
जब घर में नन्हा मेहमान आता है, तो उसकी परवरिश में माता-पिता खुद को पूरी तरह झोंक देते हैं। दिन-रात की थकान और जिम्मेदारियों के बीच पति-पत्नी का रिश्ता अक्सर पीछे छूटने लगता है। खासकर जब बच्चा बहुत छोटा होता है और उसी के साथ सोना पड़ता है, तब कपल्स के बीच इंटीमेसी के मौके बहुत सीमित रह जाते हैं।
लेकिन यही वो वक्त होता है जब रिश्ते में भावनात्मक और शारीरिक जुड़ाव को बनाए रखना बेहद अहम हो जाता है, ताकि आप दोनों के बीच की नजदीकियां समय के साथ फीकी न पड़ जाएं। ऐसे में ये सवाल उठना लाज़िमी है कि क्या बच्चे के सो जाने के बाद उसी कमरे में कपल्स सुरक्षित रूप से अपने खास पलों को जी सकते हैं?
गायनेकोलॉजिस्ट डॉ. उपासना सेटिया ने सोशल मीडिया पर इस बेहद मानवीय और संवेदनशील विषय पर कुछ अहम जानकारियां साझा की हैं, जो हर पैरेंट्स को जाननी चाहिए।
1 साल से बड़े बच्चे के लिए अलग कमरा क्यों है ज़रूरी?
डॉ. उपासना बताती हैं कि जब बच्चा एक साल से ज्यादा का हो जाता है, तो वह अपने आसपास की चीजों को गहराई से महसूस करने लगता है। उसकी समझ और संवेदनशीलता धीरे-धीरे विकसित हो रही होती है। वो आपके हाव-भाव, आवाज़ों और मूवमेंट्स को समझने लगता है।
ऐसे में अगर माता-पिता उसी कमरे में इंटीमेट होते हैं, तो यह उसके मानसिक विकास पर नकारात्मक असर डाल सकता है। इसलिए, बेहतर यही है कि इस उम्र के बाद बच्चे का अलग कमरा होना चाहिए ताकि माता-पिता भी खुद के लिए थोड़ी प्राइवेसी और सुकून पा सकें।
छोटे बच्चे के साथ भी रखें सावधानी, क्योंकि नींद में भी संवेदनशील होते हैं वो
अगर आपका बच्चा अभी एक साल से छोटा है और गहरी नींद में सो रहा है, तो कपल्स इंटीमेट होने के बारे में सोच सकते हैं, लेकिन बेहद सावधानी के साथ। कोई भी तेज आवाज़ या अचानक हुई हलचल उसे डिस्टर्ब कर सकती है, जिससे वो डर या असहजता महसूस कर सकता है।
ऐसे में यदि संभव हो तो दूसरे कमरे का इस्तेमाल करना बेहतर विकल्प होगा। इससे आप भी रिलैक्स महसूस करेंगे और बच्चे की नींद भी बनी रहेगी।
दो साल के बाद बच्चे की समझ और ज्यादा गहरी हो जाती है
दो साल से बड़े बच्चे धीरे-धीरे अपने आसपास की चीजों को और ज्यादा गहराई से समझने लगते हैं। उनकी ऑब्जर्वेशन पावर तेज हो जाती है और वो आवाज़, स्पर्श या माहौल में बदलाव को जल्दी पकड़ लेते हैं।
अगर ऐसे में बच्चा अचानक जाग जाए और कुछ ऐसा देख ले जो उसकी उम्र के हिसाब से समझ में न आए, तो उसके मन में भ्रम, डर या असुरक्षा की भावना पनप सकती है। इससे उसका भावनात्मक संतुलन बिगड़ सकता है, जो आगे चलकर उसकी मानसिक सेहत पर असर डाल सकता है।
इंटीमेसी ज़रूरी है, लेकिन उससे भी ज़्यादा ज़रूरी है बच्चे की मानसिक सुरक्षा
पति-पत्नी का रिश्ता सिर्फ जीवनसाथियों का नहीं, बल्कि भावनाओं का जुड़ाव भी होता है। इसमें इंटीमेसी एक ऐसी डोर है, जो उन्हें मानसिक रूप से संतुलन और जुड़ाव का एहसास कराती है। लेकिन माता-पिता होने की ज़िम्मेदारी भी यही सिखाती है कि हर कदम सोच-समझकर उठाया जाए।
डॉ. उपासना का मानना है कि बेहतर यही होगा कि कपल्स इन निजी पलों को तब जिएं, जब बच्चा कमरे में मौजूद न हो। इससे न सिर्फ आपका रिश्ता और मजबूत होगा, बल्कि बच्चा भी एक सुरक्षित और संवेदनशील माहौल में बड़ा होगा।














