
आज के डिजिटल दौर में कई संत और कथावाचक अपने विचारों, प्रवचनों और व्यक्तित्व के कारण लोगों के दिलों में जगह बना चुके हैं। इन्हीं में से एक हैं अनिरुद्धाचार्य महाराज, जो अपनी हाजिरजवाबी और निडर बयानों के लिए मशहूर हैं। हालांकि, हाल ही में उनके कुछ वक्तव्यों ने सोशल मीडिया पर उन्हें विवादों के घेरे में ला दिया है।
महिलाओं से जुड़े बयानों के कारण एक बड़ा ऑनलाइन समुदाय उनकी आलोचना कर रहा है। यह पहली बार नहीं है जब वे ट्रोल हुए हों—इससे पहले भी ‘विष कुट’ जैसे कथनों और सलमान खान के शो बिग बॉस में उनकी उपस्थिति ने सुर्खियां बटोरी थीं। लेकिन आज हम विवाद नहीं, बल्कि उनकी निजी जिंदगी के उस पहलू पर बात करेंगे, जिसके बारे में कम ही लोग जानते हैं—उनकी पत्नी, जिनकी खूबसूरती और गरिमा के सामने फिल्मी सितारे भी फीके पड़ जाएं।
बचपन से आध्यात्मिक जीवन में रचे-बसे
27 सितंबर 1989 को मध्यप्रदेश के दमोह जिले के रिंवझा गांव में जन्मे अनिरुद्धाचार्य महाराज का बचपन आध्यात्मिक वातावरण में बीता। जन्म के समय उनका नाम अनिरुद्ध तिवारी था। उनके पिता मंदिर के पुजारी थे, जिसके कारण धर्म और भक्ति की शिक्षा उन्हें बचपन से ही मिली। कम उम्र में ही उन्होंने रामचरितमानस और श्रीमद्भागवत जैसे पवित्र ग्रंथों का अध्ययन कर लिया था। समय के साथ वे एक प्रसिद्ध कथा वाचक बने, जो न केवल भक्ति के मंच पर लोकप्रिय हैं, बल्कि समाज सेवा में भी गहरी भागीदारी निभा रहे हैं।
कौन हैं अनिरुद्धाचार्य महाराज की जीवनसंगिनी?
आध्यात्मिक मार्ग पर चलने वाले अनिरुद्धाचार्य महाराज का निजी जीवन भी संतुलित और सुखमय है। उनकी पत्नी का नाम आरती तिवारी है, जिन्हें श्रद्धालु प्रेम से गुरु मां कहकर संबोधित करते हैं। वे स्वयं राधा-कृष्ण की अनन्य भक्त हैं और एक कुशल भजन गायिका भी हैं। सोशल मीडिया पर आरती तिवारी के भजनों के वीडियो काफी पसंद किए जाते हैं। अनिरुद्धाचार्य महाराज भी अक्सर अपनी पत्नी के साथ तस्वीरें और वीडियो साझा करते हैं, जिसमें दोनों मिलकर पूजा, कथा और भजन कार्यक्रमों में भाग लेते दिखते हैं। उनके दो प्यारे बच्चे भी हैं, जो परिवार की इस आध्यात्मिक धारा को आगे बढ़ा रहे हैं।
समाज सेवा में अग्रणी भूमिका
आध्यात्मिक प्रवचनों के साथ-साथ अनिरुद्धाचार्य महाराज समाज के कमजोर और जरूरतमंद वर्ग के लिए भी समर्पित हैं। वृंदावन में उन्होंने 'गौरी गोपाल वृद्धाश्रम' की स्थापना की है, जहां वृद्धजनों की देखभाल और सेवा की जाती है। वे गौ सेवा और बंदरों की देखभाल जैसे कार्यों में भी सक्रिय हैं। वृंदावन में बड़ी संख्या में रहने वाले बंदर अक्सर घायल या बीमार हो जाते हैं, और उनकी चिकित्सा व देखरेख का जिम्मा महाराज ने स्वयं उठाया है।
गुरुकुल परंपरा का पुनर्जागरण
उनकी एक और विशेष पहल है प्राचीन गुरुकुल परंपरा को पुनर्जीवित करना। इसके लिए उन्होंने एक गुरुकुल की स्थापना की है, जहां आर्थिक रूप से कमजोर बच्चों को निःशुल्क शिक्षा दी जाती है।
यहां न केवल आधुनिक पढ़ाई बल्कि वेद, शास्त्र, संस्कार और भक्ति का भी गहन प्रशिक्षण दिया जाता है। विद्यार्थियों को पढ़ाई का सारा सामान, भोजन और आवास की सुविधा पूरी तरह मुफ्त उपलब्ध कराई जाती है, ताकि वे बिना किसी आर्थिक चिंता के शिक्षा प्राप्त कर सकें।














