बदलाव और सामाजिक पहचान भी शामिल होती है, जैसे एक पैरेंट अपने बच्चे के लिए करता है।

भारत में पेट पैरेंटिंग क्यों बढ़ रही है?

भारत में पेट पैरेंटिंग के बढ़ने के कई कारण हैं:


1. बच्चों की परवरिश महंगी और चुनौतीपूर्ण

बच्चों की शिक्षा, स्वास्थ्य, देखभाल और भविष्य की योजनाओं पर खर्च बहुत बड़ा होता है। इसके मुकाबले पालतू जानवरों पर खर्च अपेक्षाकृत कम है, इसलिए कई लोग जानवरों को परिवार का हिस्सा बनाना पसंद कर रहे हैं।

2. अकेलापन और भावनात्मक सहारा

शहरी जीवन में लोग अक्सर अकेलापन महसूस करते हैं। बच्चे अपनी पढ़ाई या करियर में व्यस्त रहते हैं, जिससे माता-पिता का खालीपन बढ़ता है। ऐसे में जानवरों के साथ समय बिताना और उनसे भावनात्मक जुड़ाव बनाना उन्हें मानसिक सहारा देता है।

3. नई पीढ़ी की प्राथमिकताएँ

आज की युवा पीढ़ी जीवन में संतुलन, मानसिक शांति और स्वतंत्रता को ज्यादा महत्व देती है। उनके लिए बच्चे होना अनिवार्य नहीं, बल्कि खुशी और संतोष अधिक मायने रखते हैं।

4. पेट्स को परिवार मानने की प्रवृत्ति

Mars Petcare की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में लगभग 70 प्रतिशत नए पेट मालिक पहली बार पालतू जानवर अपनाते हैं और इन्हें परिवार का हिस्सा मानते हैं। यही कारण है कि लोग बच्चों की जगह जानवरों को अपना सदस्य बनाने लगे हैं।

पेट पैरेंटिंग केवल एक ट्रेंड नहीं, बल्कि आधुनिक जीवनशैली और भावनात्मक आवश्यकताओं का प्रतिबिंब है। जहां पारंपरिक परिवार में बच्चों को केंद्र में रखा जाता था, आज लोग जानवरों को अपने जीवन का हिस्सा मानकर उनकी देखभाल, प्रेम और समय देना अधिक महत्वपूर्ण समझ रहे हैं। भारत में यह प्रवृत्ति लगातार बढ़ रही है और यह सवाल अब और गंभीर हो गया है—क्या जानवर वास्तव में बच्चों की जगह ले सकते हैं?

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